वो सुपरस्टार जिसने सबको अपने सपनों पर यकीन करना सिखा दिया
राजेश खन्ना को ऐसे ही सुपर स्टार नहीं कहा जाता था। उनसे पहले के स्टार राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए भी लोग पागल रहते थे लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि जो दीवानगी राजेश खन्ना के लिए थी, वैसी पहले या बाद में कभी नहीं दिखी...
उनकी आवाज बहुत भारी और मर्दाना नहीं थी लेकिन उसमें एक अजीब सी नफासत थी, ईमानदारी थी, जो दर्शकों को ये अहसास दिलाती थी कि जो कुछ भी वो कह रहे हैं वो महज फिल्मी डायलाग नहीं, बल्कि वही सच है।
राजेश खन्ना, एक राजसी किरदार! वो व्यक्तित्व जिसे देखकर लगता है, कि हो न हो स्वर्ग के देवता ऐसे ही होते होंगे। सम्मोहक मुस्कान, स्निग्ध चेहरा, रौबीली चाल, खनकदार लेकिन सौम्य आवाज, इतनी सारी विशेषता तो किसी खास व्यक्ति में ही हो सकती हैं। राजेश खन्ना को ऐसे ही सुपर स्टार नहीं कहा जाता था। उनसे पहले के स्टार राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए भी लोग पागल रहते थे लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि जो दीवानगी राजेश खन्ना के लिए थी, वैसी पहले या बाद में कभी नहीं दिखी। राजेश खन्ना के बालों का स्टाइल हो या ड्रैसअप होने का तरीका, उनकी संवाद अदायगी हो या पलकों को हल्के से झुकाकर, गर्दन टेढी कर निगाहों के तीर छोड़ना, उनकी हर अदा कातिलाना थी। उनकी फिल्मों के एक-एक रोमांटिक डायलॉग पर सिनेमाघरों के नीम अंधेरे में सीटियां ही सीटियां गूंजती थी।
बॉलीवुड में राजेश खन्ना को प्यार से ‘काका’ कहा जाता था जब वह सुपरस्टार थे तब एक कहावत बड़ी मशहूर थी- ऊपर आका और नीचे काका।
हिन्दी फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना के जीवन की तहें खोलती किताब ‘राजेश खन्ना: कुछ तो लोग कहेंगे’ में इस रूमानी अभिनेता को कुछ यूं ही बयां किया गया है। किताब के अनुसार, ‘उनकी आवाज बहुत भारी और मर्दाना नहीं थी लेकिन उसमें एक अजीब सी नफासत थी, ईमानदारी थी, जो दर्शकों को ये अहसास दिलाती थी कि जो कुछ भी वो कह रहे हैं वो महज फिल्मी डायलाग नहीं, बल्कि वही सच है। जो वादा वो महबूबा से, अपनी मां से, अपनी बहन या अपने दोस्त से कर रहे हैं, समझ लो कि वो हर हाल में उसे पूरा करेंगे। शायद उनकी बेमिसाल महिला फैन फालोइंग की वजह भी यही थी।’
जतिन खन्ना से राजेश खन्ना बनने तक का सफर
29 दिसंबर 1942 को राजेश खन्ना का जन्म अमृतसर में हुआ था और उनकी परवरिश उनके दत्तक माता-पिता ने की। उनका नाम पहले जतिन खन्ना था। स्कूली दिनों से ही राजेश खन्ना का झुकाव अभिनय की ओर हो गया था और इसी के चलते उन्होंने कई नाटकों में अभिनय भी किया। सपनों के पंख लगने की उम्र आयी तो जतिन ने फिल्मों की राह पकड़ने का फैसला किया। यह दौर उनकी जिंदगी की नयी इबारत लिखकर लाया और उनके चाचा ने उनका नाम जतिन से बदल कर राजेश कर दिया। इस नाम ने न केवल उन्हें शोहरत दी बल्कि यह नाम हर युवक और युवती के ज़ेहन में अमर हो गया।
बात साठ के दशक की शुरुआत की हैं जब राजेश खन्ना कॉलेज में पढ़ रहे थे, उस समय यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स ऑफ़ फ़िल्म फेयर नाम से एक संस्था एक्टिंग से जुड़ा आल इंडिया कांटेस्ट करती थी, जिसमें राजेश खन्ना ने भी भाग लिया और कहा जाता हैं कई हज़ार लोगो को हराकर राजेश ने, न सिर्फ ये कांटेस्ट जीता बल्कि अपनी पहली फिल्म पाने में भी कामयाब रहे। उनकी पहली फिल्म रही 1966 में आई आखिरी खत जिसे चेतन आनंद ने बनाया था। इस फिल्म में राजेश खन्ना का किरदार छोटा सा ही था। आखिरी खत के बाद उन्हें रविंद्र दवे की फिल्म राज में काम करने का मौका मिला। यह फिल्म भी प्रतियोगिता जीतने का ही पुरस्कार थी। इस फिल्म में लोगो ने राजेश को देखा और उनके काम को सराहा भी। इसके बाद उन्होंने औरत, डोली, बहारों के सपने जैसी फिल्म की और फिर आई उनकी फिल्म आराधना जिसने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। जिसके बाद राजेश खन्ना ने 1969-1972 में लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दी और इसी फिल्म के कारण उन्हें बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार होने का खिताब मिला।
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जिस दौर में राजेश खन्ना सुपरस्टार हुए उस दौर में दिलीप कुमार और राज कपूर के अभिनय का डंका बजता था और किसी को अहसास भी नहीं था कि एक ‘नया सितारा’ शोहरत के आसमान पर कब्जा करने के लिए बढ़ रहा है। 1969 में आयी ‘आराधना’ ने बॉलीवुड में ‘काका’ के दौर की शुरुआत कर दी। ‘आराधना’ में राजेश खन्ना और हुस्न परी शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का वो गजब चित्रण किया कि लाखों युवतियों की रातों की नींद उड़ने लगी और ‘काका’ प्रेम का नया प्रतीक बन गए।
