'ज़ाया लर्निंग लैब', खेल खेल में पढ़ाई.. है न कमाल का आइडिया...
- सोमा वाजपयी और नील डिसूजा ने रखी ज़ाया लर्निंग लैब की नीव -ज़ाया लर्निंग लैब गरीब बच्चों को टैबलेट के माध्यम से पढ़ाता है।- कोर्स के कंटेट को ऐसा रखा गया है जो काफी शिक्षाप्रद और रुचिकर हो
बदलाव एक सत्य है यह प्रकृति का नियम है। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ चीजों में भी समय के अनुसार बदलाव होते रहे हैं और ये जरूरी भी है आज समय बहुत तेजी से बदल रहा है जिन चीजों की कल्पना कुछ समय पहले तक हम करते भी नहीं थे आज वे चीजें हमारे सामने हैं हमारे लिए भी जरूरी है कि हम उन सकारात्मक बदलावों को स्वीकार करें। इन बदलावों के पीछे विज्ञान की भी अहम भूमिका है जिसने लगातार काफी तरक्की की और हमारे जीवन को और सुलभ बना डाला। शिक्षा के क्षेत्र में भी हमने काफी सकारात्मक बदलाव देखे हैं आज शिक्षण में भी विभिन्न तरीकों का प्रयोग करके इसे ज्यादा रुचिकर और उपयोगी बनाया जा रहा है। इसी कड़ी में जाया लर्निंग लैब हमारे सामने एक बड़ा उदाहरण बनके उभरा।
भारत में गरीबी काफी ज्यादा है जिसके कारण बच्चे या तो स्कूल नहीं जा पाते या फिर शिक्षा पूरी होने से पहले ही स्कूल जाना छोड़ देते हैं किसी भी देश की तरक्की के लिए वहां पर शिक्षा के स्तर का अच्छा होना बेहद जरूरी होता है जिस देश के लोग ज्यादा शिक्षित होंगे वो देश ज्यादा तरक्की करेगा इसलिए जरूरी है कि शिक्षा के विकास और विस्तार पर जोर दिया जाए। ऐसे में ज़ाया लर्निंग लैब ने एक अनूठा प्रयास किया है और शिक्षा को रुचिकर बनाया है ताकि बच्चे पढ़ाई को बोझ न समझें और उनका उससे मोह भंग न हो वो इसे मजबूरी न समझकर इसमें रम जाएं और उन्हें पढ़ाई करने में मजा आए। ज़ाया लर्निंग लैब ने ये सुनिष्चित किया है कि उनके द्वारा पढ़ाया जा रहा कंटेंट क्वालिटी में भी अच्छा हो ताकि विद्यार्थी को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो।
ज़ाया लर्निंग लैब गरीब बच्चों को टैबलेट के माध्यम से पढ़ाता है वे छात्रों को टैबलेट देता है यहां कंटेंट को काफी रोचक बनाया जाता है ताकि बच्चों का इंट्रस्ट बना रहे और वो खेल खेल में चीजें सीख जाए। अमूमन परंपरागत कक्षाओं में कुछ होशियार बच्चे ही शिक्षक द्वारा पढ़ाए गए पाठ को ढंग से समझ पाते है। लेकिन ज़ाया लर्निंग लैब के जरिए सारे बच्चे क्लास में पार्टिसिपेट करते हैं औऱ सब बच्चों को पाठ आसानी से समझ आ जाता है सरल भाषा में कहा जाए तो ये लोग शिक्षा को अर्थकारी बना रहे हैं जिसमें हर बच्चा सीख रहा है।
तकनीक के प्रयोग से शिक्षा को सरल करने के इस प्रयास को काफी सफलता भी मिल रही है। सोमा वाजपयी और नील डिसूजा ने ज़ाया लर्निंग लैब की शुरूआत की। नील पेशे से इंजीनियर थे तो वहीं सोमा ने आईआईएम से पढ़ाई की है। इनका सफर मुंबई से सन 2013 में शुरू हुआ। नील हमेशा से ही गरीब बच्चों की मदद करना चाहते थे वे गरीब बच्चों को मुख्य धारा में लाने के लिए हमेशा प्रयास भी करते थे और उनके इस प्रयास को ज़ाया लर्निंग लैब ने पूरा कर दिया। आज जाया 50 स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहा है और लगभग 20 हजार बच्चे ज़ाया लर्निंग लैब के माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
भारत के बाद जाया का लक्ष्य जांबिया और बाकी देशों में जाने का हैं। ज़ाया के कोर्स का कंटेंट ब्लेंडिंग लर्निंग तकनीक पर आधारित है जहां कक्षा में अध्यापक और छात्रों दोनों को बराबर भाग लेना होता है। जबकि परंपरागत शिक्षण तकनीक में केवल 1 तरफ से ही यानी टीचर बताती है और बच्चे सुनते हैं। नील बताते हैं कि नेट में अच्छे डिजिटल कंटेंट की प्रचूरता है लेकिन गरीब बच्चे उसका उपयोग नहीं कर पाते इसलिए उनके लिए वो किसी काम का नहीं होता। ऐसे में ज़ाया लर्निंग लैब का हार्डवेयर सोल्यूशन प्रोडक्ट क्लास क्लाउड गरीब बच्चों को वही जरूरी शिक्षा प्रदान कर रहा है क्लास क्लाउड का प्रयोग वाईफाई के माध्यम से किसी भी मोबाइल, लैपटॉप या फिर टैब में किया जा सकता है। ये एक पोर्टेबल डिवाइस है। इसके प्रयोग के लिए इंटरनेट के इस्तेमाल की भी कोई जरूरत नहीं होती ।
तकनीक के प्रयोग का शिक्षण में ऐसा प्रयोग शायद ही पहले कभी हुआ हो। ज़ाया को पीयरसन अफोरडेबल लर्निंग फंड की तरफ से आर्थिक मदद मिलती है। इसके अलावा भवितोष वाजपेयी भी इनकी मदद करते हैं भवितोष बार्कलेय कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर काम कर रहे हैं।
बाकी स्टार्टअप की तरह ही ज़ाया लर्निंग लैब की टीम काफी यंग है। नील अपनी सफलता का श्रेय भी अपनी यंग टीम को ही देते हैं। वे बताते हैं कि उनकी टीम के पास भले ही अनुभव कम हो लेकिन उनके पास बिलकुल नए और बेहतरीन आईडियाज रहते हैं । पिछले साल इनकी टीम 5 से बढ़कर 30 की हो गई और अभी भी कंपनी का विस्तार लगातार हो रहा है।