कदम-कदम बढ़ाये जा
यह सच है, कि ये धरती कुछ समय बाद खुल कर सांस लेने लायक भी नहीं बचेगी। इससे पहले इस धरती की हरियाली खतम हो जाये, परिंदे बेघर हो जायें और धूल की एक मोटी सी परत हमारे फेफड़ों में समा जाये, हर मनुष्य को योगेश गनोरे बनना होगा।
मनुष्य हर दिन नये आविष्कार कर रहा है, गाड़ियां बना रहा है, मशीनें बना रहा है, चाँद तक अपना परचम लहरा आया है और वहां भी अपना जीवन सोच रहा है... लेकिन एक चीज़ है जिसे हम बरबाद होने की हद तक पहुंचा चुके हैं और वो है हमारी पृथ्वी। वही पृथ्वी जिस पर हमारी गगनचुंबी इमारतें खड़ी हैं, मशीनें दौड़ रही हैं और हमारे सपने पंख फैलाये अपनी-अपनी बारियों का इंतज़ार कर रहे हैं, कि कब कतार छोटी हो और झट से हम भी कूद पड़ें।
क्या आपने कभी सोचा है, कि इस धरती को कैसे बचाना है? नहीं सोचा है न! सोच भी नहीं सकते, क्योंकि सब अपनी अपनी ज़िंदगियों में व्यस्त हैं। घर खर्च से लेकर घर की ईएमआई चुकाने में ज़िंदगी का एक-एक दिन अपनी रफ्तार से गुज़रता जा रहा, लेकिन क्या होगा जब सारी ईएमआई चुक जायेगी और यह यह धरती रहने लायक ही नहीं बचेगी। क्या करेगा मनुष्य उन मकानों, उन गाड़ियों, उन ज़मीनों का जिनके साथ भी वह एक दम-घोंटू हवा में सांस ले रहा होगा। यदि सबकुछ ऐसे ही चलता रहा, तो ये धरती कुछ समय बाद खुल कर सांस लेने लायक भी नहीं बचेगी। इससे पहले की सबकुछ खतम हो जाये, हर मनुष्य को योगेश गनोरे बनना होगा। प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ में उम्मीद की एक किरण हैं जबलपुर के योगेश गनोरे, जिन्होंने इस धरती को बचाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन संपर्पित कर दिया है। एक हरी-भरी दुनिया का सपना अपनी आंखों में बसाये गनोरे बारह सालों से हर दिन एक नया पौधा सुबह दस बजे लगाते हैं। आईये जानें योगेश गनोरे के उस स्वप्न के बारे में जो अपनी आँखों से वे पूरी दुनिया के लिए देख रहे हैं।
वैसे यह पूरी तरह सच है, कि मनुष्य ने पृथ्वी को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जहां मन में आता है कूड़ा डाल दिया जाता है। जिधर दिल करता है दिवारों और ज़मीनों को गंदा करके मनुष्य आगे बढ़ जाता है। नदियां सूख रही हैं, झीलों पर मिट्टी डालकर इमारतें खड़ी की जा रही हैं, पशु-पक्षी बेघर हो रहे हैं, पेड़ों को बेतहाशा काटा जा रहा है।
पेड़ सिर्फ वे ही काटते हैं, जो अपने हाथ से पौधा नहीं लगाते, उसमें पानी नहीं देते और बड़ा होते हुए उसे अपनी आंखों के सामने नहीं देखते। व्यक्ति जिसे जन्म देता है उसके खत्म होने की भी तकलीफ को सहता है और यही बात पौधारोपण पर भी लागू होती है। योगेश गनोरे मानते हैं, कि यदि व्यक्ति अपनी ज़िंदगी में सिर्फ एक पौधा भी अपने हाथ से लगाये, तो किसी भी दूसरे पेड़ के कट कर गिर जाने का दर्द वह भीतर तक महसूस कर सकेगा और अपनी इसी सोच को आकार देने के लिए इन्होंने "कदम संस्था" की नींव रखी।
