कुछ अलग करने का इरादा इतना था मज़बूत कि विरासत में मिल रही ज़मींदारी छोड़कर उद्यमी बने थे नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी
पिता ने नाम थी करोड़ों की ज़मीन-जायदाद, लेकिन कारोबार शुरू करते वक्त नहीं लिया पिता से एक भी रूपया ... नया सिद्धांत अपनाया, बाज़ार से ही पूंजी लेकर बाज़ार में ही लगाई और किया कारोबार ... कभी नहीं लिया किसी बैंक से कोई क़र्ज़ ... तीन साल तक स्कूटर पर ही घूमे-फिरे ... मुनाफा मिलने के बाद भी खरीदी कार ... अलग-अलग क्षेत्रों में शुरू किया कारोबार और कमाया मुनाफा ... विदेशों में कारोबार की दुनिया में जमाए अपने पाँव ... अब युवाओं को उद्यमी बनने की दे रहे हैं प्रेरणा ... समाज-सेवा में भी हैं जी जान से जुटे
नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी की गिनती हैदराबाद के बड़े उद्योगपतियों और कारोबारियों में होती है। वे पिछले तीस सालों से कारोबार कर रहे हैं। मेटल्स, माइनिंग, यूटेन्सल्ज़, रियल एस्टेट, डीप सी फिशिंग जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में उन्होंने अपने पैर जमाये हैं। भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी कारोबार किया है और अब भी कर रहे हैं। अलग-अलग चीज़ों के आयात-निर्यात का कारोबार लगातार चल रहा है। ऐसे में स्वाभाविक है कि उन्होंने तीन दशकों से ज्यादा लम्बे अपने कारोबारी जीवन में करोड़ों रुपये का लेन-देन किया है, लेकिन इस लेन-देन की एक बहुत बड़ी खासियत है जो नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी को उद्योगपतियों और कारोबारियों के बीच में अलग पहचान दिलाती है। अपने अब तक के कारोबारी जीवन में नाज़िमुद्दीन फारूकी ने कभी भी किसी बैंक या फिर किसी अन्य वित्तीय संस्था से क़र्ज़ नहीं लिया। वित्तीय संस्थाओं से किसी प्रकार की कोई मदद लिए बिना ही उन्होंने कारोबार शुरू किया था। आगे भी इन वित्तीय संस्थाओं की मदद के बग़ैर ही अपने कारोबार को आगे बढ़ाया। ये काम अब भी बदस्तूर जारी है। नाज़िमुद्दीन फ़ारूकी की ये खासियत भी रही है कि उन्होंने शुरूआत से ही बाज़ार से ही पूँजी जुटाई, बाज़ार में ही पूँजी लगाई और बाज़ार में ही कारोबार करते हुए मुनाफा कमाया।
ऐसा भी नहीं था कि नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी के घर-परिवार में धन-दौलत की कोई कमी थी। उनके पिता बहुत बड़े ज़मींदार थे। हैदरबाद, निज़ामबाद, नांदेड़ जैसे शहरों में उनकी खूब सारी ज़मीन-जायदाद थी। पिता जाने-माने होमियोपैथी डॉक्टर भी थे। पिता रईस थे और रसूकदार भी, लेकिन 1985 में जब नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने अपना कारोबार शुरू किया, तब उन्होंने अपने पिता से एक रूपया भी नहीं लिया। इसकी वजह पूछे जाने पर नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने बताया," मैं नहीं चाहता था कि अपने पेरेंट्स को किसी तरह की फिनैन्शल तकलीफ दूँ। मेरे भाई-बहन थे और वे भी मेरी तरह ही मेरे पिता की ज़मीन-नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी के शेयर-होल्डर थे। मेरे भाई-बहन को भी तो अपना करियर बनाना था। मैं नहीं चाहता था कि माहौल डिस्टर्ब हो। मुझे यक़ीन था कि मेरा जो हिस्सा है, वो मुझे ज़रूर मिलेगा और आगे चलकर ऐसा ही हुआ।"
नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी के दादा भी अपने ज़माने के बहुत बड़े उद्योगपति थे। आज़ादी से पहले रियासत-ए-हैदराबाद में उनके कई कारखाने और मिलें थी। तेल और कपास के कारोबार में उनका खूब दबदबा था। वे भी काफी दौलतमंद और मशहूर हस्ती थे।
