बंगाल में बायोटॉयलेट से स्वच्छता की क्रांति लाने वाले डॉ. अरिजीत
'टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल' डॉ अरिजीत बनर्जी ने नई तकनीक का इस्तेमाल कर भारत सरकार के 'स्वच्छ भारत राष्ट्रीय अभियान' को नया रंग दे दिया है। एक मामूली से वाकये ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। वह अब तक 500 टॉयलेट्स का निर्माण कर चुके हैं। उनका मॉडल प.बंगाल के गांवों में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
आज के राजनीतिक जीवन में प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चाहे जैसी भी अनबन हो, पीएम के स्वच्छ भारत मिशन का सबसे अनोखा अभियान तो उन्ही के राज्य में सामने आ रहा है। भारत सरकार के इस राष्ट्रीय अभियान को नया रंग दिया है, ‘टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल’ डॉ अरिजीत बनर्जी ने, जिनका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा रखने के साथ ही गंदे पानी का भी सकारात्मक इस्तेमाल करना है। सच पूछिए तो भारत सरकार के 'स्वच्छ भारत' के सपने को सबसे कारगर तरीके से डॉ बनर्जी ही अंजाम तक पहुंचाने में जुटे हैं।
स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम करना या समाप्त करना है। स्वच्छ भारत मिशन विसर्जन उपयोग की निगरानी के जवाबदेह तंत्र को स्थापित करने की भी एक पहल कर रहा है और उसी दिशा में डॉ बनर्जी जुटे हुए हैं। अपने डेढ़ दशक के कारपोरेट करियर में प.बंगाल के डॉ अरिजीत बनर्जी लगभग पांच सौ मोबाइल बायोटॉयलेट वैन बनाकर लोगों के बीच 'टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल' और 'अरिजीत दादा' के नाम से मशहूर हो गए हैं।
उन्होंने आधुनिक टॉयलेट मेकिंग की पारंपरिक तकनीक को बदल दिया है। नई तकनीक से उन्होंने उसे नए मॉडल में टॉयलेट हाउसिंग के रूप में विकसित कर दिया है, जिसे कहीं भी आसानी से स्थापित किया जा सकता है। उनका मॉडल टॉयलेट मेलों, दुर्गा पूजा समारोहों अथवा अन्य किसी भी स्थान पर तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है। सहकर्मी अर्पिता रॉय उनके साथ इस मिशन में हाथ बंटा रही हैं। चालीस वर्षीय डॉ. बनर्जी कहते हैं कि शौच में इस्तेमाल होने वाला पानी भूमिगत जल में जाकर मिलता है, जिससे वह भी दूषित होता है। गाँव-देहात के लोग इसी भूमिगत जल को पीने में इस्तेमाल करते हैं, जिसके कारण वहाँ अक्सर डायरिया, हैजा समेत अन्य जल वाहित बीमारियाँ फैलती हैं। इसी को देखते हुए उन्होंने ऐसे स्थाई शौचालयों और मोबाइल टॉयलेट का आविष्कार किया है, जिससे भूमिगत जल प्रदूषित न हो।
डॉ बनर्जी द्वारा निर्मित शौचालयों में इस्तेमाल होने वाले जल का बागवानी में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पानी यूरिया से भरपूर होता है। इसकी दुर्गन्ध भी चली जाती है। वीरभूम को निर्मल जिला बनाने में डॉ. बनर्जी की बड़ी भूमिका साबित हो चुकी है। वहाँ उन्होंने कई शौचालय बनवाए हैं। इन उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए इण्डियन चैम्बर ऑफ कामर्स की ओर से वर्ष 2017 में उन्हें टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल के खिताब से नवाजा जा चुका है। डॉ बनर्जी की सहयोगी एवं आर्टेमिस फाउंटेन फाउंडेशन से जुड़ीं अर्पिता रॉय परित्यक्ता महिलाओं की आजीविका के लिए भी सेवारत रहती हैं। डॉ बनर्जी के टॉयलेट की उन घरों के लिए भी तेजी से मांग बढ़ती जा रही है, जो साधन संपन्न नहीं हैं। बेहला, ठाकुरपुर (प.बंगाल) के डॉ. बनर्जी ने 15 साल कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में प्रशासनिक स्तर पर काम किया, लेकिन दूसरों की जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य ही बदल दिया।
यह एक दिलचस्प वाकया है कि कभी डॉ बनर्जी को एक बार मैनपुरी (उ.प्र.) जिले के एक गांव से सिर्फ इसलिये चले जाने को कहा गया था क्योंकि उन्होंने वहाँ के सरपंच को घर में अपने विकसित मॉडल वाला शौचालय बनाने की नसीहत दे दी थी। डॉ. अरिजीत बनर्जी ने गंगासागर मेला समेत धार्मिक मेलों में उमड़ने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी अस्थाई शौचालयों का निर्माण करवाया है। उन्होंने सिक्स टॉयलेट वैन बनाए हैं, इसके साथ ही वह पूर्वोत्तर भारत में वातानुकूलित ऐसे आधुनिक टॉयलेट के कांसेप्ट पर भी काम कर रहे हैं। वह पहले विदेश में थे। इंडिया आने के बाद ही उन्हें मैनपुरी जाने का मौका मिला।
वह बताते हैं कि उन्होंने एक दिन महंगी कार से उस गाँव के सरपंच को खेत में शौच करने के लिए जाते देखा तो उससे पूछा कि आप अपने घर में शौचालय क्यों नहीं बनवा लेते हैं? इस सवाल पर सरपंच का पारा चढ़ गया। वह भड़क उठा। उसने डॉ बनर्जी से कहा कि घर में शौचालय होने से गन्दगी फैलती है। इस दौरान बहसमुबाहसा हो जाने पर सरपंच ने उन्हें गांव से चले जाने का फरमान सुना दिया। डॉ बनर्जी ने गांव छोड़ने के बाद 'रैमेसिस आरपीएल' नाम की संस्था के साथ स्वयं जोड़ लिया और अपनी नई शौचालय तकनीक के प्रचार-प्रसार में जुट गए।
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