डिजिटल महाभारत में हर वक़्त खुफ़ियागीरी कर रहे जेब में बैठे पांच जासूस!
"आज हर उस शख्स की निजता खतरे में है, जिसकी जेब में मोबाइल, स्मार्ट फोन और आंखों के सामने लैपटॉप, कम्यूटर खुले हुए हैं। बेल्जियम के एक न्यूज चैनल ने इस जासूसी का खुलासा किया है, जिसके पास ऐसी एक हजार रिकॉर्डिंग्स हैं। इन पांचों जासूसों के नाम हैं- सिरी, गूगल असिस्टेंट, एमेजॉन एलेक्सा, माइक्रोसॉफ्ट कोर्टाना।"
जब कोई आपका दोस्त, हमराही बनकर चौबीसो घंटे आपकी हां-में-हां मिलाते हुए जासूसी करने लगे तो कैसा लगेा! स्वाभाविक है, आपकी सारी निजता खतरे में पड़ जाएगी। ऐसे में दोस्त से नाता तोड़ने की बजाए स्वयं सतर्क हो जाना ही सबसे बेहतर उपाय होगा। आधुनिक तकनीकों, मशीन बेस्ड लर्निंग संसाधनों ने हर व्यक्ति के पीछे दोस्त जैसे आत्मीय जासूस लगा रखे हैं। ऐसे जासूस, जो हमारी जेबों में पड़े हमारी सारी व्यक्तिगत बातें जुटाकर कहीं और पहुंचाते रहते हैं। भले ही गूगल दावा करे कि कॉन्ट्रैक्टर्स को लोगों के अकाउंट की जानकारी नहीं दी जाती है, गूगल के प्रोजेक्ट मैनेजर डेविड मोनसीस खुद ही बताते हैं कि इस जासूसी से लोगों की निजता भंग हो रही है। बेल्जियम के एक न्यूज चैनल वीआरटी एनडब्ल्यूएस का दावा है कि उसके पास ऐसी एक हजार रिकॉर्डिंग्स हैं, जिनमें दुनिया भर के लोगों की निजी बातें ही दर्ज नहीं, बल्कि उनके अकाउंट के जरिए उनकी पहचान भी चिह्नित हैं।
हम बात कर रहे हैं वॉयस असिस्टेंट्स की, जो हमारी सारी बातचीत रिकॉर्ड कर ले रहे हैं। पहले आइए, इन मशीनीकृत जासूसों के बारे में जान लें। अक्टूबर 2011 में आईफोन 4-एस के साथ 'सिरी' का आगमन हुआ था। सिरी अलार्म लगाने, नंबर डायल करने, एसएमएस पढ़ कर सुनाने, मौसम का हाल बताने, तस्वीरें खींचने, ऊलजलूल सवालों के जवाब देने तक में माहिर है। सिरी जितना ही पुराना गूगल असिस्टेंट विगत तीन साल से एंड्रॉइड डिवाइस पर उसी तरह की जासूसी को अंजाम दे रहा है। फोन, टैबलेट, स्मार्ट वॉच में छिपकर बैठा वॉइस असिस्टेंट गुप्त मुखबिर की तरह हमारी सारे बातें जुटाकर किसी भी जरूरतमंद के हवाले कर सकता है। यह तो टीवी-एसी चलाने तक में निपुण है। वर्ष 2014 से एक्टिव वह चौथा जासूस है एमेजॉन एलेक्सा, जो स्मार्ट स्पीकर के साथ जुड़े रहकर सारा निजी कंटेंट इकट्टे करता रहता है। पांचवें जासूस, वॉइस असिस्टेंट का नाम है माइक्रोसॉफ्ट कोर्टाना, जो डेस्कटॉप पर भी एक्टिव रह सकता है।
आज के डिजिटल वक़्त में सर्च इंजन गूगल ने तो हमारी निजता में ऐसी सेंध लगाई है कि हर छोटी-छोटी बात के लिए भी हम उस पर निर्भर हो चुके हैं। उसने हमारी रोजमर्रा की हर जीवनचर्या को अपनी मुट्ठी में कर लिया है, और हम हैं कि बड़े मजे से उसे इंज्वॉय करने में मस्त-व्यस्त हैं। पिछले कुछ वर्षों से सोशल साइट्स, लाइफ स्टाइल, शिक्षा, कारोबार में ऊंची छलांग के पीछे सबसे बड़ा किरदार निभा रहा है यूट्यूब। वीडियो देखने वाले 71 फीसदी लोगों का तो यूट्यूब ही गुरू बन गया है। इप्सॉस के मुताबिक ऐसे लोगों में 68 फीसदी युवा हैं। गूगल की इसी साल की एक ताज़ा सर्च रिपोर्ट से पता चला है कि नगरों, महानगरों की तुलना में इस ओर कस्बों का रुझान ज्यादा तेज रफ्तार से बढ़ा है।
एक कहावत है, चोरी और सीनाजोरी। इन आधुनिक जासूसों के बारे में कह सकते हैं आम के आम, गुठलियों के भी दाम। पिछले साल मार्च में गूगल इंडिया 9,337 करोड़ रुपए कमा कर ज़ी समूह, डिज्नी, टाइम्स समूह के बाद भारत का चौथा सबसे बड़ी मीडिया कंपनी बन गया था। टाटा स्काई पांचवें स्थान पर है। गूगल ने अकेले यूट्यूब से दो हजार करोड़ रुपये कमाए थे। यह भी गौरतलब कि गूगल और यूट्यूब 137 अरब डॉलर के आकार वाली दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया फर्म अल्फाबेट के अंग हैं, जिसका पूरी दुनिया के डिजिटल विज्ञापन बाजार पर दबदबा है।
अगले साल 2020 तक 1,67,400 करोड़ रुपए के आकार वाले डिजिटल भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार में चार दिग्गज कंपनियों ज़ी, जियो, गूगल और डिज्नी के बीच और कड़ा मुकाबला होने वाला है। तब, इस डिजिटल महाभारत में भारत का बच्चा-बच्चा जेब में बैठे जासूसों की गिरफ्त में होगा क्योंकि अमेरिका का संघीय संचार आयोग और ब्रिटेन का ऑफकॉम ऐसी एक-एक हरकत का आंकड़ा अपनी मुट्ठी में रखता है।