एक ऐसा कैब ड्राइवर जो शराब और पार्टी पर खर्च करने वाले पैसों को बचाकर लगाता है पेड़
मंजुनाथ को सबसे ज्यादा परेशान करता है शहर का कंक्रीट बनते जाना। 3 महीने पहले उन्होंने उन्होंने तय किया कि पार्टियों पर खर्च कम करेंगे और पैसे बचाकर शहर को हरा-भरा करेंगे।
मंजुनाथ कहते हैं, 'हर बार हम कम से कम 2,000 रुपये का खर्च करते थे। लेकिन बाद में मैंने सोचा कि क्यों न पैसे बचाए जाएं और हर वीकेंड पर पौधे लगाए जाएं।'
मंजुनाथ वीकेंड पर पौधे लगाने का काम करते हैं। कई बार उनका बेटा भी इस काम में उनकी मदद करता है।
बेंगलुरु के रहने कैब ड्राइवर मंजुनाथ शहर की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल रहे हैं। पर्यावरण प्रेमी मंजुनाथ पूरे शहर को हराभरा रखने में अपना योगदान दे रहे हैं। अब तक वह अपने इलाके में वह 1,000 पौधे लगा चुके हैं। वह भी अपने खर्च पर। खास बात यह है कि वह अपने पार्टी पर खर्च होने वाले पैसों को पेड़ लगाने पर खर्च करते हैं। कुछ साल पहले एक प्रोफेसर की बात से प्रेरणा लेकर उन्होंने यह काम शुरू किया है।
इलेक्टॉनिक्स ऐंड मैकनिकल इंजिनियरिंग में डिप्लोमा कर चुके मंजुनाथ कहते हैं कि आत्मनिर्भर होने के लिए उन्होंने कैब चलाने का रास्ता चुना था और आज वह इस पेशे में खुश भी हैं। एक समय वह शराब की गिरफ्त में आ गए थे और रोज हजारों रुपये इस बुरी लत में खर्च कर देते थे। लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे अपनी इस बुरी आदत पर काबू पाने की कोशिश की और वह इस कोशिश में सफल भी हुए। आज वह उस शहर की तस्वीर बदलना चाहते हैं, जहां वह बड़े हुए हैं, उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करता है शहर का कंक्रीट बनता जाना। 3 महीने पहले उन्होंने उन्होंने तय किया कि पार्टियों पर खर्च कम करेंगे और पैसे बचाकर शहर को हरा-भरा करेंगे।
इस काम को पूरा करने के लिए कैब ड्राइवर मंजूनाथ ने अपनी प्राथमिकताएं बदलीं। वह कहते हैं कि उन्हें हमेशा से शौक था कि किसी ट्रैवल एजेंसी के साथ काम करें और 10 साल पहले कैब चलानी शुरू कर दी। वह किसी पर निर्भर नहीं रहते और कहते हैं कि वह बिंदास जीवन जीते हैं, जिसमें दोस्तों के साथ पार्टी करना और बार में जाकर शराब पीना शामिल है। वह कहते हैं, 'हर बार हम कम से कम 2,000 रुपये का खर्च करते थे। लेकिन बाद में मैंने सोचा कि क्यों न पैसे बचाए जाएं और हर वीकेंड पर पौधे लगाए जाएं।'
मंजूनाथ वीकेंड पर पौधे लगाने का काम करते हैं। कई बार उनका बेटा भी इस काम में उनकी मदद करता है। वह कहते हैं, 'कुछ साल पहले मुझे हमारे प्रफेसर की बात याद आई। वह कहते थे कि हमें सोसाइटी को किसी न किसी रूप में कुछ देना चाहिए। मैंने सोचा कि मैं पर्यावरण के लिए कुछ करूं और मैंने वीकेंड्स पर बीटीएम की सड़कों के किनारे पौधे लगाने का काम शुरू कर दिया।'
वह कहते हैं, 'अकेले पेड़ के लिए गढ्ढे खोदने में काफी मुश्किल आती थी इसलिए मैंने एक ड्रिल मशीन खरीद ली, लेकिन उसके लिए मुझे लोगों ने कहा कि बिजली का बिल भी भरना चाहिए। लोगों ने मेरे साथ धोखा भी किया, लेकिन मैं अपने मिशन पर लगा रहा।' उन्होंने कहा कि मैंने आस-पास के लोगों को समझाया और उनसे उनके घर की बिजली का इस्तेमाल करने के लिए कहा। कुछ लोगों ने मना भी किया, लेकिन अधिकतर लोग इसके लिए राजी हो गए।' मंजूनाथ ने बताया कि अब उन्हें इससे पेड़ लगाने में काफी आसानी हो रही है।