हमारे देश में धरती के भगवान भरोसे बचपन!
धरती पर माता-पिता के बाद यदि किसी को भगवान का दर्जा प्राप्त है, तो वह है डॉक्टर। उसे धरती का भगवान माना-कहा जाता है। किसी प्रोफेशन पर इस तरह का भरोसा चकित भी करता है।
आए दिन जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, पूरी चिकित्सा व्यवस्था से ही मानो लोगों का यकीन खत्म होता जाता है।
अगर कोई वीआईपी, वीवीआईपी मरीज अस्पताल में दाखिल हो रहा हो, उसके लिए प्रबंधन से लेकर डॉक्टर, नर्स, चपरासी सब एक लाइन में सैल्यूट मारते नजर आएंगे।
मनुष्य की संवेदनहीनता जब बच्चों की जिंदगी की डोर काटती है तो दिमाग तिलमिला उठता है। हाल के दिनो में गोरखपुर का वह वाकया आज भी झकझोरता रहता है कि किस तरह कुछ जिम्मेदार लोगों की अक्षम्य हरकत और जनद्रोही चिकित्सा अव्यवस्थाओं ने दर्जनों बच्चों की जान ले ली थी। वे मासूम दुनिया देखने से पहले ही विदा हो गए। धरती पर माता-पिता के बाद यदि किसी को भगवान का दर्जा प्राप्त है, तो वह है डॉक्टर। उसे धरती का भगवान माना-कहा जाता है। किसी प्रोफेशन पर इस तरह का भरोसा चकित भी करता है और आश्वस्त भी, लेकिन आए दिन जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, पूरी चिकित्सा व्यवस्था से ही मानो लोगों का यकीन खत्म होता जाता है।
अस्पताल सरकारी हों या निजी, जहां चाहिए, जाइए और देखिए कि जिनकी जेब में दम नहीं है, उनका क्या हाल बना रखा है हमारे देश के चिकित्सा तंत्र ने। वे डॉक्टर हैं, धरती के भगवान हैं, उन पर आदमी आंख मूंदकर भरोसा करता है, बिना कोई पूछताछ के उनकी हर हिदायत, हर बात मानता है, क्योंकि उसके पास आदमी की जिंदगी बचाने का हुनर है, लेकिन वह मासूमों की जान से खेलने लगे, फिर तो लानत है उस पर। गोरखपुर की बात बाद में, पहले आइए जानते हैं जोधपुर (राजस्थान) का एक ताजा वाकया, जहां के उमेद हॉस्पिटल में गर्भवती महिला के ऑपरेशन के दौरान ही दोनो शल्य-चिकित्सक ऑब्सटेट्रीशियन डॉ अशोक नैनवाल और एनेस्थेटिस्ट डॉ एमएल टाक आपस में लड़ने लगे।
तब तक बच्चे ने ऑपरेशन टेबल पर बेहोश पड़ी महिला के पेट में ही दम तोड़ दिया। फिलहाल, दोनों डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया है। अस्पताल के एक स्टाफ ने ही मोबाइल से इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो बना लिया, जिससे पता चला कि डॉ. नैनवाल, डॉ टाक पर चीख-चिल्ला रहे हैं। इसी तरह पिछले साल मार्च से मई तक दिल्ली सरकार के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल जीबी पंत में इसलिए एक भी ऑपरेशन नहीं हुआ कि एनेस्थीसिया और हृदय शल्य चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों के दो गुटों की लड़ाई ने उग्र रूप ले लिया था। अब तो धरतनी के भगवानों की एक से एक करतूतें सामने आने लगी हैं, किडनी कारोबार करने से लेकर मौत के इंजेक्शन लगाने तक।
धरती के इन भगवानों का मेडिकल हालों, अस्पतालों से कमीशन तो बंधा ही होता है, नौकरी करें सरकारी अस्पताल में और ड्यूटी बजाएं प्राइवेट अस्पतालों में। ने आपस में तो लड़ते, झगड़ते ही रहते हैं, जब चाहें, हड़ताल पर चले जाएं, जब चाहें मरीजों पर बरस पड़ें, धरना देने बैठ जाएं, नकली और नशीली दवाओं का कारोबार करने लगें, वे कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं। कई बार तो बीमार युवतियों, महिलाओं की इज्जत से खेलने में भी उनके अंदर का इंसान नहीं थर्राता है। देश के हजारों अस्पतालों में रोजाना फर्श पर ऐसे लाखो मरीज तड़पते, कराहते रहते हैं, जिनकी जेब कमजोर होती है, कोई नेता, कोई संगठन, कोई पार्टी इसकी लड़ाई नहीं लड़ना चाहती है।
हां, अगर कोई वीआईपी, वीवीआईपी मरीज अस्पताल में दाखिल हो रहा हो, उसके लिए प्रबंधन से लेकर डॉक्टर, नर्स, चपरासी सब एक लाइन में सैल्यूट मारते नजर आएंगे। पिछले साल बुंदेलखंड, बांदा (उ.प्र.) के एक नर्सिंग होम में तो आर्थोपोडिक सर्जन ने ऑपरेशन में नशे का इंजेक्शन देकर एक महिला की अस्मत को तार तार कर दिया। वह महिला अपनी उंगली में मामूली सी चोट का इलाज कराने वहां पहुंची थी। डॉक्टर के रंगे हाथ पकड़े जाने पर परिजनों ने अस्पताल में जमकर हंगामा किया था लेकिन आरोपी डॉक्टर अस्पताल से फरार हो गया। और तो और, आजकल ज्यादा सरकारी अस्पतालों का जैसे दिवाला निकला हुआ है। किसी के पास बेड अथवा स्टॉफ नहीं, तो किसी के पास दवा नहीं। हां, इतना जरूर है कि नेता, अफसर इन अस्पतालों की चिकित्सा व्यवस्था चाक-चौबंद होने का बारहो महीने मुंहजुबानी सार्टिफिकेट जरूर बांटते रहते हैं।
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