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सालों की रिसर्च के बाद टाइप-1 डायबिटीज की पहली दवा को मिली मंजूरी

टाइप-1 डायबिटीज टाइप-2 के मुकाबले ज्‍यादा खतरनाक है, जो लाइफ स्‍टाइल कंट्रोल से भी कंट्रोल नहीं की जा सकती.

सालों की रिसर्च के बाद टाइप-1 डायबिटीज की पहली दवा को मिली मंजूरी

Friday November 18, 2022 , 3 min Read

वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक डायबिटीज दुनिया में सबसे तेजी से फैल रही बीमारियों में से एक है. अमेरिका में हर चौथा व्‍यक्ति इस बीमारी की गिरफ्त में है. भारत में 7.7 करोड़ लोग यानि हर 11वां व्‍यक्ति डायबिटीज का शिकार है. डाय‍बिटीज रोगियों के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है, जहां चीन के बाद सबसे बड़ी संख्‍या में लोग इस बीमारी से ग्रस्‍त हैं.

टाइप-2 डायबिटीज को लाइफ स्‍टाइल और मेडिकेशन के जरिए नियंत्रित करना फिर भी आसान है, लेकिन टाइप-1 डायबिटीज की कहानी थोड़ी ज्‍यादा जटिल है. दुनिया भर में डॉक्‍टर, वैज्ञानिक और फार्मा कंपनियां इस रिसर्च में लगी हुई हैं कि टाइप-1 डायबिटीज को दवाइयों के जरिए कैसे नियंत्रित किया जाए और रोगियों की इंसुलिन पर आजीवन निर्भरता को कैसे कम किया जाए.

अमेरिका में वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र में एक बड़ी सफलता मिली है. सालों की रिसर्च के बाद अमेरिका में टाइप-1 डायबिटीज की एक दवा को मंजूरी मिल गई है. यूएस फूड एंड ड्रग एसोसिएशन (FDA) ने एक इम्यूनोथेरेपी ड्रग को मंजूरी दे दी है. इस ड्रग का नाम है teplizumab. डॉक्‍टरों का मानना है कि यह दवा टाइप-1 डायबिटीज के इलाज में बहुत कारगर साबित होगी और इसके इस्‍तेमाल से टाइप-1 डायबिटीज होने से पहले ही इसका इलाज किया जा सकेगा. साथ ही यह बीमारी होने की संभावना को दूर करने और उसे डिले करने में भी मददगार होगी.

यह दवा बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित कर टाइप-1 डायबिटीज को कंट्रोल में रखने की बजाय बीमारी को जड़ से दूर करने की कोशिश करेगी. इसका अर्थ ये है कि इस दवा के उपयोग से इंसुलिन पर रोगी की निर्भरता को काफी हद तक कम किया जा सकेगा.

डॉक्‍टरों के मुताबिक यह दवा सीधे इंसुलिन का निर्माण करने वाले अंग पैंक्रियाज पर काम करेगी ताकि वह शरीर के लिए आवश्‍यक हॉर्मोन बनाने में सक्षम हो सके. साथ ही शरीर के इम्‍यून सिस्‍टम को भी सेल्‍फ सफिशिएंट यानि आत्‍मनिर्भर बना सके.

क्‍या है टाइप-1 डायबिटीज

आज पूरी दुनिया में 8.4 मिलियन लोग टाइप-1 डायबिटीज से पीडि़त हैं, जिसमें बड़ी संख्‍या बच्‍चों की भी है. टाइप-2 डायबिटीज के उलट यह लाइफ स्‍टाइल से संबंधित बीमारी नहीं है. टाइप-2 डायबिटीज में जहां खराब जीवन-शैली के कारण इंसुलिन रेजिस्‍टेंस की स्थिति पैदा हो जाती है, वहीं टाइप-1 डायबिटीज में रोगी के शरीर में इंसुलिन का निर्माण ही नहीं होता, जिसके कारण उसका शरीर शुगर को नियंत्रित कर पाने में अक्षम होता है.

टाइप-1 डायबिटीज के रोगियों के पैंक्रियाज में इंसुलिन के निर्माण और रिलीज की प्रक्रिया बाधित रहती है. यह स्थिति कई बार बचपन से भी हो सकती है. कोई भी बच्‍चा टाइप-2 डायबिटीज से पीडि़त नहीं होता, लेकिन टाइप-1 डायबिटीज के रोगियों में बड़ी संख्‍या बच्‍चों की भी है.    

यह बीमारी जेनेटिक भी है और कुछ लोगों को जन्‍म से ही टाइप-1 डायबिटीज होता है. टाइप-2 डायबिटीज को दवाइयों, खानपान और जीवन शैली के जरिए नियंत्रित करना आसान है, लेकिन टाइप-1 डायबिटीज एक जेनेटिक और पूरी तरह पैंक्रियाज की अक्षमता पर निर्भर बीमारी होने के कारण इसका फूड और लाइफ स्‍टाइल से एकदम सीधा कनेक्‍शन नहीं है. हालांकि टाइप-1 डायबिटीज के रोगियों को आजीवन बहुत कठोर अनुशासन में रहना पड़ता है.

डॉक्‍टरों का मानना है कि जेनेटिक होने की स्थिति में टाइप-1 डायबिटीज का होने से पहले तो बचाव नहीं किया जा सकता, लेकिन teplizumab ड्रग इसे नियंत्रण में रखने में मददगार होगी. खासतौर पर बच्‍चों को इससे काफी फायदा होगा. जिन बच्‍चों के पैंक्रियाज जन्‍म से ही सुचारू रूप से काम नहीं कर रहे होते यानि इंसुलिन का निर्माण करने में अक्षम होते हैं, उन्‍हें इस दवा से फायदा होगा. 


Edited by Manisha Pandey