हैदराबाद में मरकज़ ग्रूप ऑफ़ कम्पनीज़ के दफ्तर में हुई एक ख़ास मुलाक़ात में नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने अपने शानदार और प्रेरणादायककारोबारी सफर के दिलचस्प पहलुओं के बारे में बताया। हमने उनसे ये भी पूछा कि विरासत में मिल रही ज़मींदारी को उन्होंने क्यों नहीं अपनाया? इस सवाल के जवाब में नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने कहा,
"मैंने पुणे यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई की है। जब मैं पुणे में पढ़ रहा था तब मेरे प्रोफेसरों और मेंटरों ने मुझे बहुत एन्करिज किया था। उनके विचारों से मैं बहुत प्रभावित हुआ था। एमबीए का रिज़ल्ट आने से पहले ही मैंने मन में ठान ली थी कि मैं लाइफ़ में कुछ अलग करूँगा। इसी फैसले की वजह से मैंने अपने पेरेंट्स से कोई मदद नहीं ली और अपना कारोबार शुरू किया।"
बैंक से क़र्ज़ क्यों नहीं लिए ? ये सवाल पूछे जाने परनाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने बताया," बैंक के पास गिरवी रखने के लिए मेरे पास अपनी कोई संपत्ति नहीं थी। क़र्ज़ लेने के लिए बैंक के जो पैरामीटर होते हैं, मैं उनमें भी मैं फिट नहीं बैठता था। न मेरे पास कोई बैलेंसशीट थी, ना ही कोई ऐसा बैकग्राउंड जहाँ मैंने कारोबार कर मुनाफ़ा कमाया हो। मेरे एसेट जीरो थे।"
कारोबार शुरू करने के लिए कहाँ से और कैसे पूंजी जुटाई? इसके जवाब में नजीमुद्दीन फारूकी ने कहा,
" मैं जानता था कि बाज़ार खुला हुआ है। मैंने बाज़ार में अपनी किस्मत आज़माई। मैंने अखबारों में इश्तहार दिए। मेरी कोशिश कामयाब रही। लोगों ने मुझपर भरोसा किया और अपनी पूंजी मुझे दी। मेरे पास करीब पैंतीस हज़ार रुपये थे और बाज़ार से जो रकम मिली वो सब मिलाकर डेढ़ करोड़ रुपये हो गए थे। इसी रकम से मैंने कारोबार शुरू किया।"
बाज़ार से ही पूंजी लेकर, बाज़ार में ही लगाने और कारोबार करने का कांसेप्ट और बिज़नेस-मॉडल उन दिनों यानी अस्सी के दशक में बिलकुल नया था। नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने बाज़ार से पूंजी तो ली, लेकिन ब्याज मुक्त ली। यानी जिस किसी ने उनकी कंपनी मरकज़ इन्वेस्टमेंट कंपनी में निवेश किये उसे ब्याज नहीं मिला, बल्कि उसको पूंजी के हिसाब से मुनाफ़ा मिला। 1985-86 में शुरू की गयी मरकज़ इन्वेस्टमेंट कंपनी ने सबसे पहले 1. 5 करोड़ रुपये की लागत से कारोबार शुरू किया था।
नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। मेटल्स, इलेक्ट्रिकल्स, माइनिंग, यूटेन्सल्ज़, रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन, डीप सी फिशिंग जैसे क्षेत्रों में कारोबार किया और कामयाबी हासिल की। शुरू में स्टार ऐल्यूमिनम नाम की कंपनी खोलकर रोलिंग शीट्स बनाए और बाज़ार में बेचे। 1998 में शुरू की मरकज़ फेब्रिकेटर्स एंड इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटिड ने एपीएसआरटीसी याने राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों के लिए मेटल बॉडी बनाई। नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने बताया, "सरकारी बसों की मेटल-बॉडी बनाने में मुनाफा ज़्यादा नहीं था, लेकिन जिस तरह से हमने हुनर दिखाया और क्वालिटी मेटल बॉडी बनाई, उससे हमारी कंपनी का बहुत नाम हुआ। हमें आगे चलकर आलविन जैसे बड़ी कंपनी से सब-कॉन्ट्रैक्ट भी मिले। हमने सेना के लिए भी रिसर्च वेहिकल्स बनाए ।"
1990 में नाज़िमुद्दीन फारूकी ने रियल एस्टेट में अपने कदम रखे। मरकज़ कंस्ट्रक्शन कंपनी ने अब तक 75 से ज्यादा इमारतें बनाई हैं ।इसमें कई कमर्शियल इमारतें हैं तो कई आवासीय आपर्टमेंट्स । आगे चलकर उन्होंने माइनिंग और डीप सी फिशिंग के क्षेत्र में भी कारोबार किये।
