8 देशों में किए गए सर्वे में खुलासा: जलवायु परिवर्तन के कारण 70% से ज्यादा किसानों की खेती पर दुष्प्रभाव
'फार्मर वॉइस' सर्वे के लिए लाइफ साइंस कंपनी बेयर ने एक एजेंसी के माध्यम से दुनियाभर में 800 किसानों का साक्षात्कार किया. इनमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, जर्मनी, भारत, केन्या, यूक्रेन और यूनाइटेड स्टेट्स के बड़े एवं छोटे किसानों की बराबर संख्या थी.
हाइलाइट्स
- जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले दो साल में किसानों की आय में अनुमानित तौर पर औसतन 15.7 प्रतिशत की कमी आई है
- आर्थिक अनिश्चितता और लागत को लेकर चिंता के कारण ज्यादातर किसानों को शॉर्ट-टर्म चैलेंज का सामना करना पड़ रहा है
- 5 में से 4 किसानों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने की दिशा में कदम उठाए हैं या कदम उठाने की तैयारी कर रहे हैं
किसान लगातार जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं. एक सर्वे के मुताबिक, 71 प्रतिशत किसानों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उनकी खेती पर अब तक व्यापक दुष्प्रभाव पड़ चुका है और ज्यादातर किसान भविष्य में खेती पर दुष्प्रभाव पड़ने को लेकर चिंतित हैं. 73 प्रतिशत किसानों को कीटनाशकों एवं फसलों के रोगों के कारण ज्यादा दबाव का सामना करना पड़ रहा है. अनुमानित तौर पर किसानों की आय में पिछले दो वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण औसतन 15.7 प्रतिशत की कमी का सामना करना पड़ा है. इसी अवधि में छह में से एक किसान को आय में 25 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा है.
'फार्मर वॉइस' सर्वे से उपरोक्त निष्कर्ष मिले हैं, जो दुनियाभर के किसानों के सामने आ रही उन चुनौतियों को सामने लाते हैं, जिनका सामना उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने और भविष्य की तैयारियों को लेकर करना पड़ रहा है. 'फार्मर वॉइस' सर्वे के लिए लाइफ साइंस कंपनी बेयर (Bayer) ने एक एजेंसी के माध्यम से दुनियाभर में 800 किसानों का साक्षात्कार किया. इनमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, जर्मनी, भारत, केन्या, यूक्रेन और यूनाइटेड स्टेट्स के बड़े एवं छोटे किसानों की बराबर संख्या थी.
किसानों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खेती के समक्ष आ रही मुश्किलें अभी आगे भी बनी रहेंगी. वैश्विक स्तर पर तीन चौथाई (76 प्रतिशत) किसानों ने चिंता जताई कि जलवायु परिवर्तन से उनकी खेती पर दुष्प्रभाव पड़ेगा. केन्या और भारत के किसानों में इस बारे में सबसे ज्यादा चिंता देखी गई.
बेयर एजी के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के सदस्य और क्रॉप साइंस डिवीजन के प्रेसिडेंट रोड्रिगो सैंटोस ने कहा, "किसानों को जलवायु परिवर्तन के कारण खेती पर दुष्प्रभाव का सामना करना पड़ रहा है और साथ ही वे इस गंभीर चुनौती से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहे हैं. इसीलिए उनकी आवाज को सामने लाना बहुत महत्वपूर्ण है. इस सर्वेक्षण में जो नुकसान सामने आए हैं, वे ग्लोबल फूड सिक्योरिटी पर जलवायु परिवर्तन के कारण आसन्न खतरे को स्पष्ट रूप से दिखा रहे हैं. बढ़ती वैश्विक आबादी को देखते हुए सर्वेक्षण से मिले ये नतीजे कृषि को रीजनरेटिव बनाने के प्रयासों को गति देने में कैटलिस्ट की भूमिका निभाएंगे."
