बचपन में नाना से महाभारत सुनते-सुनते पंडवानी पुरोधा बन गईं लोक गायिका तीजनबाई
इस छत्तीसगढ़ी लोक गायिका ने बड़े-बड़ों को पीछे छोड़ा
जिस तरह लक्ष्मी बाई के बारे में लिखा जाता है- नाना के संग पढ़ी-लिखी थीं, नाना के संग खेली थीं, कुछ वैसी ही जीवन गाथा है पंडवानी की छत्तीसगढ़ी लोक गायिका तीजन बाई की। कुछ दिन पहले उनके निधन की झूठी खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। तीजन जिस लोक गायन से दुनिया भर में विख्यात हुईं, बचपन में उसका प्रशिक्षण उन्हें अपने नाना से मिला था।
बारह साल की उम्र में तीजन की शादी कर दी गई थी। इसके बाद उनके पांडवानी परफॉर्म करने पर लोग आपत्तियां जताने लगे लेकिन लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। आस-पास के लोगों ने भी उन्हें गाने के लिए बुलाना शुरू कर दिया।
सोशल मीडिया की झूठी सुर्खियां कभी-कभी ऐसी सनसनी फैला देती हैं कि हकीकत पता चलने पर लोग माथा पकड़ लेते हैं। पिछले दिनो एक ऐसी झूठी खबर वायरल हुई छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध पंडवानी लोक गायिका पद्मश्री तीजन बाई के निधन की। इस वाहियात खबर से तीजनबाई के चाहने वाले करोड़ों लोगों में मायूसी फैल गई। भिलाई के गाँव गनियारी में 24 अप्रैल 1956 को जन्मी इस पंडवानी पुरोधा को संगीत नाटक अकादमी की ओर से नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है। इससे पहले भारत सरकार ने उनको पद्मश्री, फिर पद्म भूषण से भी अलंकृत किया था।
छत्तीसगढ़ वैसे भी अपनी लोक सांस्कृतिक पहचान के लिए अलग से जाना जाता है। कभी यहां के लोक कलाकार दाऊ रामचन्द्र देशमुख गांव-गांव घूमकर चंदैनी गोंदा से लोक संस्कृति को स्वर देते रहे थे। दाऊ महासिंह चन्द्राकर बचपन में एक राऊत कलाकार के बांस गीत से इतना प्रभावित हुए कि लोककला के लिए पूरी जिन्दगी ही समर्पित कर दी। वह लंबे समय तक छत्तीसगढ़ी के सुवा, करमा, ददरिया जंवारा, गौरा, भोजली, पंडवानी, देवारगीत, नाचा गम्मत चन्द्रांकरजी मंच, आकाशवाणी, दूरदर्शन पर प्रस्तुत करते रहे।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अन्चलों में नाचा लोक संस्कृति का आधार है। दुलार सिंह मंदराजी को छत्तीसगढ़ी 'नाचा' का भीष्म पितामह कहा जाता है। इसी तरह राष्ट्रपति से स्वर्णपदक से सम्मानित पंथी नर्तक देवदास बंजारे, लोक गायक मानदास टंडन, झुमुकदास बघेल, झुमुकदास और निहाईकदास बघेल, चंदैनी गायक चिन्तादास बंजारे, केदार यादव, खुमान साव, संत रविदास के भक्त गंगाराम शिवारे, अभिनय में भी दक्ष लोक गायक भैयालाल हेड़ाऊ, बांस के टुकना बनाते-बनाते गायन में मस्त हो जाने वाले धुरवाराम मरकाम, पंचराम मिरझा, देवार गाथा के लोक कलाकार कौशल देवार, शेख हुसैन, 'मयारु लोककला मंच' के अरुण यादव, 'सुर सुधा' के शिवकुमार तिवारी, लोक गायक मिथलेश साहू, जनप्रिय कलाकार एवं गायक नवलदास मानिकपुरी, बैतल राम साहू, बरसाती भइया, 'मांग के सिन्दूर' के संचालक खुमान यादव, भोजली के संचालक पद्मलोचन जयसवाल, छत्तीसगढ़ी गायन, अभिनय और संगीत के धनी राकेश तिवारी, लोक अभिनेता दीपक चन्द्रांकर, गणेश यादव, संतोष शुक्ला आदि छत्तीसगढ़ की मिट्टी में रचे-बसे हैं।
लेकिन इस राज्य में लोक गायिकाओं की अपनी एक अलग सुदीर्घ परंपरा रही है, उसी की एक अलग कड़ी हैं तीजन बाई। उनके अलावा विदेशों में भी धूम मचाने वाली नाचा की मशहूर कलाकार फिदाबाई मरकाम, पारम्परिक लोकगायिका सुरुजबाई खाण्डे, बचपन से संगीत में रमी किस्मत बाई देवार, कंठ कोकिला जंयती देवार, चंदैनी गोंदा गायिका साधना यादव और बासंती देवार, भरथरी गायिका रेखा जलक्षत्री, निर्मला ठाकुर और ननकी ठाकुर, ममता चन्द्राकर, रजनी रजक, कुलवन्तिन बाई के सुर भी यहां के गांव-गांव में गूंजते रहते हैं।
तीजनबाई गीति-नाट्य शैली की पहली महिला कलाकार मानी जाती हैं। यद्यपि उन्हें सामान्य तौर पर लोकगायन शैली 'पंडवानी' की गायिका कहा जाता है। तीजन के मायने होता है झुनझुनी यानी करंट, झनझनाहट। इस समय तीजनबाई की सेहत ठीक है। सीने में दर्द की शिकायत पर बीते शनिवार को उन्हें भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) के सेक्टर-9 स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके निधन की अफवाह फैलने से पहले घटनाक्रम क्रम कुछ यूं हुआ कि बीते शनिवार को 'भिलाई एंथम' की लॉंचिंग हुई, जिसमें तीजनबाई को बतौर अतिथि पहुंचना था, लेकिन इससे पहले ही वे अस्पताल में भर्ती हो गईं। इसके बाद सोशल मीडिया पर उनके बारे में गलत सूचना फैला दी गई।
देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली तीजनबाई को बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी नन्ही तीजन बचपन में अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते-सुनाते देखा करती थीं। धीरे-धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर लोक गायक उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। तेरह वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गाया करती थीं, जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे।
तीजनबाई ही वह पहली महिला रहीं, जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। एक दिन ऐसा भी आया, जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया। प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुँदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता है।
कभी दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस वक्त में ले पहुँचता है, जहाँ वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज़ और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी प्रस्तुति की सम्मोहक विधाएं हैं। दरअसल, तीजनबाई एक मिश्रित कलाकार हैं। वह स्वयं नायक भी हैं, नायिका भी, गायिका भी, निर्देशिका भी, अभिनेता भी, मौखिक संवाद लेखिका भी और उनके अनुकूल बनी पात्र भी।
तीजनबाई ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। वह खुलेआम अपने सैकड़ों श्रोताओं के बीच कहती रहती हैं- 'हमारे जमाने में लड़कियों का स्कूल जाना अच्छा नहीं माना जाता था। लोग सोचते थे कि ऐसे भी खाना बना रही है, वैसे भी तो खाना ही बनाएगी, कभी नहीं भेजा गया हमें पढ़ने। सो, भइया हम ठहरे निरच्छर, अंगूठा छाप। आप लोग पढ़े-लिखे हो, कोई भूल-चूक कथा हो जाए, कथा इधर-उधर हो जाए तो माफ कर देना। हममें भी हर कमी है, चोरी भी की है बचपन में, खाने के लिए करती थी। दरवाजे को खींचकर ऊपर की ओर उठा देना और घुसकर चौके में खा लेना, फिर उसी तरह बंद कर अपने भाई-बहनों के बीच भूखे बने बैठे रहते थे, यही हमारी चोरी थी। तो हम ठहरे निरच्छर, हिंदी बहुत टूटी है हमारी, छत्तीसगढ़ी बोलती हूं, तो भइया कौनो गलती होए तो माफ करना।'
बारह साल की उम्र में तीजन की शादी कर दी गई थी। इसके बाद उनके पांडवानी परफॉर्म करने पर लोग आपत्तियां जताने लगे लेकिन लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। आस-पास के लोगों ने भी उन्हें गाने के लिए बुलाना शुरू कर दिया। वह अपने गाने में इतना डूब जातीं कि महाभारत के किरदार जीवंत हो उठते। तीजनबाई के साथी कलाकारों में कोरस गाने वाले साजिंदे अपनी एक विशेष स्थिति रखते हैं। युद्ध की गर्जना और तुमुल कोलाहल की वाचिक अभिव्यक्ति की सजीवता में वे बाई के बहुत बड़े पूरक बन जाते हैं। उनमें विशेष हैं हारमोनियम मास्टर, गाने के साथ-साथ मंच पर विदूषक की भूमिका में उनका स्वर होता है। बाई यूं तो वैदुष्य कला में भी माहिर हैं लेकिन हारमोनियम मास्टर का दखल लाजवाब है।
बाई जब किसी पात्र को संबोधित करती हैं तो उनका ‘काए!’ कहना श्रोताओं को ठहाके लगाने के लिए मजबूर कर देता है। अभी पिछले महीने ही भले बासठ साल की हो चुकी हों तीजन बाई लेकिन मंच पर उनकी चुस्ती-फुर्ती आज भी दर्शकों, श्रोताओं को उसी तरह बेसुध कर देती है। आज भी उनकी गायकी में उतना ही जोश और उत्साह भरा रहता है। अपने ओजपूर्ण गायन से वह महाभारत के विविध प्रसंगों को जीवंत कर देती हैं। गायन में कौरवों और पांडवों की द्युत क्रीड़ा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती हैं। जब वह गायन के साथ अभिनयात्मक संवाद करती हैं, पूरा मंच दर्शक दीर्घा को चकित-थकित कर देता है। दरअसल, पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है, जिसका अर्थ है पांडववाणी यानि महाभारत की कथा।
ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है। परधान गोंड की एक उपजाति है और देवार घुमन्तू जाति है। इन दोनों जातियों की बोली, वाद्यों में अन्तर है। परधान जाति के कथावाचक या वाचिका के हाथ में किंकनी होता है और देवारों के हाथों में रुख होता है। परधानों ने और देवारों ने पंडवानी लोक महाकाव्य को पूरे छत्तीसगढ़ में फैलाया। तीजन बाई ने पंडवानी को आज के संदर्भ में ख्याति दिलाई, न सिर्फ हमारे देश में, बल्कि विदेशों में।
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