ये पूछे जाने पर कि उन्होंने कारोबार के लिए अलग-अलग और एक दूसरे से बिलकुल जुदा क्षेत्र क्यों चुने, नाज़िमुद्दीन फारूकी ने कहा," एक प्लानिंग और स्ट्रैटजी के तहत ये किया गया। मुझे लगा कि एक ही सेक्टर में अगर कारोबार किया जा रहा और अगर उसमें कोई परेशानी आ गयी तो बचाने वाला कोई नहीं होगा। इसी वजह से मैंने अलग-अलग सेक्टर में कारोबार किया। ऐसा करने का मुझे फायदा भी हुआ। जब एक सेक्टर में प्रॉब्लम आती तो दूसरे सेक्टर की वजह से हम घाटे से बच जाते। अगर में सिर्फ ऐल्यूमिनम का ही कारोबार करता रहता तो शायद बहुत नुक्सान होता। उस समय मज़दूरों की समस्या थी। यूनियन की वजह से परेशानियां थी। अक्सर हड़ताल रहती। अगर मैं दूसरे सेक्टर में नहीं जाता तो बहुत मुश्किल होती। "
महत्वपूर्ण बात ये भी है कि नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने जो भी फैसले लिए बहुत सोच-समझकर लिए। उन्होंने निवेश और कारोबार के लिए सेक्टर भी अच्छी-खासी रिसर्च के बाद ही चुने। उन्होंने एक राज़ पर से पर्दा उठाते हुए बताया,
" मैं सेक्टर में दो चीज़ें देखकर उन्हें कारोबार के लिए चुनता था। पहला ये कि प्रोडक्ट की बिक्री पर पेमेंट इमीडियेट मिल रही या नहीं। दूसरी बात ये कि सेक्टर से पच्चीस से तीस परसेंट रिटर्न्स हैं या नहीं। अगर कोई भी सेक्टर इन दो पैमानों पर जम जाता तो मैं उनमें कारोबार करने की सोचता।"
एक और सबसे बड़ा फैसला नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने जो लिया था वो विदेश में कारोबार करने का था। इसी फैसले की वजह से वो कई बार बड़े-बड़े नुकसान झेलने और परेशानियों में बुरी तरह से फँसने से बचे थे।
इस ख़ास मुलाकात के दौरान नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने अपने कारोबारी जीवन के सबसे मुश्किल दौर के बार में भी बताया। उनके साथ किये गए सबसे बड़े धोके की घटना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा," मेरे एक पार्टनर ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोका किया था। मैं कारोबार के सिलसिले में अक्सर विदेश आता-जाता रहता था। भरोसे पर मैंने इस पार्टनर को चेक की साइनिंग अथॉरिटी दी थी। जीपीए दिया था। उस पार्टनर ने मेरे फ़र्ज़ी दस्तखत करके मेरी सारी पूंजी ले ली थी। कुछ ही दिनों में उसने सत्रह साल की मेरी सारी कमाई को अपना बना लिया था।"
नाज़िमुद्दीन फारूकी ने आगे बताया," इस नुकसान से उभरने में मुझे पांच साल लगे। उस दौर ने मुझे इतना परेशान कर दिया था कि मेरे मन में कभी-कभी कारोबार छोड़कर नौकरी कर लेने का भी ख़याल आने लगा था।"
दिलचस्प बात ये भी थी कि धोके के बावजूद नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी ने अपने पार्टनर के खिलाफ पुलिस या कोर्ट में कोई शिकायत नहीं दर्ज़ करवाई थी। वे चाहते थे कि मामला कोर्ट के बाहर ही सुलझा लिया जाय। एक दिन उनके पार्टनर ने छह महीने के अंदर सारे रुपये लौटाने का वायदा भी किया, लेकिन इसी दौरान उनके पार्टनर की एकाएक मौत हो गयी। "
नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी के मुताबिक, इस बड़ी परेशानी में उनका एक पुराना फैसला काम आया था। उन्होंने विदेश में कारोबार करने का जो फैसला लिया था उसी ने उन्हें पूरी तरह से डूबने से बचा लिया था। चूँकि इस धोके से पहले विदेशों में कारोबार शुरू होकर चल चुका था, विदेश की आमदनी ने नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी को बचा लिया।
