113 निवेशकों से ‘ना’ के बाद भी नहीं मानीं हार, "कार्य" के लिए आखिरकार रतन टाटा से सुनीं ‘हाँ’
महिलाओं के लिये पहनावे तैयार करने वाले ब्रांड ‘कार्य’ की संस्थापक निधि अग्रवाल की कहानी रही है चुनौतियों से भरी अपना ब्रांड शुरू करने से पहले ग्रेटर नोएडा के एक एक्सपोर्ट हाउस में काम किया 'कार्य 'आज प्रतिमाह बाजार में 150 नए डिजाइन उतारती हैं जो 18 साइज में उपलब्ध हैं केलॉग स्कूल फॉर मैनेजमेंट से एमबीए करने के अलावा चार्टेड एकाउंटेंट की शिक्षा भी पा चुकी हैं निधि(यह लेख मूलत: अंग्रेजी में है जिसे लिखा है योर स्टोरी की संस्थापिका और एडिटर इन चीफ श्रद्धा शर्मा ने)
कहते हैं मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। ये तय है कि मेहनत करने वाला बुरे दौर से गुजरता है पर हजारों बुरे दिन पर एक अच्छा दिन भारी पड़ता है। पूरे एक सौ तेरह। यह उन निवेशकों की संख्या है जिन्हें निधि अग्रवाल ने बीते 365 दिनों में अपने उद्यम ‘कार्य’ के लिये फोन, ईमेल और व्यक्तिगत मुलाकातों के माध्यम से संपर्क किया था, लेकिन सबकी तरफ से जवाब एक ही था- ‘ना’। वाकई, लगातार ना सुनते-सुनते किसी की भी हिम्मत जवाब दे जाएगी। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी निधि खड़ी रहीं और हार नहीं मानी। आखिर वो दिन आ गया जो पुराने सारे बुरे दिनों पर भारी पड़ा। निधि को 365वें दिन सफलता मिली। वो अपने उद्यम के लिये निवेशकों के तौर पर दिग्गज उद्यमी रतन टाटा के अलावा एक और शीर्ष व्यवसायी का साथ पाने में सफल रही हैं जिनका नाम जल्द ही आधिकारिक तौर पर सामने आने वाला है। इस तरह की प्रेरणादायक कहानियां ही हमें सिखाती हैं कि उद्यमिता कैसे एक मुश्किल लेकिन मूल्यवान कार्य है।
‘कार्य’ भारतीय महिलाओं को पश्चिमी और अनौपचारिक पहनावों को उपलब्ध करवाने का प्रयास करने वाला एक ब्रांड है जो उन्हें सबसे फिट साइज उपलब्ध करवाने के लिये 18 साइज की श्रेणियों में उपलब्ध है। इनका मुख्य उद्देश्य पश्चिमी और भारतीय पहनावों के अंतर को भरना है।
निधि बताती हैं, ‘‘काफी समय तक हनीवेल और केपीएमजी के साथ करने के बाद वर्ष 2010 में मैं ब्रेन कंसल्टिंग के साथ एक रणनीति सलाहकार के रूप में कार्यरत थी। उस दौरान मैं अपने एक उपभोक्ता से मिलने के लिये एयरपोर्ट जा रही थी कि तभी रास्ते में मेरे ऊपर कॉफी बिखर गई। तब मैं रास्ते में पडने वाले एक मॉडल के पास रुकी और अपनी कमीज बदलकर एक सादी सफेद कमीज खरीदकर पहन ली। वहां मौजूद बड़े ब्रांडों के कपड़ों तक के साथ यह समस्या सामने आई कि या तो वे कमर पर बहुत बड़ी थीं या फिर शरीर के ऊपरी भाग पर बहुत अधिक टाइट आ रही थीं। उस समय मैं इस सोच में पड़ गई कि इस तरह की परेशानी से सामना करने वाली मैं इकलौती महिला हूँ या फिर अन्य महिलाओं को भी कपड़ों की फिटिंग को लेकर ऐसी ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके बाद हमनें 250 महिलाओं के बीच एक छोटा सा सर्वेक्षण किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि उनमें 80 प्रतिशत महिलाएं कपड़े खरीदते समय मेरी जैसी ही परेशानियों का सामना करती हैं।’’
बिना किसी पूर्व अनुभव के एक सफल व्यापार का संचालन करने के बारे में बताते हुए निधि कहती हैं कि, ‘‘मैंने ग्रेटर नोएडा के एक एक्सपोर्ट हाउस में काम करना शुरू किया और वहीं पर इस व्यापार से जुड़ी बारीकियों से रूबरू हुई। चूंकि मैं पहले भी सेवा उद्योग में काम कर चुकी थी इसलिये मैं देर तक चलने वाली और डबल शिफ्ट में काम करते हुए बहुत जल्द ही सबकुछ सीखने में कामयाब रही। मैं सामने आने वाली दिक्कतों को सुलझाने के लिये किसी भी हद तक जाने के लिये तैयार रहती थी लेकिन समस्या को सुलझाकर ही रहती थी।”