आर्थिक चुनौतियां किसानों पर पड़ रहे दबाव को कई गुना बढ़ा रही हैं
जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का संकट बढ़ रहा है, अगले तीन साल में आर्थिक चुनौतियां सबसे बड़ी प्राथमिकता होंगी. आधे से ज्यादा (55 प्रतिशत) किसान उर्वरकों की बढ़ती लागत को शीर्ष तीन चुनौतियों में से मानते हैं. इसके बाद चुनौतियों के मामले में ऊर्जा की लागत (47 प्रतिशत) और कीमतों एवं आय में उतार-चढ़ाव (37 प्रतिशत) और क्रॉप प्रोटेक्शन की लागत (36 प्रतिशत) का स्थान रहा. केन्या, भारत और यूक्रेन में उर्वरकों की बढ़ती लागत सबसे महत्वपूर्ण चिंता के रूप में सामने आई.
यूक्रेन में 70 प्रतिशत किसानों ने उर्वरकों की लागत को शीर्ष तीन चुनौतियों में से एक माना. यह युद्ध के कारण वहां किसानों पर पड़ रहे दबाव को दिखाता है. इसके अतिरिक्त 40 प्रतिशत किसानों ने युद्ध के कारण सामान्य बाधाओं और टकराव को बड़ी चुनौती माना. इसके अलावा यूक्रेन के किसानों की चिंता भी मोटे तौर पर वैश्विक स्तर पर अन्य किसानों जैसी ही रही. तीन चौथाई से ज्यादा (77 प्रतिशत) ने माना कि जलवायु परिवर्तन के कारण उनकी खेती पर प्रभाव पड़ चुका है.
जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करने और वैल्यू इनोवेशन की दिशा में कदम उठा रहे हैं किसान
सर्वेक्षण में शामिल 80 प्रतिशत से ज्यादा किसान ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कदम उठा चुके हैं या कदम उठाने की योजना बना रहे हैं. इनमें कवर क्रॉप्स (43 प्रतिशत ने ऐसा कर लिया है या करने के बारे में सोच रहे हैं), नवीकरणीय ऊर्जा या बायोफ्यूल का प्रयोग करने (37 प्रतिशत) और उर्वरक का प्रयोग कम करने या क्रॉप प्रोटेक्शन के लिए इनोवेटिव सीड्स का प्रयोग करने (33 प्रतिशत) जैसे कदम शामिल हैं. इसके साथ-साथ प्रत्येक किसान का कहना है कि उन्होंने बायोडायवर्सिटी में योगदान के लिए कदम उठा लिए हैं या कदम उठाने की योजना बना रहे हैं. आधे से ज्यादा (54 प्रतिशत) का कहना है कि उन्होंने इन्सेक्ट प्रोटेक्शन के लिए कदम उठा लिए हैं या अगले तीन साल में ऐसा करने की योजना बना रहे हैं.
भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए किसान इनोवेशन को प्राथमिकता देते हैं. आधे से ज्यादा (53 प्रतिशत) किसानों का कहना है कि अप्रत्याशित मौसम से निपटने के लिए खास तौर पर तैयार किए गए सीड्स एवं ट्रेट्स तक पहुंच से उनकी खेती को बहुत फायदा होगा. करीब इतने ही किसान (50 प्रतिशत) मानते हैं बेहतर क्रॉप प्रोटेक्शन टेक्नोलॉजी बहुत जरूरी है. 42 प्रतिशत का कहना है कि सिंचाई की टेक्नोलॉजी तक बेहतर पहुंच से खेती को फायदा होगा. इफिशिएंट लैंड यूज, फसल विविधीकरण और बेहतर सॉइल हेल्थ को सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से माना गया.
स्पॉटलाइट: भारत के छोटे किसान खतरे को कम करने पर फोकस कर रहे हैं
ग्लोबल सर्वे के लिए स्वतंत्र रूप से किसानों के साक्षात्कार के अलावा बेयर ने अपने कस्टमर बेस में से भारत के 2,056 छोटे किसानों का साक्षात्कार भी किया. इससे छोटे किसानों को लेकर अहम तस्वीर सामने आई, जो वैश्विक स्तर पर फूड सप्लाई सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण हैं. वर्तमान समय में उनकी सबसे बड़ी चुनौती महंगा श्रम और उर्वरक की लागत है. उन पर भी जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभाव पड़ा है, उनमें से कई किसानों (42 प्रतिशत) ने बदलते मौसम के कारण उपज कम होने की आशंका जताई है. कॉमर्शियल और बड़े किसानों से इतर भारत में सर्वेक्षण में शामिल रहे छोटे किसानों ने खतरे को कम करने और इंश्योरेंस (26 प्रतिशत) और इन्फ्रास्ट्रक्चर (21 प्रतिशत) के माध्यम से वित्तीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने पर फोकस किया.
