गुमनाम गांव के नामचीन फिल्म निर्माता राजेंद्र विनोद
आंध्र प्रदेश के चिन्नागोटीगल्लू गांव में जन्मे राजेंद्र विनोद लघु फिल्मों के क्षेत्र में हैं जाना-माना नामछोटे शहर से आने वालों के बारे में लोगों की राय बदलने के मकसद से बनाते हैं फिल्मेंअपने प्रोडक्शन हाउस ‘आर्वी फिल्म्स’ के बैनर तले 10 लघु फिल्म, विज्ञापन फिल्म और वृत्तचित्रों का कर चुके हैं निर्माणअपनी प्रत्येक फिल्म मात्र एक लाख रुपये के छोटे से बजट में कर देते हैं तैयार
आंध्र प्रदेश के दूरदराज के एक गुमनाम से गांव चिन्नागोटीगल्लू में जन्मे और छोटे से शहर हिंदुपुर में पले-बढ़े 24 वर्षीय राजेंद्र विनोद आज की तारीख में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं। अगर उनके अतीत पर नजर डालें तो हमें मालूम होता है कि जिस जगह से आते हैं वहां के कई लोगों के लिये तो फिल्मों का निर्माण अभी भी एक अनजानी चीज है। विनोद की नजरों में एक ऐसे मुकाम तक पहुंचना जहां हर कोई उनकी तरफ उम्मीद की नजरों से देखता है उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। एक रेलवे कर्मचारी राजेंद्र नायडू और सफल गृहणी वाणी राजेंद्र के घर जन्मे विनोद की बहन का विवाह मात्र 13 वर्ष की आयु में ही हो गया था।
अपनी बहन के बेहद करीब रहने वाला यह शर्मीला सा लड़का छोटी सी उम्र में उसकी शादी के बाद खुद को बेहद तनहा और अकेला महसूस करने लगा। बहन की याद से बाहर निकलने के प्रयास में उसने खुद को कल्पना की दुनिया में ले जाने के फैसला किया। बीते समय पर नजर डालते हुए विनोद कहते हैं, ‘‘उस समय मैं सिर्फ ग्यारह वर्ष का था जब मैंने इन काल्पनिक पात्रों को अपने जीवन में महसूस करना शुरू किया और फिर मैंने खुद को कल्पना की दुनिया में पाया। यह बचपन की वही कल्पनाशक्ति है जो अब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में मेरे लिये संजीवनी साबित हो रही है।’’ ऐसे में मनोविज्ञान और जनसंचार के क्षेत्र में उनकी रुचि भी बहुत काम आई और विनोद ने स्नातक के बाद पत्रकारिता और जनसंचार के क्षेत्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की।
छोटा शहर लेकिन सपने बड़े। विनोद कहते हैं, ‘‘अगर किसी का जन्म छोटे शहर में हुआ है तो यह जरूरी नहीं कि उसकी किस्मत में सिर्फ साॅफ्टवेयर इंजीनियर बनना ही लिखा है। और इसका मतलब यह भी कतई नहीं होना चाहिये कि वह उसी शहर की किसी कंपनी में किसी कनिष्ठ पद पर ही काम करने के लायक है। मैं लोगों की इस पारंपरिक सोच को बदलना चाहता था और अपने करियर को एक नई दिशा देने के लिये मैंने बैंगलोर का रुख किया।’’
वह वर्ष 2012 का साल था जब विनोद ने प्रसिद्ध विज़टून्ज़ काॅलेज आॅफ मीडिया एण्ड डिजाइन से मल्टीमीडिया के क्षेत्र में एक विशेष कोर्स करने के लिये बैंगलोर में कदम रखा। यह एक ऐसा कोर्स था जो उन्हें स्वतः ही लघु फिल्मों के निर्माण का मौका प्रदान करता। विनोद कहते हैं, ‘‘वास्तव में यही मेरी प्रेरणा थी। हिंदुपुर के बिट प्रौद्योगिकी संस्थान से बी.टेक. का कोर्स करने के दौरान ही मैंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कुछ करने का मन बना लिया था।’’ बचपन से ही कल्पना और कहानियों को जीने वाले विनोद अपनी लघु फिल्मों के जरिये भी कई भावनाओं को कैमरे में कैद करने की कोशिश करते हैं।
अबतक विनोद अपने प्रोडक्शन हाउस ‘आर्वी फिल्म्स’ के बैनर तले 10 लघु फिल्म, विज्ञापन फिल्म और वृत्तचित्रों का सफल निर्माण और निर्देशन कर चुके हैं और एक के तो वे निर्माता भी रहे हैं।
