सावित्री बाई जैसी कई महिलाएं अब हथकरघा पर बुन रही हैं खुशहाली की नयी कहानियाँ
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
सरकार की कोशिशों की वजह से कई पारंपरिक बुनकर परिवार अपने पुराने व्यवसाय में लौट आये हैं और बहुत खुश हैं। ‘हर हाथ को काम’ के लक्ष्य को हासिल करने के मकसद से सरकार ने हाथकरघा उद्योग को खूब बढ़ाने का फैसला लिया है।
अगर महिला बुनकरों की बात की जाय तो स्कूली बच्चों के गणवेश सिलाई से प्रदेश में 660 महिला स्व-सहायता समूहों की लगभग छह हजार महिलाओं को रोजगार मिल रहा है।
55 साल की सावित्री बाई देवांगन अपने बेटे, बहु और तो नातियों के साथ राजनांदगांव जिले के सुकुलदैहान गाँव में रहती हैं। एक समय ऐसा था जब जीवन में बस मायूसी थी, निराशा थी। सारे पुरखे बुनर थे और हाथकरघा पर कपड़े बुना करते थे। लेकिन बाजार में पॉवरलूम के आने, रेडीमेड कपड़ों की धूम छाने के बाद हाथकरघा पर बने कपड़ों की मांग कम पड़ गयी। धीरे-धीरे पारंपरिक बुनकरों की आमदनी कम होने लगी। इसी वजह से कई बुनकरों ने हाथकरघा पर काम करना बंद कर दिया और रोजीरोटी के लिए अलग-अलग जगह, अलग-अलग काम करने लगे।
कुछ बुनकरों ने खेतों में मजदूरी शुरू की तो कुछ ने शहरों की ओर रुख किया और जो काम मिला वही करने लगे। सावित्री बाई का परिवार भी हथकरघा से दूर हो गया। उनके बेटे के परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मजबूरी करनी शुरू की। जिस दिन मजदूरी का काम मिलता उस दिन आमदानी होती और जिस काम नहीं उस दिन हाथ भी खाली और पेट भी। बड़ी मुश्किलों से भरे दिन थे वे। लेकिन दिन उस समय बदले जब गाँव में बुनकर सहकारी समिति सक्रिय हुई। समिति ने छत्तीसगढ़ सरकार विशेषकर राजनांदगांव जिला प्रशासन की मदद से बुनकरों को धागा मुहय्या करवाना शुरू किया।
इतना ही नहीं, यह सुनिश्चित किया जो कपड़ा समिति के सदस्य अपने-अपने हाथकरघा पर बुनते हैं वो सारा कपड़ा सरकार खुद खरीदे। इसके बाद सावित्री बाई के मकान में हाथकरघा पर काम फिर से शुरू हुआ। बहु अब हाथकरघा पर कपड़ा बनाती हैं। दिन में कम से कम आठ घंटे हाथकरघा पर काम होता है और इसकी वजह से अब सावित्री बाई के घर में महीने 9 से 12 हजार रुपये की आमदनी हो रही है।
सावित्री बाई अकेली नहीं हैं, उनके जैसी कई महिलाएं हैं जो वापस हाथकरघा पर लौट आयी हैं और खुशियों की नयी कहानी बुन रही हैं। सरकार की कोशिशों की वजह से कई पारंपरिक बुनकर परिवार अपने पुराने व्यवसाय में लौट आये हैं और बहुत खुश हैं। ‘हर हाथ को काम’ के लक्ष्य को हासिल करने के मकसद से सरकार ने हाथकरघा उद्योग को खूब बढ़ाने का फैसला लिया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने शासकीय वस्त्र प्रदाय योजना के तहत बुनकर सहकारी समितियों से हर महीने 19 लाख 50 हजार मीटर कपड़ा तैयार कराने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए हैं। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि छत्तीसगढ़ राज्य में 16 हजार 667 करघों पर लगभग 70 हजार बुनकर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार से संलग्न है। वर्ष 2016-17 में बुनकरों को लगभग 50 करोड़ रूपए का पारिश्रमिक वितरण किया गया।
अगर महिला बुनकरों की बात की जाय तो स्कूली बच्चों के गणवेश सिलाई से प्रदेश में 660 महिला स्व-सहायता समूहों की लगभग छह हजार महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश के बुनकर सहकारी समितियों द्वारा गणेवश कपड़े तैयार की जाती है। इन कपड़ों से ग्रामीण क्षेत्रों में महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा गणवेश तैयार कर शिक्षा विभाग में आपूर्ति की जा रही है। इस योजना से हाथकरघा बुनकरों के साथ-साथ समूह की महिलाओ को भी अतिरिक्त रोजगार मिल रहा है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए शिक्षा विभाग द्वारा 91 करोड़ 58 लाख रूपए की 45 लाख 79 हजार गणवेश सेट का मांग आदेश प्राप्त हुआ और अब तक 17 लाख 64 हजार गणेवश सेट की आपूर्ति की जा चुकी है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में 93 करोड़ रूपए की 47 लाख गणेवश सेट की आपूर्ति शिक्षा विभाग में की गई तथा स्व-सहायता समूह की महिलाओं को 16 करोड़ 33 लाख रूपए सिलाई पारिश्रमिक का वितरण किया गया।
"ऐसी रोचक और ज़रूरी कहानियां पढ़ने के लिए जायें Chhattisgarh.yourstory.com पर..."
यह भी पढ़ें: वृद्धजनों, महिलाओं, अशिक्षित लोगों और दिव्यागों के लिए वरदान साबित हो रही हैं बैंक सखियाँ