दुबई की राजकुमारी हो या उन्नाव की बेटी, औरत कहां दे दुहाई, कैसे मिले इंसाफ!
"पूरी दुनिया में, ब्रिटेन, दुबई, चीन, भारत, आस्ट्रेलिया कहीं भी, आज औरत अपनी जड़ों की ओर घूमे तो उजाड़, और सामने तो दूर-दूर तक खतरनाक सियापा है ही। वह किससे कानून की बात करे, किससे इंसाफ की दुहाई दे! कोर्ट में खड़ी जॉर्डन की राजकुमारी से लेकर उन्नाव की रेप पीड़िता तक, सबके दुख का रंग एक।"
आधी आबादी में फन फैलाए जब हजार मुद्दे एक साथ डोल-खेल रहे हों, कभी राजकुमारी हया, कभी चीनी हिरासत कैंप में फंसी ऑस्ट्रेलियाई नागरिक की मुस्लिम पत्नी-बेटी, कभी उन्नाव की रेप पीड़िता, कभी ट्रिपल तलाक़ तो कभी समान नागरिक संहिता जैसी सुर्खियां, आए दिन की ऐसी-ऐसी डरावनी बातें, जैसेकि पूरा दौर हाथ से निकल चुका हो, जैसेकि कुछ भी किसी के संभाले नहीं संभल रहा हो।
लेकिन किया क्या जा सकता है! महादेवी वर्मा और जयशंकर प्रसाद औरत की करुण कहानियां ऐसे ही, सिर्फ हवा में नहीं लिख-सुना गए। यानी कि आज महिला अपनी जड़ों की ओर घूमे तो उजाड़ सियापा, और सामने तो दूर-दूर तक खतरनाक शोर आफत बना ही हुआ है। वह किससे कानून की बात करे, किससे इंसाफ की दुहाई दे!
इस वक़्त कुछ फुटकर बातें बड़ी-बड़ी। मसलन, दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल-मख़दूम से अलग हुईं उनकी पत्नी हया बिंत अल हुसैन सेंट्रल लंदन में हाई कोर्ट के फैमिली कोर्ट डिविज़न में अपनी सुरक्षा (फ़ोर्स मैरिज प्रोटेक्शन ऑर्डर) की गुहार लगाती फिर रही हैं। हया जॉर्डन के शाह अब्दुल्लाह की सौतेली बहन और शेख़ मोहम्मद की छठवीं पत्नी हैं। दो देशों के बीच के रिश्ते को देखते हुए यह मामला बहुत नाजुक माना जा रहा है।
राजुकमारी हया अक्सर घुड़दौड़ करती रही हैं, लेकिन इस बार रॉयल एस्कॉट से ग़ैरहाज़िर रहीं क्योंकि उनको अपनी जान का ख़तरा लगता है। वह जब तीन साल की थीं, हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मां चल बसीं। बचपन ब्रिटेन में बीता। अप्रैल 2004 में शेख़ मोहम्मद के साथ निकाह कर लिया और अब उनके मामले की सुनवाई के वक़्त शेख मोहम्मद कोर्ट से नदारद रहते हैं लेकिन उनके ज़ानिब कविताएं लिखना नहीं भूलते -
'अब मेरे साथ रहने का तुम्हे कोई हक़ नहीं,
मुझे फर्क नहीं पड़ता तुम जियो या मरो।
अब कहने को कुछ बाकी नहीं रहा,
तुम्हारी जानलेवा चुप्पी ने परेशान कर दिया।'
तो, ये है आज की इतनी ताकतवर महिला के भी अकेले पड़ जाने का शोर, जो इन दिनो मीडिया में जमकर नुमाया हो रहा है। उधर, भारतीय मुस्लिम महिलाओं के दुख-दर्द से जुड़े तीन तलाक पर संसद के दोनों सदनों की मुहर लग जाने का मामला सुर्खियों में बना हुआ है। साथ ही, उन्नाव रेप केस भी। जेल में बंद एक बाहुबली विधायक के स्वेच्छाचार, खौफ की मारी लड़की, जिसके पिता की पुलिस हिरासत में मौत हुई, 28 जुलाई को बरेली से सुनवाई से लौटते वक़्त उसके वकील और परिजनों समेत उसे कुचल कर मार डालने की कथित कोशिश हुई, मौसी-चाची चल बसीं, और वह खुद लखनऊ के अस्पताल में सांसें गिन रही है,
मामला सीबीआई के सुपुर्द हो चुका है, सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया है लेकिन अपराध की वैतरिणी में एक औरत के मुतल्लिक, सोचिए कि अब तक कितना खून बह चुका है। इंसाफ का अब तक कोई अता-पता नहीं है।
विश्व मीडिया की इन दिनो की सुर्खियों में एक और दास्तान। चीन ने अपने देश में उईगुर और तुर्क मूल के 10 लाख से ज्यादा मुस्लिमों को हिरासत कैंप में रख छोड़ा है। ऐसे ही एक कैंप में ऑस्ट्रेलियाई नागरिक और उईगुर समुदाय से आने वाले सद्दाम अब्दुल सलाम की उईगुर पत्नी नदीला वुमायर और पौने दो साल का उनका बेटा लुत्फिएर बंद हैं। सद्दाम पिछले छह महीने से उन्हें छुड़वाने के लिए अभियान चला रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया चीन से इन दोनों को रिहा कर ऑस्ट्रेलिया आने देने की अपील करता जा रहा है लेकिन चीन इतने गंभीर मसले पर बातचीत से ही इनकार कर रहा है।
तो औरत के ब्रितानी, आस्ट्रेलियाई, उसके हिंदू-मुस्लिम होने अथवा उसके जात-पांत से फर्क नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है सिर्फ औरत होने से। वह औरत है तो उसके लिए कुछ भी आसान नहीं है, पूरी दुनिया का हाल एक जैसा। शौहर ट्रिपल तलाक दे, तब तो उसकी सांसत है ही, नए कानून के मुताबिक गिरफ्तार हो जाए, फिर और दुर्गति कि उसकी और उसके बाल-बच्चों की परवरिश कौन करे!
ऐसे पूरे हालात का एक छोटा सा ज़ायजा इस बात से भी ले सकते हैं कि पीड़िता के परिवार ने हादसा होने के कुछ दिन पहले चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई को चिट्ठी लिख कर अपनी जान का ख़तरा बताया था। वह चिट्ठी ही चीफ़ जस्टिस तक नहीं पहुंची। घटना के बाद यह बात भी फैली तो चीफ़ जस्टिस ने नाराज़गी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल से पूछा है- 'इस मामले में शीर्ष अदालत के नाम लिखी गई चिट्ठी उनके सामने अब तक क्यों नहीं पहुंची!