खेल-खेल में बड़े-बड़ों के खेल
निकट अतीत पर नजर दौड़ाएं तो शायद एक भी खेल ऐसा न लगे, जिसका विवादों से नाता न रहा हो। बात यह भी सच है कि जहां पैसा बरस रहा हो, वहां विवाद न हो, भला कैसे मुमकिन है। तभी तो, जब देश के तमाम राज्य सूखे से जूझ रहे होते हैं, आईपीएल का खुमार हर सिर पर सवारी करने लगता है...
अब तो एक ही सवाल भारतीय खेल प्रेमियों को बार-बार आए दिन मथता है, कि खेल-खेल में आखिर कितने खेल और कब तक, क्यों! जैसेकि खेल, खेल न हुआ, खुराफातों का अंतहीन ओलिंपिक हो गया हो। भांति-भांति के विवादों से चोली-दामन जैसा नाता। खेल-खेल में खेल-विवादों के ये सिलसिले अब जितना चिंतित और निरुत्तरित करने लगे हैं, उससे ज्यादा विक्षुब्ध। भारतीय खेल जगत को एक और ताजा झटका 02 जून 2017 को उस वक्त लगता है, जब मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा बीसीसीआई परिचालन के लिए सुप्रीम कोर्ट की गठित प्रशासन समिति से इस्तीफा देते हुए सात गंभीर सवाल जड़ जाते हैं...
गुहा के आरोप हैं कि 'सीओए शुरू से ही हितों के टकराव को सुधारने में नाकाम रहा है। सुनील गवास्कर एक कंपनी के हेड हैं, जो क्रिकेटरों का प्रतिनिधित्व करती है और कमेंट्री भी करते हैं। महेंद्र सिंह धोनी भी एक कंपनी में मालिकाना हक रखते हैं। धोनी को ए-ग्रेड अनुबंध क्यों दिया जा रहा है, जबकि वह टेस्ट से संन्यास भी ले चुके हैं। कोच अनिल कुंबले के कॉन्ट्रेक्ट को गैर-पेशेवर तरीके से क्यों हैंडल किया जाता है। मौजूदा खिलाड़ियों को पास कोच-कमेंटेटर बनाने का वीटो पावर होना क्या सही है?'
इस साल की एक सुबह जब सारा देश नए साल के जश्न से सराबोर हो रहा होता है, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में व्याप्त अनिमियतताओं पर सुप्रीम कोर्ट अपना ‘तीसरा नेत्र’ खोलता है। तत्कालीन अध्यक्ष अनुराग ठाकुर सुझावों को ठुकराते हुए कमिटी और सुप्रीम कोर्ट का निरादर करते हैं। उन्हें पद से हटा दिया जाता है। और देखते-ही-देखते वह पूरा वाकया भारतीय क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी घटना बन जाता है। बीसीसीआई का रवैया कुछ इस रूप में सामने आता है, कि जैसे देश में लोकतंत्र नदारद हो चुका हो। सुप्रीम कोर्ट को यह बताना पड़ता है कि 'भारत में लोकतंत्र से बड़ा कुछ नहीं, अगर कोई है तो वो भारत का नहीं।' ऐसा भी नहीं कि बीसीसीआई का वह कोई पहला विवाद रहा हो, उससे पहले क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड का विवाद, ललित मोदी, जगमोहन डालमिया, श्रीनिवासन के वाकये, स्पॉट फिक्सिंग, श्रीसंथ, धोनी, साक्षी धोनी, बिंदु दारा सिंह आदि के विवादों की कड़ियां।
अब तो एक ही सवाल भारतीय खेल प्रेमियों को बार-बार आए दिन मथता है कि खेल-खेल में आखिर कितने खेल और कब तक, क्यों! जैसेकि खेल, खेल न हुआ, खुराफातों का अंतहीन ओलिंपिक हो गया हो। भांति-भांति के विवादों से चोली-दामन जैसा नाता। खेल-खेल में खेल-विवादों के ये सिलसिले अब जितना चिंतित और निरुत्तरित करने लगे हैं, उससे ज्यादा विक्षुब्ध।
