स्टार्टअप की आड़ में टैक्स फ्रॉड करने वालों पर भी सरकार कसने लगी नकेल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश पर 14 विभागों की टीम ने करोल बाग, दिल्ली के कोरिया प्लाजा में छापा मारकर स्टार्टअप की आड़ में आईवीएएफ का इंटरनेशनल खेल उजागर किया है। उधर, आयकर विभाग उन कंपनियों पर नकेल कस रही है, जो टैक्स बेनिफिट के लिए फर्जी तरीके से स्टार्टअप सार्टिफिकेट हासिल कर ले रही हैं।
एक तरफ जहां सरकार जेनुइन स्टार्टअप्स से देश के युवाओं को उद्योग-व्यापार के क्षेत्र में उत्साहित कर रही है, वही इनकम टैक्स विभाग फर्जी स्टार्टअप्स पर नजर रख रहा है। विभाग इस सिलसिले में कार्रवाई करने के लिए तमाम कंपनियों से उनके निवेश के स्रोतों की जानकारी भी तलब करता रहा है। एंजेल टैक्स के नियमों का हवाला देकर कई स्टार्टअप्स पर टैक्स चोरी के आरोप सामने आ चुके हैं। सरकार भी संदिग्ध कंपनियों से सेक्शन 68 के तहत अपने निवेश के स्रोत उजागर करने के निर्देश दे चुकी है। उसके बाद से कई ऐसी कंपनियां आयकर विभाग को संतोषजनक जवाब देने में नाकाम रही हैं। दिल्ली की स्टार्टअप कंपनी के एक ताज़ा अजीबीगरीब मामले ने तो हर किसी को चौंकाकर रख दिया है।
उल्लेखनीय है कि स्टार्टअप इंडिया स्कीम के तहत ऐसी कंपनियां को स्टार्टअप इंडिया का दर्जा मिलता है, जो इनोवेशन, नए प्रोडक्ट डेवलपमेंट और सर्विस के लिए काम करती हैं। इसके तहत कंपनी का गठन 7 साल से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। बॉयो टेक्नोलॉजी सेक्टर की कंपनियों के लिए यह लिमिट 10 साल है। ऐसी कंपनियों को स्टार्टअप का दर्जा मिल सकता है, बशर्ते की उनका टर्नओवर 25 करोड़ रुपए सालाना से ज्यादा न हो।
स्टार्टअप का दर्जा मिलने से कंपनियों को लेबर कानून में छूट से लेकर टैक्स बेनिफिट की सुविधाएं मिल जाती हैं। टैक्स छूट के लिए जरुरी है कि कंपनी का गठन एक अप्रैल 2016 के बाद हुआ हो। उसे यह छूट कुल तीन साल एक अप्रैल 2019 तक ही मिल सकती है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली के करोल बाग स्थित कोरिया प्लाजा में एक स्टार्टअप ठिकाने पर गत देर रात 14 विभागों की टीम के साथ छापा मारकर रहस्योदघाटन किया है कि उसकी आड़ में एक आईआईटी इंजीनियर अपने सैकड़ों कर्मचारियों की मदद से बेटा पैदा करने का कारोबार चला रहा था।
स्टार्टअप कर्मी वेबसाइट के जरिए आईवीएफ सेंटर बुलाकर डील करते थे। पहले 10 जार में रजिस्ट्रेशन किया जाता था। आरोपी इंजीनियर पिछले दो साल से संतान की हसरत पूरी करने के लिए कपल्स को नौ लाख रुपए के पैकेज पर 15 दिन के लिए दुबई, थाईलैंड और सिंगापुर भेज देता था, जहां बेटे वाले भ्रूण को महिला में इंजेक्ट करा दिया जाता था। इस कारोबार से जुड़े स्टार्टअप के कॉल सेंटर से दो साल में देश के छह लाख लोग जुड़ गए। इस समय उसके नेटवर्क में दिल्ली-एनसीआर के अलावा देश में सौ अधिक आईवीएफ सेंटर चल रहे थे।
गौरतलब है कि स्टार्टअप इंडिया स्कीम के तहत स्टार्टअप कंपनी कहलाने और उसके तहत टैक्स बेनिफिट जैसी फायदे लेने के लिए एप्लीकेशन देनी होती है। कंपनी के एप्लीकेशन को एक इंटर मिनिस्ट्रियल बोर्ड रिव्यू करता है जिसके आधार पर उसे स्टार्टअप का दर्जा और टैक्स बेनिफिट जैसे फायदे मिलते हैं।
डीआईपीपी के तहत एक बोर्ड मीटिंग में खुलासा हो चुका है कि कई कंपनियां गलत तरीके से स्टार्टअप का दर्जा हासिल करने में कामयाब रही हैं। उन्होंने स्टार्टअप इंडिया स्कीम के तहत मिलने वाले टैक्स बेनिफिट का फायदा लेने के लिए अपने एप्लीकेशन में फ्रॉड का सहारा लिया है। कई कंपनियों ने अपनी सब्सिडियरी बनाकर एक नई कंपनी को स्टार्टअप के रुप में रजिस्टर्ड कराया था। जिसमें भारतीय कंपनियों के साथ-साथ विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं। नियमों के अनुसार इस तरह से बनाई गई सब्सिडियरी कंपनी को स्टार्टअप का दर्जा नहीं मिल सकता है।