परिवारों से दूर रहते हुए भी डॉक्टरों ने कोविड-19 से मुकाबला करने की ठान रखी है
डॉक्टरों का कहना है कि कोविड-19 डयूटी को कुछ भयभीत करने वाला माना जाता था और वह अन्य को प्रेरित करना चाहते थे।
नयी दिल्ली, एम्स के ट्रॉमा सेंटर में साहसी चिकित्सकों और नर्सों का कहना है कि छह घंटे तक पीपीई सूट पहने रहना कठिन है लेकिन कोविड-19 से संक्रमित होने के डर से जूझना और भी मुश्किल है । इतना ही नहीं अपने बच्चों, जीवन साथी या माता-पिता से नहीं मिल पाना बहुत ज्यादा कठिन है लेकिन उन्होंने इसी तरह बहादुरी से इस महामारी का मुकाबला करने की ठान रखी है ।
उनके दिन कोविड-19 मरीजों और उनके परिवारों के आसपास कट रहे हैं।
गुड़गांव में अपनी 11 वर्षीय बेटी और नौ वर्षीय बेटे के साथ रहने वाले नर्सिंग अधिकारी विकास और ज्योति यादव कई दिनों से अपने बच्चों से नहीं मिल पाये है।
यह दंपत्ति ट्रॉमा सेंटर के कोविड-19 में तैनात है और यह केन्द्र उनके अपार्टमेंट परिसर से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। लेकिन उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि वह अपने बच्चों से अलग रहें। जब से उन्होंने कोविड-19 की डयूटी शुरू की है, उन्होंने अपने बच्चों से दूरी बनाकर रखी है।
ज्योति ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘बच्चों से खुद को अलग करना सबसे मुश्किल काम है।’’
उन्होंने कहा कि बच्चों का अपना कमरा है और वे बहुत समझदार है। गत 25 मार्च से लॉकडाउन शुरू होने के बाद से विकास और ज्योति अपना अधिकांश समय बच्चों के कमरे के पास वाले बगीचे में स्थित घर पर बिताते है और वहां से उनसे बात करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कठिन है लेकिन यह एक प्रतिबद्धता है जो उन्होंने खुद से की है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ट्रॉमा सेंटर में उनके सहयोगी कनिष्क यादव ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किये।
वह सुल्तानपुरी स्थित अपने घर में अलग रहते है और उन्होंने तीन महीने से अपने चार वर्षीय बेटे को स्पर्श तक नहीं किया है।
नर्सिंग अधिकारी ने कहा, ‘‘जब कोरोना वायरस महामारी फैली तो मैंने एम्स प्रशासन को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया कि मुझे कोविड-19 डयूटी में तैनात करें।’’
उन्होंने कहा कि कोविड-19 डयूटी को कुछ भयभीत करने वाला माना जाता था और वह अन्य को प्रेरित करना चाहते थे। यादव छह घंटे तक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण सूट पहनकर मरीजों की सेवा कर रहे है।
एक बार पीपीई पहनने के बाद छह घंटे तक कुछ भी खा नहीं सकते है, शौचालय नहीं जा सकते है और पसीना अधिक आता है।
नर्सिंग अधिकारी आशीष झाकल ने कहा, “ चश्मे और फॉगिंग के साथ, कभी-कभी दवाओं के नाम को पढ़ना भी मुश्किल होता है।’’
एम्स के एक रेजीडेंट डॉक्टर इरफान वी ने कहा, “डॉक्टरों के रूप में, यह हमारे लिए कुछ नया नहीं है। हमें हमेशा संक्रमण का खतरा रहता है।’’