भारतीय खेल जगत को एक और ताजा झटका 02 जून 2017 को उस वक्त लगता है, जब मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा बीसीसीआई परिचालन के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठिन प्रशासन समिति (सीओए) से इस्तीफा दे देते हैं। जाते-जाते वह सीओए अध्यक्ष और पूर्व सीएजी विनोद राय पर सात सवाल जड़ जाते हैं। इससे क्रिकेट जगत में एक बार फिर बवंडर मच गया है। गुहा के आरोप हैं कि सीओए शुरू से ही हितों के टकराव को सुधारने में नाकाम रहा है। सुनील गवास्कर एक कंपनी के हेड हैं, जो क्रिकेटरों का प्रतिनिधित्व करती है और कमेंट्री भी करते हैं। महेंद्र सिंह धोनी भी एक कंपनी में मालिकाना हक रखते हैं। धोनी को ए-ग्रेड अनुबंध क्यों दिया जा रहा है, जबकि वह टेस्ट से संन्यास भी ले चुके हैं। कोच अनिल कुंबले के कॉन्ट्रेक्ट को गैर-पेशेवर तरीके से क्यों हैंडल किया जाता है। मौजूदा खिलाड़ियों के पास कोच-कमेंटेटर बनाने का वीटो पावर होना क्या सही है। सीओए घरेलू क्रिकेट को नजरअंदाज कर आईपीएल को तरजीह देता है क्योंकि उसमें ज्यादा पैसा है।
निकट अतीत पर नजर दौड़ाएं तो शायद एक भी खेल ऐसा न लगे, जिसका विवादों से नाता न रहा हो। बात यह भी सच है, कि जहां पैसा बरस रहा हो, वहां विवाद न हो, भला कैसे मुमकिन है। तभी तो, जब देश के तमाम राज्य सूखे से जूझ रहे होते हैं, आईपीएल का खुमार हर सिर पर सवारी करने लगता है। कुछ ऐसे विवादों की कड़ी में महाराष्ट्र से मैचों को जयपुर स्थानांतरित करने के एक मुद्दे पर भी राजस्थान हाईकोर्ट को दखल देते हुए कहना पड़ता है कि राजस्थान सूखे से जूझ रहा है, ऐसे में वहां मैचों को क्यों स्थानांतरित किया गया? बात ओलिंपिक की हो, फुटबॉल की, क्रिकेट अथवा और किसी खेल की, सबके विवाद सुर्खियों में आते रहते हैं। इससे कई एक होनहार खिलड़ियों का कॅरिअर तो चौपट होता ही है, हर वक्त खेल प्रेमियों का मिजाज भी तपता रहता है और उस पर सिंकती रहती हैं सियासत और ब्यूरोक्रेसी की रोटियां।
आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग अथवा लोढ़ा पैनल के मामले सामने आते हैं तो बीसीसीआई में सफाई अभियान का जिम्मा सुप्रीम कोर्ट को लेना पड़ता है। एक्शन में ही पूरा एक साल गुजर जाता है। बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर पूरे साल अपनी तरह से अपना पक्ष खोलते रहते हैं। रियो ओलिंपिक के वक्त भारतीय कुश्ती संघ का कोटा विवाद, सुशील कुमार के डोप टेस्ट का मसला सामने आता है।
इसी तरह कभी टेनिस संघ का चुनाव, तो कभी ओलिंपिक में खिलाड़ियों का चयन विवाद का विषय बन जाता है। रियो ओलिंपिक में हमारा देश इसका खामियाजा भुगत चुका है। लिएंडर पेस और रोहन बोपन्ना कोर्ट में फेल हुए। मिक्स्ड डबल्स में बोपन्ना और सानिया मिर्जा की जोड़ी ने पदक का अवसर खोया। एक अलग तरह का विवाद भारतीय हॉकी टीम के कप्तान सरदार सिंह पर भारतीय मूल की ब्रिटिश लड़की से रेप के आरोप के रूप में सुर्खियों में आता है।
रियो ओलिंपिक के समय खेल मंत्री विजय गोयल का एक्रेडिटेशन रद्द होने का मामला भी देश-दुनिया में गूंज जाता है। मैराथन के दौरान ओपी जैशा को पीने के लिए पानी नहीं दिया जाता है, उनके आरोप से पूरा खेल जगत हिल उठता है। डोपिंग की कालिख तो भारतीय खेलों पर अक्सर छाई ही रहती है।