बिना कोचिंग लिए दिया यूपीएससी एग्जाम, पांचवे प्रयास में बने आईएएस
अपने घर-परिवार की लाख फटेहाली के बावजूद, बिना कोचिंग लिए नासिक (महाराष्ट्र) के सैयद रियाज की 5वीं कोशिश सफल रही, सिविल सेवा परीक्षा में वह आईएएस सिलेक्ट हो गए। फिर तो पूरा परिवार ईद जैसी खुशियों से खिलखिला उठा।
बिना किसी शान-ओ-शौकत में पले, बिना कोचिंग लिए एक मामूली परिवार से अपनी जीवन यात्रा शुरू कर आईएएस बन चुके महाराष्ट्र के सैयद रियाज आज अगर अपने दौर के नौजवानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं, तो उनकी कामयाबी की मिसाल सिर्फ उनके जीवन का उजाला नहीं, बल्कि उनके हिस्से के जीवन का सबक पूरी युवा पीढ़ी की भी राह को रोशन कर रहा है। इसीलिए वह आज के नौजवानों को ये सीख देना भी अपनी जिम्मेदारी मान रहे हैं कि 'वे हिम्मत न हारें क्योंकि उनकी मंज़िल उनका इंतज़ार कर रही है।'
सिविल परीक्षा 2018 में 261वीं रैंक पर आईएएस सिलेक्ट हुए महाराष्ट्र के एक मामूली से परिवार से आने वाले सैयद रियाज़ अहमद की घरेलू जिंदगी जन्म से बेहद कठिनाइयों भरी रही है। उनके पिता मात्र तीसरी क्लास तक पढ़े हैं। उन्हें भी विरासत में मिली घर-गृहस्थी के हालात कुछ अच्छे नहीं रहे थे। कोशिश पैरवी से उन्हे सरकारी नौकरी मिल गई और घर की गाड़ी किसी तरह चलने लगी। रियाज के पिता से ज्यादा तो उनकी मां सातवीं क्लास तक पढ़ी हैं। माता-पिता दोनो ने कभी सपना देखा था कि उनकी यह प्रतिभाशाली औलाद आईएएस अफसर बन जाए।
पिता अक्सर रियाज को सीख दिया करते कि 'बेटा कामयाब होने के लिए अपनी कोशिशों में कोई कमी नहीं रखना, वरना वक़्त बड़ी बेरहमी से तुम्हारी एक-एक चूक का बदला ले सकता है। तब तुम्हारे सारे सपने धरे रह जाएंगे।' रियाज़ कहते हैं कि आज सिविल सेवा परीक्षा में सेलेक्ट हो जाने के बाद तो उनके वालिद की बातें उनके कानो में और जोर-जोर से गूंजने लगी हैं क्योंकि उनके सपनों को मंजिल भले मिल गई हो, उनकी तरह के तमाम नौजवान आज भी अपनी कमजोरियों के कारण ऊंची उड़ान नहीं भर पा रहे हैं।
सैयद रियाज की इतनी छोटी सी जिंदगी में एक वक़्त ऐसा भी आया था, पुणे यूनिवर्सिटी से ऑर्गेनिक केमेस्ट्री में जब ग्रेजुएशन कम्पलीट करने के दौरान वह नौजवानों की अगुवाई करने, उनको राह दिखाने के लिए कुछ समय तक राजनीति की राह पर चल पड़े थे, उन के सिर पर नेतागिरी का नशा सा छा गया था लेकिन एक बार फिर उनके वालिद की कही बातें उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा, पहला और आखिरी मकसद बन गईं। वह फिर उसी राह चल पड़े, जो उन्हे उनके सपनों की मंजिल की ओर ले जाती थी। वर्ष 2014-15-16-17 में सिविल सेवा की नौकरी के लिए उनके दो अटेम्ट तो निष्फल रहे, तीसरी कोशिश भी उन्हे मात्र इंटरव्यू तक ले जा सकी, चौथी कोशिश में भी नाकामयाब रहे।
