सर्जरी से पैदा हुए बच्चे को कंगारू मदर केयर के जरिए सीने से लगाकर पिता ने दिया नया जीवन
मजदूरी कर गुजारा करने वाले दुर्गप्पा नहीं उठा सकते थे अपने बच्चे के लिए इन्क्यूबेटर का खर्च, तो उन्होंने किया कुछ ऐसा जो आसान नहीं किसी भी पिता के लिए...
दुर्गप्पा अपने बच्चे को बचाने के लिए ऐसा करने को राजी तो हो गए, लेकिन इसके लिए उन्हें अपना रोज का काम छोड़ना पड़ गया। उन्होंने कहा कि वे अपने बच्चे को बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
डॉक्टरों ने कहा कि नवजात शिशु को त्वचा से तब तक चिपका कर रखना होगा जब तक कि वह खुद स्थिर न हो जाए। इस काम में पैसों की जरूरत तो नहीं थी, लेकिन किसी एक परिवार के सदस्य को बच्चे को पूरा समय देना था।
कर्नाटक के कोप्पल जिले में रहने वाले दुर्गप्पा को हाल ही में संतान सुख की प्राप्ति हुई। इस खबर से दुर्गप्पा और उनके घरवालों को काफी खुशी हुई। लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे का वजन एक किलो से भी काफी कम है। और चूंकि मां की सी सेक्शन डिलिवरी होने की वजह से मां की हालत सही नहीं है इसलिए बच्चे को स्किन केयर थेरेपी की जरूरत होगी। यानी कि बच्चे को स्किन से चिपकाकर रखना होगा तभी उसकी हालत में सुधार होगा और वह सर्वाइव कर पाएगा। आमतौर पर एक किलो से कम वजन वाले बच्चों को डॉक्टरों की कड़ी निगरानी मे इन्क्यूबेटर में रखा जाता है। लेकिन मजदूरी कर गुजारा करने वाले दुर्गप्पा इसे वहन नहीं कर सकते थे।
इस हालत में डॉक्टरों ने उन्हें एक दूसरा उपाय बताया। डॉक्टरों ने कहा कि नवजात शिशु को त्वचा से तब तक चिपका कर रखना होगा जब तक कि वह खुद स्थिर न हो जाए। इस काम में पैसों की जरूरत तो नहीं थी, लेकिन किसी एक परिवार के सदस्य को बच्चे को पूरा समय देना था। डॉक्टर इसे मेडिकल की भाषा में कंगारू मदर केयर (केएमसी) कहते हैं। दुर्गप्पा ने बताया, 'डॉक्टरों ने मुझे बुलाया और कहा कि मुझे मेरी पत्नी की जगह पर ऐसा करना होगा। मुझे अपने बच्चे को दिन भर शरीर से चिपकाकर रखना था। हालांकि मेरे परिवार वालों को शुरू में इस पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि इससे कुछ फायदा होगा, लेकिन मैं ऐसा करने केलिए राजी हो गया।'
दुर्गप्पा अपने बच्चे को बचाने के लिए ऐसा करने को राजी तो हो गए, लेकिन इसके लिए उन्हें अपना रोज का काम छोड़ना पड़ गया। उन्होंने कहा कि वे अपने बच्चे को बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। हॉस्पिटल स्टाफ ने उन्हें KMC का पूरा तरीका बता दिया। इसके बाद वे अपने बच्चे को हर रोज 10 घंटे तक शरीर से चिपकाए रहते। इसी का नतीजा है कि आज उनका बच्चा पूरी तरीके से स्वस्थ हो गया है। आज कर्नाटक के कोप्पल इलाके में इस तरीके से कई बच्चों की जानें बचाई जा रही हैं।
कोप्पल को कर्नाटक का सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता है। अगर हेल्थकेयर की बात करें तो शिशु मृत्यु दर के मामले में यह जिला सबसे आगे है। कर्नाटक हेल्थ प्रमोशन ट्रस्ट (KHPT) के आंकड़ों के मुताबिक हर साल कोप्पल में 28,000 डिलिवरी होती हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत बत्ते 2,500 ग्राम से कम के होते हैं। इतना ही नहीं पांच से छह प्रतिशत बच्चे को 2,000 ग्राम के पैदा होते हैं। KHPT कोप्पल जिले में KMC को पायलट प्रॉजेक्ट की तरह चला रहा है। हालांकि सरकार ने इस योजना को 2003 से ही लागू किया है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे अमल में नहीं लाया जा रहा था। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस मॉडल को वैश्विक स्तर पर सेट अप करने के बारे में योजना बनाई है।
KHPT के डेप्युटी डायरेक्टर डॉ. स्वरूप बताते हैं कि सबसे पहले इस कॉन्सेप्ट को 1979 में कोलंबिया में अपनाया गया था। उन्होंने कहा, 'शिशुमृत्यु दर को रोकने के लिए WHO ने इसे पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर लागू करने के लिए सात जगहें चुनी थीं। जिनमें से चार इथोपिया और तीन भारत में थीं। भारत में कर्नाटक, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को चुना गया था। कर्नाटक में सबसे ज्यादा शिशुओं की मौतें कोप्पल जिले में ही होती हैं इसलिए हमने ये जिला चुना। 2016 में यह प्रॉजेक्ट शुरू हुआ था। तब से लेकर अब तक 700 नवजात शिशुओं की जान बचाई जा चुकी है।'
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