मजहर के इस आइडिया से मिली पूरे इलाके को गंदगी और दुर्गंध से निजात
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को एक नया आयाम तो मुरादाबाद (उ.प्र.) के उस मजहर हसन ने दिया है, जिनका एक मामूली सा आइडिया अमल में आते ही मुफ्तीटोला मोहल्ले के हजारों लोगों को एक झटके में वर्षों की जानलेवा दुर्गंध से निजात मिल गई। जकात के पैसे से डलाबघर पर चिमनी लगा दी गई।
मजहर ने पंचों को सुझाई कि जकात के पैसे से कूड़ेघर की छत पर चिमनी लगाई जा सकती है। मोहल्ले के लोगों ने फैसला किया कि जकात का पैसा चिमनी पर खर्च किया जाएगा।
देश में राष्ट्रीयता स्वच्छता मिशन चल रहा है और दिवाली भी आ रही है तो इन दिनो गंदगी, बदबू और सफाई को लेकर कई तरह की ताजा सूचनाएं भी सामने आ रही है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण सूचना है यूपी के मुरादाबाद से। यह वाकया इस बात का स्पष्ट संदेश है कि रिसर्च, शोध, मार्केटिंग जुमलों आदि के अलावा हर व्यक्ति के अपने कुछ-न-कुछ अनुभव और आइडिया होते हैं, जिससे मुश्किल काम तो आसान होता ही है, सामूहिक समस्या का भी लगे हाथ समाधान हो जाता है। मुरादाबाद (उ.प्र.) के मजहर हसन ने भी एक ऐसा मामूली सा आइडिया दिया, जिससे लंबे वक्त से असहनीय गंदगी और दुर्गंध से पीड़ित उनके इलाके के लोगों को एक झटके में निजात मिल गई।
मजहर का आइडिया उनके लिए भी मुफीद हो सकता है, जो अपने के डलाब-कचरे से परेशान रहते हैं। यह देश की सफाई व्यवस्था में जुटे सरकारी, गैरसरकारी अमलों के लिए भी एक सबक है। मुरादाबाद नगर निगम का एक नारा तो बड़ा लाजवाब है कि 'मुरादाबाद साफ हो, इसमें मेरा हाथ हो', लेकिन उस पर अमल के नाम पर ढाक के तीन पात। इसी नारे को सार्थक कर दिखाया है मजहर हसन ने। मजहर अपने शहर के मुफ्ती टोला में रहते हैं। लालबाग स्थित इस इलाके में एक कूड़ाघर है, जहां पूरे मोहल्ले का कूड़ा जमा होता रहता है। इससे यहां के बाशिंदों के लिए यह कूड़ाघर एक बड़ी समस्या बन चुका था। बदबू के कारण लोगों का जीना दूभर हो रहा था। बदबू से बचने के लिए यहां के लोग अपने घरों के खिड़की-दरवाजे हर वक्त बन्द करके रखते। राहगीर भी नाक बन्द करके वहां से गुजरते। इसी बीच मजहर ने आइडिया का दिया, लोगों की जान में जान पड़ी।
जब लालबाग के मुस्लिम बहुल मुफ्ती टोला के बाशिंदे डलाबघर की आफत से भागते फिर रहे थे, उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, मजहर हसन ने आइडिया दिया कि कूड़ाघर के ऊपर बड़ी सी चिमनी लगा दो, अपनेआप सारी स्मैल आसमान में उड़ जाएगी। मजहर बताते हैं कि उनका परिवार जकात देने के लिए जो पैसा इकट्टा करता है, उसे प्रदूषण से छुटकारा दिलाने जैसे नेक काम में लगा देता है। उनको यह आइडिया अपने ही कारखाने की छत पर लगी चिमनी से मिला। कारखाने के अन्दर का प्रदूषण इस चिमनी के सहारे ऊपर चला जाता है। उन्होंने सोचा कि क्यों न इसी तरह की चिमनी कूड़ेघर की छत पर लगा दी जाए। कुछ ही दिन में कानोकान यह बात पूरे इलाके में फैल गई। एक दिन मोहल्ले के मोअज्जिज लोग जुटे और आपस में विचार-विमर्श किया तो सवाल आड़े आ गया कि इतनी ऊंची चिमनी के लिए पैसे कौन देगा? जब आइडिया सामने था तो इसका भी समाधान निकल ही आता, सो निकल आया।
मजहर ने पंचों को सुझाई कि जकात के पैसे से कूड़ेघर की छत पर चिमनी लगाई जा सकती है। मोहल्ले के लोगों ने फैसला किया कि जकात का पैसा चिमनी पर खर्च किया जाएगा। इसके बाद पूरे मोहल्ले से चंदा इकट्ठा किया जाने लगा। इसमें सबसे ज्यादा बढ़-चढ़कर अजहर हसन के पूरे परिवार ने हाथ बंटाया। देखते ही देखते जकात की इतनी राशि जमा हो गई कि उससे चिमनी का इंतजाम हो जाए। बात बन गई। गाँधी जयन्ती के मौके पर गत दो अक्तूबर को डलाबघर की छत पर चिमनी भी लग गई और लोगों को हमेशा के लिए सड़ांध की भयंकर बदबू से निजात मिली। मानो एक ही झटके में पूरे इलाके को प्रदूषण और दुर्गंध से निजात मिल गई।
मजहर समेत, जिनके भी घर डलाबघर से सटे हुए थे, उनको लग रहा है, जैसे उनका पुनर्जन्म हुआ है। गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गाँधी की जयंती पर ही बापू के निर्मल भारत के सपने को साकार करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के करीब 2000 लोगों को पत्र लिखा, 02 अक्टूबर 2014 को 'स्वच्छ भारत अभियान' की शुरुआत की और चार वर्ष पहले शुरू हुआ स्वच्छता आंदोलन अब एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर आ पहुंचा है। प्रधानमंत्री का कहना है कि देश को टॉप के 50 पर्यटन स्थलों में शामिल कराने के लिए विश्व स्तर के स्वच्छता अभियान की जरूरत है। इसी प्रयास पर इस साल नरेंद्र मोदी को स्वच्छता में वैश्विक पहल के लिए अंतरराष्ट्रीय 'चैंपियन ऑफ द अर्थ अवार्ड-2018' से सम्मानित किया गया है।
कूड़ाघरों की बदबू की समस्या देश के हर शहर-मुहल्ले में होती है। मुफ्ती टोला के मजहर हसन ने इसका बेहतर आइडिया साबित कर दिखाया है। यह हमारे देश के नगर निगमों और नगर पालिकाओं के लिए भी एक सीख है, जिनके पास कूड़ाघरों की बदबू से निपटने का अब तक कोई भी बेहतर विकल्प नहीं सामने आया है। निगम, पालिकाओं के अलावा यह आम नागरिकों के लिए भी एक सीख है, जो हर एक समस्या के समाधान के लिए सरकार का मुँह ताकते सामूहिक परेशानी झेलते रहते हैं। हर शहर में अस्पताल, स्कूल-कॉलेज, सब्जी मंडियां, डलाबघर गंदगी का सबब बने रहते हैं, नियमित साफ-सफाई नहीं होने से लगे गंदगी के ढेरों से जूझते रहते हैं। जहां पूरे शहर का कूड़ा जमा किया जाता है, वहां से तो रोजाना सैकड़ों लोग गुजरते रहते हैं लेकिन ऐसा कोई उपाय कारगर नहीं रहा, जो सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। सोचो तो मजहर का आइडिया बड़ा मामूली सा है लेकिन है बड़े काम का। आजमाने में हर्ज क्या है।
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