लाल क़िले की प्राचीर से पीएम ने किया 'चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़' का एलान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस पर राजधानी दिल्ली में लाल क़िले की प्राचीर से भारत में 'चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़' के गठन का ऐलान किया। इससे पहले कारगिल युद्ध के दौरान उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में एक समीक्षा बैठक के बाद तीनो सेनाओं में तालमेल के लिए 'चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी' का गठन किया गया था।
राजधानी दिल्ली में लाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने के बाद अपने डेढ़ घंटे के सम्बोधन के दौरान आतंक से जुड़े क़ानूनों में बदलाव, जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के खात्मे आदि का उल्लेख करते हुए भारत में 'चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़' के गठन का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद का माहौल पैदा करने वालों को नेस्तनाबूद करने की हमारी रणनीति बिल्कुल साफ़ है। सुरक्षाबलों और सेना ने उत्कृष्ट काम किया है। सैन्य रिफॉर्म पर लंबे समय से चर्चा चल रही है। इस सम्बंध में कई रिपोर्ट भी मिलती रही हैं। जब आज तकनीक बदल रही है तो ऐसे में तीनों सेनाओं के एक साथ, एक ही ऊंचाई पर पहुंचने और मुस्तैद रखने, विश्व में बदलते सुरक्षा मानकों के साथ उनकी सरकार चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (सीडीएस) की व्यवस्था करने जा रही है।
गौरतलब है कि अमेरिका, चीन, यूनाइटेड किंगडम, जापान आदि के पास चीफ ऑफ डिफेंस जैसी व्यवस्थाएं हैं। नॉटो देशों की सेनाओं में ये पद स्थापित है। इस समय भारत में भी 'चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी' में सेना, नौसेना और वायुसेना प्रमुख शामिल हैं। एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ 31 मई से 'चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी' के चेयरमैन हैं।
लाल किले से सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी का भारत कैसा हो, इसके मद्देनजर भारत सरकार के आने वाले पांच सालों के कार्यकाल का ख़ाका तैयार किया जा रहा है। अब हमे आतंकवाद को पनाह देने वाले सारी ताक़तों को दुनिया के सामने उनके सही स्वरूप में पेश करना है। भारत के पड़ोसी भी आतंकवाद से जूझ रहे हैं। हमने दो तिहाई बहुमत से आर्टिकल 370 हटाने का क़ानून पारित कर दिया है।
इसका मतलब साफ है कि अब तक हर भारतीय के मन में इसकी जरूरत महसूस की जाती रही है। सवाल था कि वह मंशा पूरी करने के लिए आगे कौन आए। पिछले 70 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, अलगाववाद, परिवारवाद, भ्रष्टाचार की नींव को मज़बूत किया गया। लाखों लोग वहां से विस्थापित हुए। अब पहाड़ी भाइयों की चिंताएं दूर करने की दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं। भारत की विकास यात्रा में जम्मू-कश्मीर बड़ा योगदान दे सकता है। नई व्यवस्था नागरिकों के हितों के लिए काम करने के लिए सीधे सुविधा प्रदान करेगी।
आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35ए का हटना, सरदार पटेल के सपनों को साकार करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है। हमारी सरकार उसी दिशा में एक और बड़ा कदम रखने जा रही है- 'चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़'। गौरतलब है कि वाजपेयी सरकार के समय में केंद्रीय मंत्रियों के समूह की सिफारिश पर सेना के तीनों अंगों के बीच सहमति न बन पाने के कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
पीएम मोदी के पहली बार 'चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़' के ऐलान के बारे में आइए विस्तार से जान लेते हैं। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के बाद सन् 2001 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में गठित ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की समीक्षा बैठक में निष्कर्ष निकला था कि भारत की तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी है। उनमें ठीक से तालमेल होता तो हमारी सेना को उस युद्ध में कम नुकसान उठाना पड़ता। उसके बाद चीफ ऑफ डिफेंस के गठन का पहली बार सुझाव सामने आया। उस वक़्त तीनों सेनाओं के बीच अपेक्षित समन्वय के लिए चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ का पद सृजित किया गया। ल्लेखनीय है कि 'चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़' के चेयरमैन के पास कोई बड़ी पॉवर नहीं, बल्कि तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बनाए रखने का दायित्व होता है। इस समय भारत के एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ 31 मई से 'चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी' के चेयरमैन हैं।
एक बार अपने कार्यकाल के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी इस दिशा में पहल की थी। लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता वाले जीओएम की सिफारिशों को तत्कालीन कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) ने स्वीकार तो कर लिया था, लेकिन वह अमल में नहीं आ सका। उस समय जल और थल सेनाओं के अफसरों ने इस पद का समर्थन किया था लेकिन एयरफोर्स की सहमति नहीं बन सकी। उस समय तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एस कृष्णास्वामी ने चीफ ऑफ डिफेंस के पद का विरोध करते हुए इसे अनावश्यक करार दे दिया था। 'चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी' का गठन हो जाने के बाद युद्ध के समय तीनों भारतीय सेनाएं आपस में पूरे तालमेल के साथ काम करेंगी क्योंकि उनकी हर गतिविधि सिंगल प्वॉइंट ऑर्डर ऑर्डर फॉलो करना पड़ेगा, साथ ही लड़ाई के समय उनके बीच किसी तरह का असमंजस या कोई कन्फ्यूजन पैदा नहीं होगा।