'फीडऑन' के जरिए भूखों का पेट भर रहे अर्जुन और जेसी
अब तक बीस हजार भूखों को थाली परोस चुके दो छात्र
मंचों पर, लेखों, समाचारों में, गोष्ठियों में भूख पर बड़ी-बड़ी बातें करना, कारण गिनाना और बात है और ऐसे लोगों की मदद करना और बात। गुरुग्राम के दो छात्र दोस्त 'फीडऑन' नाम से अपनी संस्थान गठित कर वालंटियरों, रेस्तरां, होटलों की मदद से अब तक बीस हजार भूखे-दूखे लोगों को थालियां परोस चुके हैं। वे गरीब बच्चों को पिज्जा-बर्गर भी खिलाते हैं।
हमारे देश में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा कुपोषितों वाला राज्य है। यहां भूख से मौतों की खबरें आती रहती हैं। पिछले महीने ही प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक हफ्ते के भीतर एक मां और उसके दो बच्चों की भूख और कुपोषण से मौत हो गई।
भारत में भूख की दास्तान हरियाणा के गुरुग्राम (गुड़गांव) के दो स्कूली युवाओं अर्जुन साहनी और जेसी जिंदल से शुरू होती है। दोनो पिछले दो साल से भूखे लोगों का पेट भर रहे हैं। वे स्कूलों, निर्माणाधीन इमारतों, अनाथालयों और झुग्गी बस्तियों में अब तक लगभग बीस हजार खाने की थाली मुफ्त में जरूरतमंदों तक पहुंचा चुके हैं। उन्होंने 'फीडऑन' नाम से अपनी संस्था भी बना ली है। स्कूल से समय बचने के बाद दोनो मायूस, गरीब और भूखों की मदद के लिए निकल पड़ते हैं। अब तो उनकी मुहिम दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद तक पहुंच गई है। सबसे खास बात ये है कि इस अभियान को ज्यादातर स्कूली बच्चे चला रहे हैं। गुरुग्राम में 'फीडऑन' के सौ वॉलंटियर हैं।
अब तो कई लोग अपने जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ पर रेस्तरां का खाना लागत मूल्य पर खरीद कर 'फीडऑन' को उपलब्ध कराने लगे हैं। हमारे देश में भूख का सच कितना विचित्र है कि इसी सप्ताह ग्लोबल हंगर इंडेक्स आया है और इसी हफ्ते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को दक्षिण एशिया में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बताया है। इस रिपोर्ट ने भारत के विकास की चमक फीकी कर दी है। इस साल के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 119 देशों की सूची में भारत को 103 नंबर पर रखा गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की बनाने वाली एजेंसी 'कंसर्न वर्ल्डवाइड एंड वेल्टहुंगरहिल्फे' के मुताबिक भारत में शिशु मृत्यु दर के मामलों में सुधार आया है लेकिन कुपोषण के कारण बच्चों की लंबाई और वजन में कमी की दर, जो सन् 2000 में 17.1 फीसदी थी, वह अब बढ़ कर 20 फीसदी हो गई है। रिपोर्ट में इस हालात को 'सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपातकाल' की स्थिति बताया गया है।
हमारे देश में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा कुपोषितों वाला राज्य है। यहां भूख से मौतों की खबरें आती रहती हैं। पिछले महीने ही प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक हफ्ते के भीतर एक मां और उसके दो बच्चों की भूख और कुपोषण से मौत हो गई। ये परिवार आदिवासी और बेहद गरीब मुसहर समुदाय से था। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इसी इलाके के एक दूसरे गांव में मुसहर समुदाय के दो सगे भाइयों की मौत हो गई। इसी दौरान दस दिन के भीतर मुसहर समुदाय के छह लोगों ने भूख के कारण दम तोड़ दिया था। गांव वाले बताते हैं कि वे सभी मौतें भूख, गरीबी और कुपोषण के कारण हुई हैं लेकिन प्रशासन और सरकार का कहना है कि वे सभी बीमारी से मरे।
