आंगनबाड़ी केंद्रों पर हरी सब्जी उगाकर कुपोषण मुक्त भारत की तरफ बढ़ रहा छत्तीसगढ़ का सुकमा जिला
कुपोषण को जड़ से खतम करने के लिए छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में महिला एवं बाल विकास विभाग ने की एक सराहनीय पहल...
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
सबसे ज्यादा कुपोषण की समस्या बच्चों में देखने को मिलती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक पांच वर्ष से कम आयु के 21 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ के महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से एक पहल की गई है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा उगाई जाने वाली सब्जियों से वहां पढ़ने वाले बच्चों को तो लाभ मिलता ही है साथ ही उन महिलाओं को भी इससे फायदा मिल रहा है जो सब्जी उगाने के काम में संलग्न हैं।
भारत कुपोषण की गंभीर समस्या से ग्रसित देश है। सयुंक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुपोषित लोगों की संख्या 19.07 करोड़ है। कुपोषण का मतलब उम्र के अनुपात व्यक्ति की लंबाई और वजन का कम होना होता है। सबसे ज्यादा कुपोषण की समस्या बच्चों में देखने को मिलती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक पांच वर्ष से कम आयु के 21 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ के महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से एक पहल की गई है। इस पहल के अंतर्गत सुकमा जिले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को घरों और आंगनबाड़ी केंद्रों में हरी सब्जियां उगाने को प्रेरित किया जा रहा है।
हरी सब्जियां प्रोटीन और विटामिन का अच्छा स्रोत होती हैं और इनमें पोषक तत्वों की भी अच्छी मात्रा होती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा उगाई जाने वाली सब्जियों से वहां पढ़ने वाले बच्चों को तो लाभ मिलता ही है साथ ही उन महिलाओं को भी इससे फायदा मिल रहा है जो सब्जी उगाने के काम में संलग्न हैं। सुकमा जिले के जिला कार्यक्रम अधिकारी सुधाकर बोडेले ने बताया कि वर्ष 2016-17 में 200 आंगनबाड़ी केन्द्रों के सर्विस एरिया में 1,000 हितग्राहियों (बच्चों) के घर में सब्जी उत्पादन किया गया था।
गांवों में आमतौर पर नल से निकलने वाला पानी एक बार इस्तेमाल होने के बाद नालियों में बह जाता है लेकिन इस कार्यक्रम की खास बात यह है कि सब्जी के उत्पादन में इस पानी को ही इस्तेमाल कर लिया जाता है। सुधाकर ने बताया कि 100 आंगनबाड़ी केन्द्रों में लगे हैण्डपंप से निकलने वाले 'बेकार पानी' का उपयोग करते हुए सब्जी उत्पादन का कार्य किया जाता है। सब्जियों के लिए बीज की व्यवस्था कृषि विभाग और उद्यान विभाग द्वारा मिलकर की जाती है। पिछले मॉनसून में हर एक आंगनबाड़ी क्षेत्र में 5-5 गर्भवती और शिशुवती महिलाओं के घर सब्जी उगाई गई।
महिलाओं द्वारा उगाई गई सब्जी को आंगनबाड़ी केंद्रों में खाना बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है। इसे आंगनबाड़ी में पढ़ने वाले 3 से 6 साल के बच्चों को मिड डे मील के तौर पर दे दिया जाता है। भोजन के मेन्यू के मुताबिक बच्चों को सप्ताह में कम से कम 3 दिन हरी सब्जी मिलनी ही चाहिए। घरों में सब्जी के उत्पादन की योजना से इस लक्ष्य को भी पूरा कर लिया गया। पिछले मॉनसून में 200 आंगनबाड़ी केंद्रों पर सब्जी उत्पादन किया गया था वहीं इस बार पूरे जिले के 300 आंगनबाड़ी केंद्रों पर इस पहल को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया और लगभग 600 हितग्राहियों के घर पर सब्जी का उत्पादन किया गया।
कुपोषण के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार की यह मुहिम रंग ला रही है और इससे आने वाले समय में बच्चों और गर्भवती महिलाओं में कुपोषण की समस्या से एक हद तक निजात मिल सकेगी। दुख की बात है कि भोजन की कमी से हुई बीमारियों से देश में सालाना तीन हजार बच्चे दम तोड़ देते हैं वहीं पोषण की कमी से बाल कुपोषण और संक्रमण जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं। इसका असर सीधे देश के विकास पर पड़ता है। लेकिन अगर छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले जैसी ही कोशिश देश के बाकी हिस्सों में भी की जाए तो भारत को कुपोषण मुक्त बनाने का सपना आसानी से साकार किया जा सकता है।
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