‘आराधना’ और ‘हाथी मेरे साथी’ राजेश खन्ना की ऐसी सुपरहिट फिल्में थीं, जिन्होंने बॉक्स आफिस पर सफलता के सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। उन्होंने 163 फिल्मों में काम किया, जिनमें से 106 फिल्मों को उन्होंने सिर्फ अपने दम पर सफलता प्रदान की। 22 फिल्में ऐसी थीं जिनमें उनके साथ उनकी टक्कर के अन्य नायक भी मौजूद थे। राजेश खन्ना ने लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं। इस रिकॉर्ड को आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है और इसी के बाद बालीवुड में ‘सुपरस्टार’ का आगाज हुआ। उन्हें अपनी अदायगी के लिए तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया और इस पुरस्कार के लिए उनका 14 बार नामांकन हुआ।
वर्ष 2005 में राजेश खन्ना को ‘फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार प्रदान किया गया। अपनी रोमांटिक छवि के बावजूद राजेश खन्ना ने विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं अदा की जिनमें लाइलाज बीमारी से जूझता आनंद, ‘बावर्ची’ का खानसामा, ‘अमर प्रेम’ का अकेला पति और ‘खामोशी' का मानसिक रोगी की भूमिका शामिल थी। बॉलीवुड का यह स्वर्णिम दौर था और राजेश खन्ना की अदाकारी के लिए यह सोने पर सुहागा साबित हुआ और उन्हें अपने समय के कला पारखियों के साथ काम करने का मौका मिला। फिर चाहे वे फिल्म निदेशक रहे हों या अभिनेत्रियां और संगीतकार। राजेश खन्ना की प्रतिभा को शक्ति सामंत, यश चोपड़ा, मनमोहन देसाई, श्रृषिकेष मुखर्जी तथा रमेश सिप्पी ने निखारने का काम किया। आर डी बर्मन जैसी संगीतकार और किशोर कुमार के साथ राजेश खन्ना ने 30 से अधिक फिल्मों में काम किया। अभिनय के मामले में राजेश खन्ना की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों का जब भी ज़िक्र आता है तो श्रृषिकेष मुखर्जी की आनंद का नाम जरुर लिया जाता है। इस फिल्म में राजेश खन्ना ने कैंसर पेशेंट का किरदार निभाया था, लोग आज भी इस फिल्म को लोग याद करते हैं।
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एक कुशल राजनेता भी
राजेश खन्ना 1992 से लेकर 1996 तक बतौर लोकसभा के सदस्य रहे। वह कांग्रेस के टिकट पर नयी दिल्ली सीट से जीते थे। राजीव गांधी के कहने पर राजेश खन्ना राजनीति में आए। जब वह सांसद थे तो उन्होंने अपना पूरा समय राजनीति को दिया और अभिनय की पेशकशों को ठुकरा दिया। उन्होंने वर्ष 2012 के आम चुनाव में भी पंजाब में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया था।
स्टारडम का जलवा
राजेश खन्ना का बॉलीवुड में कोई गॉड फादर नहीं था, काम पाने के लिये उन्हें निर्माताओं के दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े लेकिन स्ट्रगलर होने के बावजूद वह इतनी महंगी कार में निर्माताओं के यहां जाते थे, कि उस दौर के सफल अभिनेताओं के पास भी वैसी कार नहीं होती थी। निर्माता-निर्देशक राजेश खन्ना के घर के बाहर लाइन लगाए खड़े रहते थे। वह मुंहमांगे दाम चुकाकर उन्हें साइन करना चाहते थे। पाइल्स के ऑपरेशन के लिए एक बार राजेश खन्ना को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पताल में उनके इर्द गिर्द के कमरे निर्माताओं ने बुक करा लिए, ताकि मौका मिलते ही वह राजेश को अपनी फिल्मों की कहानी सुना सकें।
अपनी फिल्मों के संगीत को लेकर राजेश हमेशा सजग रहते थे। वह गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त स्टूडियो में रहना पसंद करते थे और अपने सुझाव संगीत निर्देशकों को बताते थे। राजेश ने अपने फिल्मी करियर में 160 फीचर फिल्म और 17 लघु फिल्मों में काम किया।
राजेश खन्ना ने एक बार बताया था, ‘ये बात कोई नहीं जानता लेकिन आनंद की शूटिंग मेरे कैरियर के सबसे व्यस्त दौर में हुई थी। अब मेरे पास किलों के हिसाब से फिल्में तो थी, मगर डेट्स नहीं थीं। मुझ पर ज्यादा काम लेने, अव्यवस्थित और लालची होने तक के आरोप लगे, लेकिन मैं ऐसा नहीं था। मेरी परेशानी ये थी कि मुझे ‘ना’ कहना नहीं आता था।' उनका कहना था, कि वह अपनी जिंदगी से बेहद खुश थे। दोबारा मौका मिला तो वह फिर राजेश खन्ना बनना चाहेंगे और वही गलतियां दोहराएंगे। वो हमारे बीच नहीं हैं पर अपनी फिल्मों और निभाए गए अपने किरदारों से हमेशा अपने चाहने वालों के बीच वो बने रहेंगे। क्योंकि 'आनंद' मरा नहीं करते।
-प्रज्ञा श्रीवास्तव