कदम संस्था की शुरुआत 20 जनवरी 1995 को हुई। शुरुआती दिनों में इस संस्था की लड़ाई नशे के खिलाफ, स्त्री-पुरुष के गैरबराबरी समाज के खिलाफ और अशिक्षा के खिलाफ थी। साथ ही इसकी स्थापना युवाओं में कला और संस्कृति के प्रति रुझान पैदा करने, उन्हें स्वावलंबी बनाने और संगठित विश्वास की जकड़न से मुक्ति दिलाने के लिए की गई थी और संस्था के उन्हीं प्रयासों को साथ योगेश गनोरे ने कदम संस्था के अंतर्गत ही 17 जुलाई 2004 को "जन्मदिवस पर पौधारोपण" नामक अभियान शुरु किया। 17 जुलाई 2004 से लेकर आज की मौजूदा तारीख तक हर दिन एक पल की भी देरी न होते हुए घड़ी में समय देखकर कदम संस्था के संस्थापक योगेश गनोरे पौधारोपण करते हैं।
संस्था और संस्था से जुड़े लोगों का मानना है, कि युद्ध मुक्त संसार की कल्पना पौधे के माध्यम से ही की जा सकती है, क्योंकि पौधा विश्व में शांति लाने का सबसे सशक्त और स्वस्थ्य माध्यम है।
पौधारोपण के इस अभियान में अभी तक जबलपुर में 1 लाख 88 हज़ार स्त्री-पुरुष सम्मिलित हो चुके हैं और जबलपुर के दैनिक पौधारोपण कार्यक्रम के अतिरिक्त भोपाल, आगरा, चन्द्रपुर, पचमढ़ी, गाडरवारा, दमोह, भिलाई और इंदौर में साप्ताहिक पौधारोपण के कार्यक्रम निरंतर जारी हैं। वर्ष 2017 से बीजारोपण का यह अभियान देश के सभी राज्यों की राजधानियों और स्कूली बच्चों तक पहुँचाने की तैयारी की जा रही है, जिसे कदम संस्था और संस्था के संस्थापक योगेश गनोरे ने प्लांट फ़ॉर पीस का नाम दिया है। इस अभियान के माध्यम से कदम संस्था पूरी दुनिया में शांति और सुरक्षा की अपील करना चाहती है।
योगेश गनोरे यदि किसी कारणवश अपने शहर से बाहर जाते हैं, तो अपने साथ एक गमला और पौधा साथ लेकर जाते हैं, ताकि खुद से किए वादे को पूरा कर सकें और अभियान में कोई व्यवधान न पड़ने पाये।
गनोरे बस में हों या ट्रेन में सुबह के 10 बजे ही पौधा गमले में लगा देते हैं और मौका मिलते ही पौधे को धरती की गोद में सौंप दिया जाता है। कदम संस्था कहती है, कि लोग अपना जन्मदिन केक काटके, पार्टी करके मनाने की बजाय पौधारोपण करके मनायें। गनोरे के इस संघर्ष में इनकी पत्नी अंजू इनका भरपूर साथ देती हैं।अंजू और योगेश के संबंधों की कहानी भी अनोखी है। योगेश सचमुच उन आम लोगों जैसे नहीं, जो सिर्फ अपने लिए जीते हैं, बल्कि योगेश ने दूसरों के लिए जीने की कसम खाई है और ज़िंदगी के हर संबंध में खरे उतरे हैं।
योगेश गनोरे की धर्मपत्नी अंजू को विवाह के पूर्व ही कैंसर डाइगनोज़ हो गया था। लेकिन असल ज़िंदगी के नायक की भूमिका निभाते हुए गनोरे ने डर कर अपने कदमों को पीछे नहीं खींच बल्कि आगे बढ़कर अंजू का हाथ थाम लिया और ज़िंदगी भर का रिश्ता उनके साथ कायम किया। उन्होंने अपनी पत्नी का इलाज करवाया और साथ ही प्रेम और समर्पण के साथ अंजू के भीतर से कैंसर जैसी बिमारी का खात्मा कर दिया। कुछ समय बाद ही डाक्टर्स ने कहा कि अंजू का शरीर गर्भधारण नहीं कर सकता। यह तकलीफों का दूसरा पहाड़ था, जिसके सामने अंजू और योगेश ने घुटने नहीं टेके और एक स्वस्थ्य बच्चे का घर में स्वागत किया। लेकिन समय कुछ और ही चाहता था। वह बच्चा जो बड़ी मुश्किलों से इस दुनिया में आया था, अल्पआयु में ही दुनिया से विदा लेकर चला गया।