वह क्या चीज है जो ‘कार्य’ को औरों से अलग बनाती है? निधि कहती हैं, ‘‘‘कार्य’ औरों से मुख्यतः तीन प्रारूपों में अलग है। जहां बाजार में उपलब्ध अन्य ब्रांडों के उत्पाद सिर्फ 6 साइज में उपलब्ध हैं वहीं हमारे उत्पाद 18 विभिन्न साइज में उपलब्ध हैं जो भारतीय महिलाओं के शरीर के अनुपात में स्वयं को बेहतर तरीके समायोजित करने में सक्षम हैं। कमीज के बटनों के बीच की दूरी जैसी छोटी-मोटी और ऐसी ही अन्य समस्याओं का समाधान बेहतरीन तरीके से पेश करके हम अपने उपभोक्ताओं को सुविधाजनक कपड़े उपलब्ध करवाते हैं। इसके अलावा हम प्रतिमाह 150 नए डिजाइन भी बाजार में उतारते हैं। और यह र्सिफ हमारे अपने आईटी सक्षम उत्पादन प्रणाली के चलते संभव हो पाया है जो हमारे काम को काफी आसान बना देता है। हम सिर्फ काम को समय से पूरा करने के मॉडल पर काम करते हैं।’’
निधि का सपना पश्चिमी औपचारिक वस्त्रों की दुनिया में खुद को सबसे बड़े ब्रांड के रूप में स्थापित करने का है और इसके लिये बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता है। इसके लिये उन्होंने फ्लिपकार्ट के ब्रांड रणनीति तैयार करने के जिम्मेदार फ्लिपकार्ट एसबीजी के साथ ब्रांड परामर्श रणनीति तय करने के लिये हाथ भी मिलाया है। इसके अलावा वे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के क्रम में सामान मंगाने और आपूर्ति के लिए काम दूसरों को सौपने पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
दूसरों के साथ काम करने के दौरान सामने आने वाली चुनौतियों और काम में आने वाला मजे के बारे में भी वे खुलकर बात करती हैं। ‘‘प्रारंभ में मैंने ‘कार्य’ को एक चुनौती के रूप में लिया और बाद में मैं इसे एक उपलब्धि के तौर पर लेने लगी। मैं अपने संस्थान में सबसे बड़े पद को संभालती हूँ और इसके बदले में मुझे सबसे कठिन समस्याओं और जोखिम से भरे सारे फैसले खुद ही लेने होते हैं। किसी भी काम को करने के दौरान आपको रोजाना ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और मेरा काम भी इस तरह की चुनौतियों से जुदा नहीं है। व्यवसाय को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये धन की व्यवस्था करना सबसे बड़ी चुनौती साबित होता है। आखिरकार 365 दिनों तक लगातार 113 व्यक्तियों के सामने फोन द्वारा या ईमेल अथवा व्यक्तिगत मुलाकातों से प्रस्तुतियां देने के बाद ठीक 365वें दिन मुझे इस काम में कामयाबी मिली।’’ चेहरे पर प्रतिक्षण एक मुस्कान को बनाये रखते हुए आगे बढ़ते रहने का जज्बा कोई आसान काम नहीं था और वास्तव में निधि प्रत्येक अस्वीकृति और अधिक उत्साह के साथ खुद को आगे बढ़ाती गईं।
निधि आगे कहती हैं, ‘‘एक व्यवसाय के दौरान आपके रास्ते में कई छोटी-मोटी बातें सामने आती रहती हैं। अधिकांश मौकों पर एक महिला व्यवसायी के रूप में लोग यह समझते हैं कि या तो आप स्वयं एक व्यावसाय का संचालन नहीं कर रही हैं या फिर आप अंतिम प्राधिकारी नहीं हैं। मुझे अब भी याद है कि जब मैं गुड़गांव की एक फैक्ट्री में काम कर रही थी तब एक कोरियर वाला मेरे एक फ्रिज की डिलीवरी करने आया और उसने मुझे उसे सौंपने से इंकार कर दिया। उसका सारा जोर सिर्फ एक ही बात पर रहा कि ‘अपने बॉस को बुलाओ, मैं सिर्फ आपके बॉस से ही बात करूंगा।” आखिरकार जब चौकीदार ने आकर उसे बताया कि मैं ही वहां की मालकिन हूँ तब वो नरम पड़ा।’’
केलॉग स्कूल फॉर मैनेजमेंट से एमबीए और वहां से डीन सर्विस अवार्ड से सम्मानित होने के अलावा निधि चार्टेंड एकाउंटेंट की शिक्षा पूरी कर चुकी हैं। अपने छोटे से उद्यमिता के दौर में ही निधि ने एक महत्वपूर्ण पाठ यह सीखा है कि धैर्य और दृढ़ता, ये दो चीजें हैं तो किसी को कार्य को आसान बना देती हैं।
‘‘मैंने अबतक के अपने जीवन में एक भी क्षण बर्बाद नहीं किया है और हमेशा पूरी लगन और मेहनत से हर काम किया है। और विशेषकर सेवा क्षेत्र में काम करने की वजह से मैं अधिकतर कामों को दोबारा होते हुए देखने की आदी थी। उद्यमिता ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। अब मैंने पैसों के साथ समझौता करते हुए भारी दबाव के बीच काम करना भी सीख लिया है। और मैं इन सब सीखों के साथ बहुत प्रसन्न हूँ क्योंकि इन्होंने मुझे एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने में बहुत मदद की है।’’