बज उठी खतरे की एक और घंटी, अब कोई बैंकिंग सेवा नहीं मिलेगी मुफ्त
अगर हो गया ये, तो और बढ़ जायेगी मध्यम वर्ग की समस्या...
मध्यम वर्ग को निचोड़ने का एक और अंकुश अमल में आने की सुगबुगाहट है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन सेवाएं तो महंगाई की मार आम आदमी को मार ही रहीं, अब बैंकिंग सेवाएं भी फ्री मिलने से रहीं। एटीएम चार्ज से लेकर हर तरह की फ्री मिलने वाली बैंकिंग सेवाओं के लिए अब अलग से गांठ ढीली करनी पड़ सकती है।
इनकम टैक्स विभाग ने पिछले पांच साल की अवधि के लिए टैक्स डिमांड की है। इसमें से चार साल सर्विस टैक्स लागू था, बाकी एक साल से बैंक सर्विसेज पर जीएसटी लागू है। डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स इंटेलिजेंस ने बैंकों को टैक्स डिमांड का नोटिस भेजा है।
स्कूल-कॉलेजों में निर्धन बच्चों का क्या काम, तड़पते गरीब मरीजों के लिए अब स्वास्थ्य सेवाओं के द्वार बंद हो चुके हैं ऐसे में एक और सूचना ऐसी आती है, जिससे खाते-पीते मध्यम वर्ग की भी भृकुटियां तन जाती हैं। पता चलता है कि अब कोई भी बैंकिंग सेवा फ्री में नहीं मिलने जा रही है। आधुनिकता के इस युग में जहाँ एक तरफ लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक सजग हो गये हैं, वहीं दूसरी तरफ लोगों को रोज़ नयी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। इसी जागरूकता के कारण लोग स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक ध्यान देने लगे हैं। इसी के चलते उस पर बहुत अधिक खर्चा भी होने लगा है। इस खर्च को बढ़ाने में चिकित्सकों का भी योगदान कम नहीं है। इसी सजगता का गलत फायदा उठाकर बहुत से डॉक्टर अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं।
ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि डाक्टरी पेशा सेवा है या व्यवसाय। मेडिकल बिजनेस के जानकार इस की वजह महंगे होते इलाज को मानते हैं। मरीज चाहते हैं कि डाक्टरी का पेशा सेवा का है तो इसे व्यवसाय न बनाया जाए। डाक्टर तर्क देता है कि मरीज की बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हम जो साधन जुटाते हैं, तो फिर वह सब कैसे संभाला जाए? सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ प्राइवेट नर्सिंग होम भी बड़े पैमाने पर चिकित्सा बाजार में उतर चुके हैं। सरकार ने स्कूल और नर्सिंग होम के बीच भेदभाव किया तो महंगे निजी अस्पतालों में एक दिन के लिए भर्ती कराने की फीस 25 हजार रुपये तक जा पहुंची है। ऐसे में 90 प्रतिशत से अधिक मरीज दर-दर भटकते रहते हैं। दुनिया की बात करें तो 'ब्रिक्स' देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) में से भारत में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सार्वजनिक और निजी खर्च मिलाकर कुल जीडीपी का मात्र 3.9 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है, जो 'ब्रिक्स' देशों में सबसे कम है। तो ये रही चिकित्सा सेवाओं की दास्तान।
एक ज़माना था, जब शिक्षा का अर्थ महज डिग्री लेने तक सीमित नहीं बल्कि व्यवहारगत, संस्कारगत उन्नति भी शिक्षा के अंतर्गत आती थी। इनके परिणामस्वरूप न केवल विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास होता था, बल्कि इन्ही विद्यार्थियों के प्रभाव से एक परिवार, समाज और सम्पूर्ण राष्ट्र को दमदार आधार व भविष्य दोनों मिलते थे। भले देश में विज्ञान और टेक्नालाजी ने खूब विकास किया हो लेकिन आज शिक्षा प्रणाली इतनी महंगी हो चुकी है कि कमाते-खाते वर्ग की रूह कांप जा रही है। बच्चों को पढ़ाने में जमा-पूंजी सब भेट चढ़ी जा रही है। इस कारण सभी वर्ग के बच्चों को रोजगार परक शिक्षा नहीं मिल पा रही है। जैसे-तैसे स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद हर साल बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है।
इससे असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने के कारण आपराधिक घटनाओं में भी इजाफा होता जा रहा है। आज के युवा जहां बेरोजगारी से परेशान हैं, वहीं राजनीतिक पार्टियों के नेता चुनाव से पहले किए वादे चुनाव के बाद भूल जाते हैं। इसी से अब युवाओं के प्रमुख मुद्दे भ्रष्टाचार और बेरोजगारी हो चुके हैं। इसे दूर करने के लिए राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को विशेष ध्यान देने का आग्रह किया जा रहा है मगर कोई नतीजा नहीं। गुजरात चुनाव में सड़कों पर अगर युवा नजर आ रहे थे तो उसके पीछे महज पाटीदार, दलित या ओबीसी आंदोलन नहीं था, न ही हार्दिक पटेल,अल्पेश या जिग्नेश के चेहरे। दरअसल, गुजरात का युवा जिस संकट से गुजर रहा है, उसका सच महंगी शिक्षा और बेरोजगारी है। इस परिप्रेक्ष्य में आज के छात्र-युवाओं के संकट को समझने के लिये पहले कॉलेजो की उस फेहरिस्त को समझना होगा,जिसने समूची शिक्षा व्यवस्था को निजी हाथों में जकड़ लिया है।
ऐसे हालात में जब सूचना मिलती है कि अब एक भी बैंकिंग सेवा मुफ्त में नहीं मिलेगी तो समाज के एक बड़े वर्ग का विचलित होना स्वाभाविक है। जो सर्विस अभी बैंक से फ्री में मिल रही है, उस पर चार्ज चुकाने का समय आने वाला है। यह चार्ज पिछले पांच साल में किए गए ट्रांजैक्शन पर भी देना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए होने जा रहा है क्योंकि इनकम टैक्स विभाग ने बैंकों को नोटिस देकर उन फ्री सर्विसेज पर टैक्स देने को कहा है, जो बैंक कस्टमर को मुहैया कराते हैं। जैसे बहुत से बैंक कुछ अकाउंट पर मिनिमम अकाउंट बैलेंस चार्ज नहीं लेते हैं। इन अकाउंट में मिनिमम बैलेंस मेन्टेन करना जरूरी नहीं है। अभी एटीएम ट्रांजैक्शन पर एक लिमिट तक फ्री में सेवाएं मिल रही हैं।
बताया जा रहा है कि इनकम टैक्स विभाग ने पिछले पांच साल की अवधि के लिए टैक्स डिमांड की है। इसमें से चार साल सर्विस टैक्स लागू था, बाकी एक साल से बैंक सर्विसेज पर जीएसटी लागू है। डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स इंटेलिजेंस ने बैंकों को टैक्स डिमांड का नोटिस भेजा है। एक अनुमान के मुताबिक यह टैक्स लगभग छह हजार करोड़ रुपए तक हो सकता है। आने वाले समय में कुछ और बैंकों को भी इसी तरह का नोटिस भेजा जा सकता है क्योंकि इनकम टैक्स विभाग के पास अधिकार है कि वह पिछले पांच साल के सर्विस टैक्स के मामलों को खोल दे। अगर फ्री सर्विसेज पर पिछले पांच साल की अवधि के लिए टैक्स देना पड़ता है तो इसका बोझ ग्राहकों पर ही पड़ने वाला है। बैंक इसकी भरपाई ग्राहकों से ही करने वाले हैं।
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