बच्चे का हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चले जाना दुनिया का सबसे बड़ा दु:ख होता है, लेकिन योगेश गनोरे इस दु:ख की घड़ी में भी अपने वादे को नहीं भूले और निर्धारित समय पर सुबह 10 बजे पौधारोपण करने के बाद अपने जिगर के टुकड़े की अंतिम क्रिया की।
डॉक्टर ने अंजू को फिर से गर्भधारण के मना किया, लेकिन गनोरे दंपत्ति ने सभी हिदायतों के पीछे छोड़ते हुए प्रेम की लड़ाई को जारी रखा और घर में एक बार फिर नन्हे कदमों का आगमन हुआ।
योगेश गनोरे और कदम संस्था के अन्य सदस्य एक और महत्वपूर्ण अभियान को अंज़ाम देते हैं, जिसका नाम है "बीजारोपण अभियान"। इस अभियान के तहत संस्था के सदस्य कई स्कूलों में जाकर लगभग 1 लाख बच्चों को प्रतिवर्ष बीज बांटते हैं और बच्चों को बीज के अंकुरण की विधि भी समझाते हैं। बच्चे बीजों को अपनी कोमल भावनाओं से सींच कर, पौधे के रुप में विकसित करते हैं।
जबलपुर स्टेडियम में कदम संस्था के बीजारोपण अभियान के तहत साल के अंत में हज़ारों बच्चे इकट्ठे होते हैं, जहां उन सभी बच्चों को पौधारोपण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अनेक तरह के पुरस्कार (मैटेलिक एग्ज़ाम बोर्ड्स, लगभग 100 साइकिलें और एक नैनो कार) दिये जाते हैं। विगत चार वर्षों से बच्चों में पुरस्कार वितरण किया जा रहे है, ताकि बच्चों में हरी-भरी धरती को बचाये रखने की ज़िद बाकी रहे। इस संस्था ने अब तक सरकार से किसी भी तरह का सहयोग नहीं लिया है। संस्था के सभी कार्यक्रम कदम मित्रों और जन साधारण के सहयोग से किये जाते हैं। जन सहयोग से ही जबलपुर रेलवे स्टेशन के बाहर "गोल्ड ट्री गार्ड" के अंदर भी एक पौधा लगाया गया है, जो स्टेशन पर उतरने वाले हर यात्रि के मन में कौतुहल भर देता है।
25 मार्च 2018 को इस अभियान के 5000 दिन पूरे हो जायेंगे और संस्था इस दिन देश की राजधानी दिल्ली में पौधारोपण का एक भव्य कार्यक्रम करने की तौयारी कर रही है, क्योंकि इस कार्यक्रम के साथ ही पौधारोपण अभियान का पहला चरण पूरा हो जायेगा और 'प्लांट फ़ॉर पीस' का संदेश पूरी दुनिया को देने के लिये योगेश गनोरे अपने कदम मित्रों के साथ अन्य देशों का रुख करेंगे।
आसान नहीं होता है, इतने बड़े वादे को अपने साथ लेकर चलना, लेकिन जज़्बा यदि योगेश गनोरे जैसा हो, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। क्योंकि दूसरों से किया वादा तो टूट सकता है, लेकिन जब कोई वादा अपने आप से किया जाये, तो वह ज़िद बन जाता है।