अपने पति के साथ मिलकर लोगों को पीरियड्स के बारे में जागरूक कर रही हैं अदिति गुप्ता
मेनस्ट्रूपीडिया की संस्थापक अदिति गुप्ता, अपनी वेबसाइट के माध्यम से मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में समाज को शिक्षित करने के प्रयास में लगातार प्रयास कर रही हैं। मासिक धर्म को गोपनीय रखने की शुरुआत घर से होती है। जब युवा लड़कियों को इसके बारे में अपने पिता या भाइयों से छुपाने के लिए कहा जाता है।
मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों के बारे में लोगों को जागरूक कर रहीं अदिति गुप्ता के मुताबिक, जब मैंने युवावस्था में कदम रखा तो हमेशा एक बात मेरे दिमाग में आती थी कि माहवारी के नाम को कैसे परिभाषित किया गया है कि इसके साथ जुड़ी भावनाएं कानाफूसी के जरिए व्यक्त की जाती हैं। ताकि किसी को इसके बारे में पता न चले।
इस प्रकार, पुरुष इस बात के बारे में जान ही नहीं पाते हैं कि एक नितांत नैसर्गिक प्रक्रिया के प्रति कैसा व्यवहार रखना है। यह महत्वपूर्ण है कि पुरुषों को इसके बारे में पता होना चाहिए, चाहे वो भाई हो, पुत्र हो, पिता हो, सहयोगी हो या पति हो।
मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों के बारे में लोगों को जागरूक कर रहीं अदिति गुप्ता के मुताबिक, जब मैंने युवावस्था में कदम रखा तो हमेशा एक बात मेरे दिमाग में आती थी कि माहवारी के नाम को कैसे परिभाषित किया गया है कि इसके साथ जुड़ी भावनाएं कानाफूसी के जरिए व्यक्त की जाती हैं। ताकि किसी को इसके बारे में पता न चले। मेनस्ट्रूपीडिया की संस्थापक अदिति गुप्ता, अपनी वेबसाइट के माध्यम से मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में समाज को शिक्षित करने के प्रयास में लगातार प्रयास कर रही हैं। मासिक धर्म को गोपनीय रखने की शुरुआत घर से होती है। जब युवा लड़कियों को इसके बारे में अपने पिता या भाइयों से छुपाने के लिए कहा जाता है। इस प्रकार, पुरुष इस बात के बारे में जान ही नहीं पाते हैं कि एक नितांत नैसर्गिक प्रक्रिया के प्रति कैसा व्यवहार रखना है। यह महत्वपूर्ण है कि पुरुषों को इसके बारे में पता होना चाहिए, चाहे वो भाई हो, पुत्र हो, पिता हो, सहयोगी हो या पति हो।
लेकिन समय के साथ अब अचार को छूना नहीं है जैसे निषेध वह अचार को जरूर छुए जैसे जिंगल के साथ बदल दिया गया है। यह सुखद है कि हम मुख्यधारा के मीडिया पर इस वर्चस्व को कैसे स्पष्ट रूप से संबोधित कर रहे हैं। हमें उन लाखों महिलाओं को नहीं भूलना चाहिए जिनके पास आधुनिक उत्पादों तक पहुंच नहीं है। इन महिलाओं को कपड़े और अस्थायी विकल्प का सहारा लेना पड़ता है लेकिन अदिति गुप्ता जैसे व्यक्तियों के प्रयास हमें एक बेहतर भविष्य की आशा देते हैं। अदिति के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन उनकी यात्रा भी अधिक प्रेरणादायक है।
घर का वो घुटन भरा माहौल-
अदिति झारखंड में गढ़वा नामक एक बहुत ही छोटे अर्ध-शहरी शहर से आती हैं। एक रूढ़िवादी मध्यवर्गीय परिवार में रहते हुए अदिति का पाला छोटी उम्र से ही माहवारी से जुड़ी तमाम रोक-टोक और कुधारणाओं से पाला पड़ा। जब उन्हें पहली बार पीरियड्स आया, तब वह 12 वर्ष की थीं। अदिति याद करते हुए बताती हैं, 'मैंने अपनी मां को इसके बारे में बताया और उसने मुझे पानी के ढाई मग पानी से स्नान करने को कहा। उनका मानना था कि ऐसा करने से, मेरा प्रवाह केवल दो से डेढ़ दिनों में ही खत्म हो जाएगा।'