वे दिन उनके लिए कितने भारी पड़ रहे थे, सोचकर वह आज भी अंदर तक हिल जाते हैं। वह अपने घर-परिवार, माता-पिता के सामने से भी गुजरने में झिझकने लगे थे। नाते-रिश्ते के लोग, परिचित-सुपरिचित हर कोई उनकी घर-गृहस्थी की हालत और इस तरह का रिस्क लेते देखकर ताने-उलाहने देने लगा था। गौरतलब है कि सिविल सेवा की परीक्षा में सफल होने के लिए लंबा वक्त तो लगता ही है, उसके बावजूद सेलेक्ट होने के चांसेज भी एकदम अनिश्चित होते हैं। लोग उनके वालिद से कहते कि बेटे की जिंदगी क्यों खराब करने पर आमादा हो, उसका शादी-ब्याह कर दो ताकि परिवार के लिए चार पैसे कमा-धमा सके।
ऐसे हर किसी के लिए उनके पिता का दो टूक जवाब होता कि रियाज की पढ़ाई में भले उनका घर-मकान भी बिक जाए, किसी भी कीमत पर वह अपने बेटे का सपना पूरा होते देखना चाहते हैं। पिता का यही हौसला रियाज के उस अंधेरे रास्ते की मशाल बना। सिविल सेवा परीक्षा में बार-बार असफल होने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते रहने के उन्ही दिनो में एक दूसरी तरह की पहली कामयाबी उनके कठिन वक़्त में रोशनी की किरण बनी। महाराष्ट्र फॉरेस्ट सर्विस में उन्हे नौकरी मिल गई। ट्रेनिंग के लिए वह उत्तराखंड भेज दिए गए। अब उनका घर वालों पर कोई आर्थिक बोझ नहीं रहा। चूंकि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की नौकरी उनके जीवन का लक्ष्य नहीं थी, वह चाहे जैसे भी अपना और अपने पिता का वह साझा सपना पूरा करने में फिर भी जुटे रहे और आखिरकार वह पूरा हो ही गया।
इस दौरान वह महाराष्ट्र में कुछ जानकारों से सिविल सेवा के परीक्षा के टिप्स लेते रहने के साथ ही जामिया मिलिया के सेल्फ स्टडी ग्रुप में भी शामिल हो गए थे। उन्होंने अपना वैकल्पिक विषय एंथ्रोपोलॉजी रखा, जिसमें उनको 306 नंबर मिले और आखिरकार, वह अपनी पांचवीं कोशिश में आईएएस सिलेक्ट हो गए। जब यह सुखद सूचना रियाज को मिली, यह अनमोल खुशी साझा करने के लिए सबसे पहले उन्होंने अपने पिता का मोबाइल नंबर मिलाया। उधर से फोन रिसीव होने के बाद कुछ पल के लिए तो खुशी से उनका गला इस तरह रुंध गया कि कंठ से कोई आवाज ही नहीं निकली, फिर जैसे ही उन्होंने सपना पूरा हो जाने की जानकारी वालिद को दी, पूरा परिवार ईद जैसी खुशियों से झूम उठा।
पिता ने भी राहत की सांस ली क्योंकि उनके बेटे को वह साझा सपने की मंजिल मिल चुकी थी, जिसके लिए बेटे की जिंदगी के कई कीमती साल जाया हो चुके थे और जिस वजह से उनका पूरा परिवार बिखरने की कगार तक पहुंच चुका था। बिना कोई कोचिंग लिए इतनी बड़ी सफलता मिल जाना रियाज के लिए भी कुछ कम हैरतअंगेज नहीं रहा। रियाज अपनी सफलता में सर जीआर कलाल, दोस्त रेना और इनाबत के मोटिवेशन को भी अपने परिवार जितना ही महत्व देते हैं।
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