ऐसा भी बिलकुल नहीं रहा कि नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी के कारोबारी जीवन में मुश्किलें नहीं आयी। एक के बाद कई मुशिक्लें आयीं, लेकिन अपने अनुभव और साहस से हर मुश्किल को दूर भगाया। उन पर जान लेवा हमले भी हुए । धमकियां अभी भी लगातार मिलती ही रहती हैं। पार्टनर तंग करते हैं, लेकिन कारोबार जारी रहता है। नजीमुद्दीन फारूकी बताते हैं,
"रियल एस्टेट के कारोबार में कई मुश्किलें आईं। रियल एस्टेट में अंडर वर्ल्ड का एक बड़ा नेटवर्क है। अंडर वर्ल्ड वाले डरा-धमकाकर रुपये वसूलने के चक्कर में रहते हैं। राजनेता भी बिना कोई वजह रुपये मांगते हैं। मैं तो सबसे यही कहता हूँ कि जब मैंने कोई गलत काम नहीं किया और उन लोगों ने मेरे कारोबार में कुछ नहीं दिया तो मैं उन्हें रुपये क्यों दूँ।"
अपराधियों और असामजिक तत्वों के सामने कभी भी टस से मस न हुए नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी के मुताबिक उन्होंने कभी किसी को धोका नहीं दिया। कायदे से कारोबार किया। पार्टनर्स को सही समय पर सही रिटर्न्स दिए। सारे नियमों का पालन किये। हर सेक्टर में क्वालिटी बनाए रखी। यही वजह है कि पिछले तीस सालों से वे अपने कारोबार को चला पा रहे हैं और मुनाफा भी कमा रहे हैं। इतने सालों तक बाज़ार में टिक पाने और शुरू से आजतक अच्छा नाम कायम रख पाने को ही नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी अपने कारोबारी जीवन की सबसे बड़ी कामयाबी मानते हैं। वे कहते हैं," मेरे जगह कोई और होता तो शायद कारोबार बंदकर नौकरी करने लगता या फिर दुनिया से ही निकल जाता।" एक कारोबारी और उद्यमी के तौर पर देश-विदेश में खूब शोहरत, धन -दौलत जुटा लेने के बाद उनका अब अपना ज्यादा समय समाज-सेवा में लगा रहे हैं। उनका ज्यादा ध्यान मुस्लिम समुदाय में शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं को बेहतर बनाने की तरफ लगा हैं। उन्होंने मुस्लिम चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की भी शुरुआत की है। वे इस संस्था के ज़रिये युवाओं को उद्यमी और कारोबारी बनने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। उनकी कोशिश ये भी है कि युवाओं को उद्यमी बनने के मौके दिलवाए जाएँ और उन्हें तरीके भी समझाए जाएँ।
युवाओं को कारोबार की बारीकियां समझाने के मकसद से नाज़िमुद्दीन फ़ारूक़ी अलग-अलग अखबारों और पत्रिकाओं में लेख भी लिखते हैं। अलग-अलग जगह जाकर भाषण भी देते हैं। उनके शब्दों में,
" मुस्लिम समुदाय समुदाय के लोग डेवलपमेंट के रास्ते से डीरेल हैं। समुदाय को पटरी पर वापस लाने की ज़रुरत हैं। मुस्लिम लोगों में मार्केट को लेकर एक अजीब सा डर हैं। उस डर को भगाने की कोशिश ज़रूरी है। लोगों को ये बताने की ज़रुरत है कि बाज़ार सबसे लिए एक जैसा है। बाज़ार सबके लिए खुला है। तीन चीज़ों में कोई मज़हब नहीं होता - शिक्षा, चिकित्सा और कारोबार।"
कुछ पुरानी यादें ताज़ा हुए नाज़िमुद्दीन फारूकी ने ये भी बताया कि जब एमबीए पास करने के बाद उन्होंने उद्यमी बनने का फैसला लिया था तब उनके कुछ क्लासमेट्स, दोस्तों और जान-पहचान के लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया था। उनके कारोबारी बनने के फैसले पर खूब ज़ोर-ज़ोर से हंसे थे। उनके साथ एमबीए पढ़ने वाले ज्यादातर दोस्त नौकरी करने चले गए। और जब तीन साल बाद उनकी नजीमुद्दीन फारूकी से मुलाकात हुई तब भी इन साथियों ने मज़ाक करते हुए पूछा था," कारोबारी बनकर क्या हासिल कर लिया है तुमने ? नौकरी करते तो खुश रहते, लेकिन आज वही पुराने साथी मिलते हैं तो कहते हैं कि मेरा रास्ता ही सही था।" नजीमुद्दीन फारूकी ने ये भी बताया कि पहले तीन सालों में उन्हें कोई मुनाफा नहीं हुआ। मैंने फ्री सर्विस की। मैं स्कूटर पर आता-जाता था। तीन साल बाद जब मुनाफा हुआ तब जाकर मैंने कार खरीदी।"