राजकोषीय घाटे में कटौती करने में सरकार नाकाम, पिछले साल के स्तर पर रखने का लक्ष्य: रिपोर्ट
अपनी सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को खतरे में देखते हुए सरकार अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए प्रयासरत है. हालांकि, इस दौरान वह महंगाई को रोकने के लिए सरकार अपने खर्च पर लगाम लगाने के साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था और कारोबारियों को राहत मुहैया कराने की कोशिश करेगी.
पिछले वित्त वर्ष में अनुमानित बजटीय राजकोषीय घाटे को भारत सरकार इस वित्त वर्ष में कम नहीं कर पाएगी. हालांकि, सार्वजनिक खर्च में बड़ी कटौती न करते हुए सरकार घाटे को पिछले साल के स्तर पर ही रोकने का प्रयास करेगी. अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, अपनी सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को खतरे में देखते हुए सरकार अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए प्रयासरत है. हालांकि, इस दौरान वह महंगाई को रोकने के लिए सरकार अपने खर्च पर लगाम लगाने के साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था और कारोबारियों को राहत मुहैया कराने की कोशिश करेगी.
सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग किसी देश के भविष्य में अपनी देनदारियों को चुका सकने या नहीं चुका सकने से जुड़ा होता है. यह रेटिंग टॉप इन्वेस्टमेंट ग्रेड से लेकर जंक ग्रेड तक होती हैं. जंक ग्रेड को डिफॉल्ट श्रेणी में माना जाता है.
बता दें कि, फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले साल के 6.7 फीसदी घाटे की तुलना में सकल घरेलू उत्पादन (GDO) का राजकोषीय घाटा 6.4 फीसदी पर रखा था.
सूत्रों का कहना है कि खर्च में बढ़ोतरी से महंगाई से राहत मिलेगी जिसका मतलब है कि सरकार इस साल का लक्ष्य पूरा करने से भी चूक जाएगी.
महंगाई बढ़ने के कारण मई में सरकार को तेल पर टैक्स को कम करने के साथ ही शुल्क की संरचना में भी बदलाव करना पड़ा. इससे राजस्व को 15 खरब रुपये से अधिक का नुकसान हुआ. वहीं, फर्टिलाइजर्स पर अतिरिक्त सब्सिडी से खर्च और बढ़ गया.
देश की खुदरा महंगाई लगातार पांचवें महीने आरबीआई की 6 फीसदी की सीमा से ऊपर रहा तो वहीं थोक महंगाई 30 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई.