सरकारी नौकरी छोड़कर शुरू की खेती, 9 साल में 40 लाख का टर्नओवर
उनकी संस्था से लगभग 300 महिलाएं जुड़ी हैं और ठीक-ठाक कमाई भी कर रही हैं। लेकिन गुरदेव शुरू से ही खेती नहीं कर रही हैं। वह पहले सरकारी स्कूल में गणित की अध्यापिका थीं।
सब्जियों, आंवला से आचार व मुरब्बा बनाकर और चावल, दालों व हल्दी से पाउडर बनाकर उसे बढिय़ा पैकिंग में उसे मार्केट, मेलों, मंडियों में जाकर डायरेक्ट सेल करना शुरू कर दिया।
आज 9 सालों में ही उनका सालाना टर्न ओवर लगभग 40 लाख तक पहुंच गया है। इस मेहनत की बदौलत उन्हें सरदारनी जगबीर कौर अवार्ड ग्रुप को भी स्टेट अवार्ड मिल चुका है।
पंजाब के लुधियाना की गुरदेव कौर सरकारी नौकरी छोड़कर खेती कर रही हैं और गांव की महिलाओं को स्वावलंबी भी बना रही हैं। इतना ही नहीं सिर्फ 9 सालों में उनकी बनाई संस्था का टर्नओवर 40 लाख तक पहुंच चुका है। उनकी संस्था से लगभग 300 महिलाएं जुड़ी हैं और ठीक-ठाक कमाई भी कर रही हैं। लेकिन गुरदेव शुरू से ही खेती नहीं कर रही हैं। वह पहले सरकारी स्कूल में गणित की अध्यापिका थीं, लेकिन सिर्फ एक साल नौकरी करने के बाद उन्होंने उस पेशे को अलविदा कह दिया। उनके पति भी सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन उनके रिटायर होने के बाद घर की स्थिति काफी खराब हो गई।
यह 2008 का वक्त था। गुरदेव के गांव में करीब ढाई एकड़ जमीन पड़ी थी। वह उस वक्त सोच ही रही थीं कि क्यों न खाली पड़ी जमीन पर खेती की जाए। हालांकि गुरदेव के पास खेती का कोई अनुभव तो था नहीं। इसलिए उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से दो महीने तक सब्जियां उगाने, फलों व अनाज से तरह-तरह के खाद्य पदार्थ तैयार कर मार्केट में बेचने की ट्रेनिंग ली और उसके बाद गांव की जमीन पर खेती-बाड़ी शुरू कर दी। उन्होंने गोभी, गाजर, मिर्च, शिमला मिर्च, हल्दी,अदरक, नींबू, आंवला, दालों व गन्ने की खेती की। साथ ही मधुमक्खी पालन शुरू किया। वह ऑर्गेनिक चावल की भी खेती करती हैं।
सब्जियों, आंवला से आचार व मुरब्बा बनाकर और चावल, दालों व हल्दी से पाउडर बनाकर उसे बढिय़ा पैकिंग में उसे मार्केट, मेलों, मंडियों में जाकर डायरेक्ट सेल करना शुरू कर दिया। बेहतर क्वालिटी की वजह से उनके द्वारा तैयार उत्पादों की बिक्री बढ़ गई। लोगों की बातों की परवाह किए बिना वह आगे बढ़ती गईं। ग्लोबल सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर पीएयू महिलाओं को ट्रेनिंग दी। गुरदेव कौर को कई तक अवॉर्ड मिल चुके हैं। वर्ष 2009 में पीएयू की ओर से आयोजित राज्य स्तरीय किसान मेले में जगबीर कौर अवॉर्ड, वर्ष 2010 में स्टेट अवॉर्ड इन एग्रीकल्चर व 2011 में नाबार्ड की ओर से सेल्फ हेल्प ग्रुप के लिए स्टेट अवॉर्ड मिल चुका है।
इसके साथ ही गुरदेव ने ग्लोबल सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया। ग्रुप के अलावा आर्गेनिक खेती करने वाले किसानों का सामान बेचने के लिए उन्होंने फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन के नाम से संस्था बनाई। इसकी बदौलत आज 9 सालों में ही उनका सालाना टर्न ओवर लगभग 40 लाख तक पहुंच गया है। इस मेहनत की बदौलत उन्हें सरदारनी जगबीर कौर अवार्ड ग्रुप को भी स्टेट अवार्ड मिल चुका है। उनकी मेहनत देख वेरका ने दो महीने पहले लुधियाना और मार्कफैड ने चंडीगढ़ में उन्हें सेल सेंटर अलॉट किया है।
गुरदेव कौर ने बताया कि 2008 में मैंने 15 महिलाओं को जोड़कर सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया। यहां जैम बनाया और बेचने के लिए किसान मेले में पहुंची। किसानों को खूब पसंद आता लेकिन वो और भी सामान मांगते। जिसके बाद अचार, मुरब्बा, मसाले बनाने शुरू किए। इन सबके लिए मैंने सिर्फ कुदरती तरीके से पैदा हुए सामान का इस्तेमाल किया। इसी दौरान कई ऐसे किसान मुझसे मिले, जो आर्गेनिक तरीके से सब्जी, दालें आदि उगाते थे लेकिन उनकी बिक्री नहीं होती थी।
दरअसल किसानों के पास इतना टाइम नहीं था कि मेले या मंडी में जाकर बेचें। गुरदेव ने उनका सेल काउंटर बनने के बारे में सोचा और 2015 में फॉर्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) बनाया। गुरदेव की इस पहल से लगभग सौ सदस्य उनसे जुड़ गए। जिनमें आधी महिलाएं हैं। पंजाब के अलावा हरियाणा, लखनऊ से भी ट्रेनिंग दिलाई। अब उन्हें मार्केटिंग की चिंता नहीं, जो भी बनाती-उगाती हैं, उन्हें मैं अपने सेल सेंटर पर लाकर बेचती हूं।
9 साल पहले शुरू हुई उनकी मेहनत से उन्होंने न सिर्फ खेती में बड़ा मुकाम हासिल किया, बल्कि 300 महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाकर उनकी भी जिंदगी बदल दी। उनके ग्रुप से जुड़ी महिलाएं घर बैठे बीस से पच्चीस हजार रुपये प्रति माह कमा रही हैं। अच्छी-खासी पढ़ाई करने के बाद गुरदेव चाहतीं तो आरामदायक जिंदगी बिता सकती थीं, लेकिन उन्होंने संघर्ष की राह चुनी और आज सफलता की इबारत लिख रही हैं।
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