डुल्मा पट्टी के वीरेंद्र बताते हैं कि वे लोग खाने लायक किसी भी चीज को खाकर गुजारा करते हैं। उन्होंने अपने परिवार को खाना दिलाने के लिए कुछ दिन पहले अपनी हाथगाड़ी बेच दी। उसके बाद से दिहाड़ी मजदूर करने वाले वीरेंद्र को काम मिलना मुश्किल हो गया है। उनकी पत्नी संगीता का नाम 2017 में मनरेगा में रजिस्टर किया गया था, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिला। उनके घर पर भी अधिकारी मौत के बाद अनाज दे गए लेकिन वह हमेशा के लिए तो चलेगा नहीं। कुछ साल पहले उनके 10 साल के बेटे की मौत भी ऐसे ही हो गई थी। खाने के पैकेट्स और पैसों से मौत को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। हमारे देश में एक ओर जहां बच्चे और बड़े कुपोषण और भूख का सामना कर रहे हैं, वही गुरुग्राम के दो स्कूली युवा इस महानगर और इसके आसपास रह रहे हजारों ऐसे भूखों लोगों का पेट भरने में लगे हुए हैं।
अर्जुन साहनी और जेसी जिंदल गुरुग्राम के एक मशहूर स्कूल में पढ़ते हैं। दोनों वर्ष 2016 से भूखे लोगों का पेट भर रहे हैं। अर्जुन साहनी ने बताया कि करीब दो साल पहले उन दोनो ने सोचा था कि क्यों न वे अपनी पढ़ाई के अलावा कुछ ऐसा काम करें, जिससे भूखे लोगों की मदद हो सके। उन्होंने संकल्प लिया कि अब वह उन भूखे लोगों को ताजा, स्वच्छ और स्वादिष्ट खाना पहुंचाएंगे। उनके आसपास कई एक रेस्तरां हैं। उन्होंने गुरुग्राम के एक रेस्तरां के मैनेजर के सामने अपना प्रस्ताव रखा तो वह सहयोग के लिए तैयार हो गया। उसने पहले दिन खाने के बीस पैकेट फ्री में दिए। वे दोनो पहली बार सौ पैकेट खाना लेकर नगर के एक अनाथालय में पहुंचे। इसके बाद उन्होंने अपने इस काम को और व्यवस्थित किया। वे 'फीडऑन' नाम से अपने इस काम को एक अभियान की तरह चलाने लगे। उनके साथ कई और रेस्तरां, होटल जुड़ते चले गए। अब तक वे लगभग बीस हजार लोगों की भूख मिटा चुके हैं।
अर्जुन और जेसी का मानना है कि हमारे देश में भूख और कुपोषण की समस्या बहुत विकराल है। खास कर पोषण की कमी के कारण छोटे बच्चों को सही ढंग से शारीरिक विकास नहीं हो पाता है। भारत का नाम वैश्विक भूख सूचकांक में भी दर्ज है। दुनिया के कुपोषितों में से करीब 19 करोड़ लोग भारत में हैं। पिछले साल आई यूएन की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि वर्ष 2016 में दुनिया में कुपोषित लोगों की संख्या करीब 81 करोड़ थी और इसमें भारत का हिस्सा 23 फीसदी रहा। देश में पांच साल से कम उम्र के लगभग 38 फीसदी बच्चे भूख और कुपोषण से जूझ रहे हैं। जेसी ने बताया कि 'फीडऑन' ऐसे लोगों तक खाना पहुंचाता है, जिनके पास पौष्टिक खाने का विकल्प नहीं। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के स्वाद को देखते हुए उन्हें पिज्जा और बर्गर भी दिया जाता है।
एक तरफ भूख के आंकड़ों का सच हैं, दूसरी तरफ जुबानी लफ्फाजियां। झारखंड में पिछले साल 28 सितंबर को भात-भात कहते-कहते चल बसी ग्यारह साल की संतोषी की मौत के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भूख से हुई मौतों की एक सूची जारी की तो पता चला कि पिछले चार वर्षों में भुखमरी से कम-से-कम 56 मौतें हुईं, जिनमें से 42 मौतें 2017 और 2018 में हुई हैं। अभी इसी सप्ताह की बात है, उत्तर प्रदेश के बर्डपुर (सिद्धार्थनगर) में तीन दिन से बच्चों को भूख से तड़पते देख एक युवक अपनी बेबसी पर इस कदर शर्मिंदा हुआ कि उसने फंदा लगाकर अपनी जान दे दी। मोहाना क्षेत्र के बर्डपुर में हुई इस घटना ने पड़ोसियों को भी झकझोर दिया। उत्तर प्रदेश के रक्बा दुलमा पट्टी गांव के हालात भारत की खोखली योजनाओं की पोल खोलने के लिए पर्याप्त हैं। यहां पर लोग भूख की वजह से जान गंवाने पर मजबूर हो रहे हैं। वे चूहे भूनकर अपना पेट भर रहे हैं।
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