वृद्धजनों, महिलाओं, अशिक्षित लोगों और दिव्यागों के लिए वरदान साबित हो रही हैं बैंक सखियाँ
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
बैंक सखी की वजह से रेखा जैसी कई महिलाओं के लिए बैंक से जुड़े कामकाज आसान हो गए हैं। अब उन्हें अपने गाँव से दूर बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ती। बैंक में ग्राहकों की लम्बी लाइन में खड़े रहने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता।
महत्वपूर्ण बात यह भी है जरूरत पड़ने पर बैंक सखी ग्राहक के घर पर जाकर भी उनकी मदद करती हैं। बड़ी बात यह भी है कि बैंक सखी चौबीसों घंटे यानी हर समय मदद के लिए तैयार रहती हैं।
48 साल की रेखा साहू राजनांदगांव जिले के आरला गाँव की रहने वाली हैं। बहुत पहले उनके पति की मृत्यु हो गयी थी। उन्हें सरकार की विधवा पेंशन योजना के तहत 350 रुपए हर महीने मिलते हैं। रेखा साहू के पास करीब 2 एकड़ की जमीन है, और इसी पर वे खेतीबाड़ी भी करती हैं। किसानी की वजह से रेखा को महीने में 7 से 8 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। किसी तरह घर-परिवार की जरूरतें पूरी हो रही हैं। रेखा की एक बिटिया भी है।
रेखा साहू जैसी कई महिलाओं के लिए ‘बैंक सखी’ वरदान साबित हुई हैं। बैंक सखी की वजह से रेखा जैसी कई महिलाओं के लिए बैंक से जुड़े कामकाज आसान हो गए हैं। अब उन्हें अपने गाँव से दूर बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ती। बैंक में ग्राहकों की लम्बी लाइन में खड़े रहने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। बैंक में रुपये जमा करने और निकालने के लिए अब लोगों से मदद की गुहार लगानी नहीं पड़ती है। बैंक में अब घंटों समय बिताने की जरूरत भी नहीं रह गयी है। बैंक सखी ने रेखा साहू जैसी कई महिलाओं की कई सारी तकलीफों को दूर कर दिया है।
बैंक से जुड़ा कोई भी कामकाज हो अब रेखा साहू जैसे लोग सीधे बैंक सखी के पास जाते हैं। बैंक सखी गाँव में ग्राहक सेवा केंद्र चलती हैं और वे बैंकों का कामकाज करने के लिए अधिकृत हैं । बैंक सखी के पास लैपटॉप होता है और वे इसी की मदद ने बैंकिंग कामकाज में ग्रामीणों की मदद करती हैं। बैंक सखियों के पास माइक्रो एटीएम होता है, जिसके माध्यम से वे तुरंत पैसा आहरित कर ग्रामीणों को उपलब्ध करा देती हैं। जिन गांवों में ग्राहक सेवा केंद्र के माध्यम से बैंक सखी ऑपरेट कर रही हैं, वहां वाइस मैसेज के माध्यम से उपभोक्ताओं को आहरण की जानकारी मिल जाती है, साथ ही रसीद भी मिल जाती है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है जरूरत पड़ने पर बैंक सखी ग्राहक के घर पर जाकर भी उनकी मदद करती हैं। बड़ी बात यह भी है कि बैंक सखी चौबीसों घंटे यानी हर समय मदद के लिए तैयार रहती हैं।
बैंक सखी किस तरह से ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही हैं याह बात समझाने के लिए रेखा साहू एक किस्सा बताती हैं। एक बार अचानक रात में रुपयों की जरूरत आन पड़ी। उन्हें यह रुपये लेकर किसी कार्यक्रम न शिरकत करनी थी। रात 8 बजे उनकी मदद करने वाला भी कोई नहीं था। संकट की स्थिति में उन्हें बैंक सखी की याद आयी और उन्होंने अपने गाँव की बैंक सखी टेमिन को फोन लगाया। बैंक सखी स्थिति और परिस्थिति दोनों को समझ गयीं और उन्होंने रात में लैपटॉप और माइक्रो एटीम के ज़रिये काम कर रेखा को आठ हजार रुपये दिए।
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