कमजोर कर देने वाली ऐंठन के साथ-साथ मासिक धर्म के साथ जुड़े और भी कष्टकारी अवरोध आए। अदिति को अन्य लोगों के बेड पर बैठने की अनुमति नहीं थी, उसे पूजा के स्थान या घर में कुछ पवित्र को छूने की अनुमति नहीं थी। उसे अपने कपड़ों को अलग से धोना और सूखाना पड़ता था। उसे अचार खाने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि यह माना जाता था कि अगर उसने छुआ तो अचार को खराब हो जाएगा। 'मेरे पीरियड्स खत्म हो जाने के बाद, मुझे बिस्तर और चादर धोना पड़ता था, चाहे वहां दाग हों या न होंं। संक्षेप में, मुझे अशुद्ध या प्रदूषित रूप में माना जाता था। मुझे सातवें दिन के बाद ही 'शुद्ध' बनने की उम्मीद थी जब मैंने स्नान करके अपने बाल धो लेती थी।'
अदिति का ये अनुभव भारत की अधिकांश महिलाओं से अलग नहीं है। शिक्षित और आर्थिक रूप से मजबूत माता-पिता के साथ, आदिति के परिवार में आसानी से सैनिटरी पैड खरीदे जा सकते थे। लेकिन यह सवाल था, कौन उन्हें खरीदना चाहेगा। सैनिटरी नैपकिन खरीदना उनके और उनके परिवार की गरिमा के खतरा जैसा था। अदिति को बाकी की महिलाओं की तरह कपड़े का इस्तेमाल करना पड़ा। उस कपड़े को बाथरूम के एक अंधेरे, नम और अशुद्ध कोने में धोया और संग्रहित किया जाता था।
जब जागरूकता और समझ ने बढ़ाया कदम-
अदिति उन पुराने कपड़ों को अलविदा बोलने में कामयाब तब कामयाब हुईं जब उन्हें किसी दूसरे शहर में एक बोर्डिंग स्कूल में भर्ती कराया गया था। वहां उनके दोस्तों ने उसे बताया कि वह किसी भी फार्मेसी में आधुनिक सैनिटरी नैपकिन खरीद सकती हैं। अदिति याद करती हैं, मैं मेडिकल शॉप में गई। एक अजीब सी झिझक थी मन में। लगा कैसे बोलूं कि कौन सा वाला चाहिए। दुकान वाले ने भी नैपकिन के पैकेट को कागज में लपेट दिया और उसे एक काले रंग की बैग में डाल दिया और मुझे दिया। मैं 15 साल की उम्र में पहली बार सैनिटरी नैपकिन का उपयोग कर रही थी।
स्नातक की पढ़ाई के दौरान अदिति की मुलाकात तुहिन पाल नाम के एक लड़के से हुई। तुहिन और अदिति आज पति पत्नी हैं। वे अक्सर कॉलेज के प्रोजेक्ट पर एक साथ काम करते थे। तुहिन का एक छोटा भाई था, कोई बहन नहीं थी। इसलिए उसे पीरियड्स के बारे में ज्यादा पता नहीं था। बस स्कूल में जो थोड़ा बहुत पढ़ाया गया, वही मालूम था। लेकिन अदिति को हर महीने इस दर्द से गुजरते देखकर तुहिन ने मासिक धर्म के बारे में अधिक जानकारी जुटानी शुरू की। उन विभिन्न तरीकों की तलाश शुरू कर दी जिससे कि अदिति को पीरियड्स के दौरान कुछ सहायता मिल सके।
अदिति बताती हैं, तुहिन ने मुझसे बहुत सी चीजें बतायी जिनके बारे में मुझे पहले से कुछ पता नहीं था। मुझे एहसास हुआ कि अगर मुझे मासिक धर्म के बारे में आवश्यक जानकारी की कमी रही है, तो लाखों लोग होंगे जो मासिक धर्म के बारे में अनजान हो सकते हैं। इसलिए मैंने मासिक धर्म जागरूकता पर एक वर्षीय परियोजना शुरू की। इस शोध परियोजना ने मेनस्ट्रूपीडिया की नींव रखी। हमारी इस वेबसाइट और पहल को भर-भरके प्रतिक्रियाएं है। मासिक धर्म के साथ जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ने का उनका संवेदनशील दृष्टिकोण लड़कियों, माता-पिता और शिक्षकों के बीच व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। हमारी साइट पर हर महीने एक लाख विजिटर आते हैं। हम इस विषय के बारे में अधिक से अधिक लोगों को बात करते हुए देख सकते हैं। हमारे पास हर उम्र के लोगों द्वारा लिखित बहुत सारे लेख हैं। पिता और दादा लोग अपनी बेटियों को शिक्षित करने के लिए हमारी कॉमिक सीरीज खरीद रहे हैं। हर कहानी, हर व्यक्ति, हरेक आवाज जो मासिक धर्म निषेध के खिलाफ बोलती है, मुझे प्रेरणा देती है।
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