विनोद तेलगु, तमिल, मराठी सहित भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी और फ्रेंच सहित कई अन्य भाषाओं में भी अपनी फिल्में तैयार करते हैं। उनके द्वारा तैयार किया गया वृतचित्र ‘लेपक्षी’ तेलगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, गुजराती और असमी कुल ग्यारह भाषाओं में डब की गई। उनकी अंग्रेजी फिल्म ‘चेंज’ अपनी पटकथा के लिये आॅस्कर के लिये भी मनोनीत की गई।
लघु फिल्मों के जरिये कुछ पुरस्कार जीतने के बाद ही विनोद के काम को मान्यता मिलनी प्रारंभ हुई। नवंबर 2014 में दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय लघु फिल्म महोत्सव में ‘आर्वी फिल्म्स’ सर्वश्रेष्ठ प्रोडक्शन हाउस के रूप में सर्वसम्मति से चुनी गई। दिलचस्त बात यह है कि इस सिर्फ एक लाख रुपये के मामूली से बजट में अपनी प्रत्येक फिल्म का निर्माण सफलतापूर्वक करने के चलते इस प्रोडक्शन हाउस का नाम लिम्का बुक आॅफ रिकार्डस के निये भी मनोनीत किया जा चुका है और उम्मीद है कि जल्द ही वह रिकाॅर्ड बुक में स्थान पाने में सफल होंगे।
विनोद कहते हैं, ‘‘मेरी फिल्में विभिन्न अवधारणाओं पर आधारित होती हैं। एक तरफ जहां ‘एस फार एस’ और ‘पाॅयनाम’ भाई-बहन के रिश्तों पर आधारित फिल्में हैं वहीं ‘फियर’ एक डरावनी लघु फिल्म है।‘ओवर रिएक्शन’ और ‘एक्ज़ाम’ हास्य पर आधारित हैं जबकि ‘चेंज’ सामान्य युवाओं के जीवन जीने के पारंपरिक तरीकों के दर्शन से हमें रूबरू करवाती है। वहीं ‘आर्नी’ महिला सशक्तीकरण पर आधारित है और ‘लेपक्षी’ विरासत को केंद्र में रखकर तैयार की गई है।’’
विनोद दो से दस मिनट की लघु अवधि की इन फिल्मों का निर्माण करने में अपना पैसा, प्रतिभा और संसाधन का इस्तेमाल करते हैं। इन फिल्मों को तैयार करने के बाद वे इन्हें विभिन्न लघु फिल्म समारोहों में भेजते हैं जिसके बाद इन्हें यू-ट्यूब पर भी देखा जा सकता है। विनोद ने लघु फिल्मों के माध्यम को सिर्फ इसलिये चुना कयोंकि इनके द्वारा वे फीचर फिल्मों की तुलना में अपने आप को बेहतर ढंग से व्यक्त कर पाते हैं और इसके अलावा यहां पर वे एक लीक पर चलने के बजाय प्रयोग करने के लिये भी स्वतंत्रता महसूस करते हैं।
विनोद आमिर खान अभिनीत फिल्म ‘पीके’ की तर्ज पर विज्ञान और धर्म पर आधारित फिल्म का निर्माण करना चाहते हैं। विनोद कहते हैं, ‘‘मैं अपनी फिल्मों के जरिये लोगों को अंधविश्वास और काले जादू जैसी चीजों के खिलाफ लोगों को शिक्षित करना चाहता हूँ क्योंकि मैं देखता हूँ कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी ये चीजें हमारे देश में बहुत प्रचलित हैं।’’
विनोद अपने माता पिता को अपना सबसे बड़ा समर्थक और प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। विनोद कहते हैं, ‘‘मेरे मात-पिता मेरे सबसे बड़े समर्थक हैं। उन्होंने कभी भी मेरे सपनों और महत्वाकांक्षाओं को मारने की कोशिश नहीं की और आज मैं जो कुछ भी हूँ वह उनकी ही बदौलत हूँ। मेरी सफलता का हर कतरा मेरे माता-पिता को समर्पित है। उन्होंने हमेशा मुझे सोचने-समझने की आजादी देने के अलावा मुझे अपने दायरे के बाहर की चीजों के बारे में पता करने का आजादी प्रदान की जिसकी वजह से मेरी कल्पना को पंख लगे और मैं अपने सपनों को पूरा करने में कामयाब रहा। इसके अलावा मुझं हमेशा अपने मित्रों का भी पूरा सहयोग और समर्पण मिला जिन्होंने हमेशा मुझे अपने सपनों को पूरा करने के लिये प्रोत्साहित किया।’’