भविष्य को लेकर सवाल पूछे जाने पर 60 प्रतिशत किसानों ने कहा कि उन्हें डिजिटल टेक्नोलॉजी तक पहुंच और आधुनिक क्रॉप प्रोटेक्शन से सबसे ज्यादा लाभ होगा. सभी चुनौतियों के बावजूद भारत के छोटे किसान आशावादी हैं. 10 में से 8 किसान खेती के भविष्य को लेकर सकारात्मक अनुभव करते हैं.
सर्वे के नतीजे भारत में छोटे किसानों की प्राथमिकताओं और जरूरतों को लेकर महत्वपूर्ण संकेत देते हैं और 2030 तक 10 करोड़ किसानों का सपोर्ट करने के लक्ष्य के साथ छोटे किसानों को लेकर बेयर की फार्मिंग स्ट्रेटजी में योगदान देंगे. 2022 में कंपनी अपने प्रोडक्ट एवं सर्विस से 5.2 करोड़ लोगों तक पहुंचने में सक्षम रही है.
वैश्विक चुनौतियों को स्वीकार कर रहे हैं किसान
कुल मिलाकर 'फार्मर वॉइस' सर्वे से सामने आया कि दुनियाभर के किसान वर्तमान चुनौतियों और भविष्य के अनुमानों को लेकर लगभग एक जैसा ही सोचते हैं. देशों के आधार पर परिस्थितियों में थोड़ा बहुत अंतर देखने को मिला, लेकिन जलवायु परिवर्तन एवं आर्थिक चुनौतियों को लेकर चिंताएं लगभग एक जैसी ही देखी गईं.
रोड्रिगो सैंटोस ने कहा, 'किसान कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसके बावजूद हमने देखा कि किसान आशावादी हैं. करीब तीन चौथाई किसान मानते हैं कि वे देश में खेती के भविष्य को लेकर सकारात्मक हैं. यह शानदार और उत्साहवर्धक है. रिपोर्ट में सामने आए किसानों के विचारों को व्यापक रूप से देखने और समझने की जरूरत है. ये निष्कर्ष पूरे फूड सिस्टम को इनोवेट, कोलैबोरेट और किसानों की जरूरतों के लिए सॉल्यूशन प्रदान करने की दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरूरत को दिखाते हैं. बेयर में हम इन प्रयासों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उत्सुक हैं. अब इसे लेकर थोड़ा सा समय भी बर्बाद नहीं किया जा सकता है.'
फार्मर वॉइस सर्वे में 800 किसानों को शामिल किया गया. इनमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, जर्मनी, भारत, केन्या, यूक्रेन और यूनाइटेड स्टेट्स के बराबर किसान शामिल थे. सर्वे को स्वतंत्र रूप से केकस्ट सीएनसी ने अंजाम दिया था. प्रत्येक मार्केट से किसानों को रैंडम तरीके से चयनित किया गया. प्रतिभागियों को इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि सर्वेक्षण बेयर की तरफ से किया जा रहा है और बेयर ने सैंपल कलेक्शन को लेकर अपनी तरफ से कोई इनपुट नहीं दिया था. अप्रैल से जुलाई, 2023 के बीच किसानों का साक्षात्कार किया गया. इसके अतिरिक्त भारत में 2,056 छोटे किसानों का भी प्रश्नोत्तर के माध्यम से सर्वेक्षण किया गया. ये किसान बेटर लाइफ फार्मिंग इकोसिस्टम से जुड़े थे. बेयर द्वारा सपोर्टेड फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन और बेयर के सस्टेनेबल राइस प्रोग्राम से जुड़े किसान भी इनमें शामिल थे. मई-जून, 2023 में ये साक्षात्कार किए गए.