आज ही महामंदी ने दी थी दस्तक, क्रैश हुआ था अमेरिका का शेयर बाजार, लोगों ने कर लिए थे सुसाइड
आज ही के दिन यानी 29 अक्टूबर को अमेरिका का शेयर बाजार क्रैश हुआ था. इसकी वजह से महामंदी ने दस्तक दे दी थी. खबरें तो यहां तक आईं कि नुकसान की वजह से कई लोगों ने सुसाइड तक कर लिया था.
इन दिनों दुनिया आर्थिक मंदी (Recession) की दहलीज पर खड़ी है. दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि मंदी का आना तय है. अमेरिका में भी अगले कुछ महीनों में मंदी आ ही जाएगी. मंदी की इन खबरों के बीच आज का दिन यानी 29 अक्टूबर लोगों को कुछ याद दिला रहा है. ये याद है आज से करीब 93 साल पहले 1929 की, जब आई थी मंदी. इस मंदी को महामंदी (Great Recession) के नाम से भी जाना जाता है, जिसने करीब पौने दो करोड़ लोगों की नौकरी खा ली थी. इसकी शुरुआत हुई थी शेयर बाजार में भारी गिरावट के साथ, जिसे ब्लैक ट्यूजडे (Black Tuesday) यानी काला मंगलवार भी कहा जाता है.
क्या हुआ था उस दिन?
उन दिनों अमेरिका में मंदी की आहट कुछ दिन पहले से ही मिलने लगी थी. 24 अक्टूबर को शेयर बाजार करीब 11 फीसदी गिरा, जिसे ब्लैक थर्सडे (Black Thursday) कहा जाता है. इसके बाद सोमवार को मार्केट 12.82 फीसदी गिरा, जिसे ब्लैक मंडे (Black Monday) कहा गया. वहीं 29 अक्टूबर 1929 के दिन अमेरिकी शेयर बाजार में 11.73 फीसदी की गिरावट आई. इस दिन करीब 1.6 करोड़ शेयरों की ट्रेडिंग हुई थी. इसके बाद तो मार्केट में किसी भी कीमत पर शेयरों को खरीदने के लिए खरीदार नहीं मिल रहे थे. लोगों को कितना नुकसान हुआ था, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कई लोगों ने भारी नुकसान की वजह से सुसाइड तक कर लिया था. इसे वॉल स्ट्रीट क्रैश 1929 (Wall Street Crash 1929) के नाम से भी जाना जाता है. करीब दो महीनों में डाऊ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 381 अंक से गिरकर 198 अंक तक जा पहुंचा.
15 फीसदी तक गिर गई थी दुनिया की जीडीपी
29 अक्टूबर से जिस मंदी की शुरुआत हुई, वह दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने फर खत्म हुई. यह मंदी 1929 से लेकर 1939 तक चली. 1929 से 1932 के बीच दुनिया भर की जीडीपी करीब 15 फीसदी तक गिर गई. बता दें कि 2008-2009 के बीच मंदी में दुनिया की जीडीपी महज 1 फीसदी गिरी थी. 1929 की इस मंदी की मार गरीबों पर तो पड़ी ही थी, अमीर भी इससे नहीं बच सके थे. हर देश पर इसका असर दिखा. लोगों की कमाई घट गई, टैक्स रेवेन्यू गिर गया, कंपनियों का मुनाफा घट गया. इंटरनेशनल ट्रेड में 50 फीसदी की गिरावट देखने को मिली. अमेरिका में बेरोजगारी 23 फीसदी तक पहुंच गई. वहीं कई देशों में तो बेरोजगारी 33 फीसदी तक जा पहुंची.
कैसे बद से बदतर हुए हालात?
1920 के दशक में अमेरिका की इकनॉमी में शानदार स्पीड देखने को मिली. 1920-1928 तक इकनॉमी तेजी से बढ़ी, स्टॉक्स की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही थीं. लोग तेजी से स्टॉक मार्केट में पैसा लगा रहे थे, वो भी बिना कोई स्टडी किए. कंपनियों की खपत इतनी बढ़ी कि उन्होंने मास प्रोडक्शन शुरू कर दिया. रेडियो, फ्रिज, वॉशिंग मशीन जैसे उपकरणों का इस्तेमाल इतना बढ़ गया कि हर दो साल में इनकी सेल दोगुनी होने लगी. बहुत सारे लोगों की तरफ से शेयर बाजार में पैसा डालने की वजह से हालत ये हुई कि बहुत सारी कंपनियों के शेयरों के कीमत जरूरत से अधिक बढ़ गई.
दो साल में शेयर बाजार की वैल्यू हो गई दोगुनी
1929 की शुरुआत से ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ग्रोथ की स्पीड बहुत धीरे हो गई. लोगों की नौकरी जाने लगी. जो लोग नौकरी कर रहे थे, उनकी सैलरी कटने लगी. सूखे के चलते एग्रिकल्चर सेक्टर भी दिक्कत में था. बावजूद इसके शेयर बाजार में लोग तेजी से पैसा डाल रहे थे. आपको जाकर हैरानी होगी कि 1927-29 के बीच यानी महज दो साल में ही शेयर बाजार की वैल्यू लगभग डबल हो गई थी.
और फूट गया बबल, आ गई महामंदी...
अमेरिका के शेयर बाजार में एक बबल बन गया था, जो 24 अक्टूबर से फूटना शुरू हुआ और 29 अक्टूबर तक उसने विकराल रूप ले लिया. इसका नतीजा ये हुआ कि लोग शेयर बाजार से डर गए और उन्होंने इन्वेस्ट करना ही बंद कर दिया. इससे कंपनियों को मिलने वाला निवेश भी बंद हो गया. लोगों ने मंदी से निपटने के लिए अपने खर्चे कम कर दिए, जिससे कंपनियों को नुकसान झेलना पड़ा. हालात इतने खराब हो गए कि कई कंपनियों ने तो अपने कई प्लांट तक बंद कर दिए. इससे अमेरिका में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई.
बैंक होने लगे फेल, लगने लगीं लंबी-लंबी कतारें
जब लोगों को खाने के लाले पड़ने लगे तो लोगों ने बैंक में रखी अपनी सेविंग को निकालना शुरू कर दिया. बैंकों ने लोगों को लोन दिया था, जो बेरोजगारी के चलते पैसे नहीं चुका पाए. कंपनियों की हालत भी खराब हो गई थी, जिससे वह भी अपना लोन नहीं चुका पाईं. वहीं दूसरी ओर लोग बैंक से तेजी से पैसे निकालने लगे, जबकि बैकों के पास इतना पैसा नहीं था. नतीजा ये हुआ कि बैंक फेल होने लगे. बैंक फेल होने की खबरों से जो बचे-खुचे लोग थे वह भी अपने पैसे निकालने लगे, ताकि उनका पैसा ना डूब जाए. बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगने लगीं. हालत ये हो गई कि लोग अपना पैसा घर में ही रखने लगे.
सरकार के उदासीन रवैये ने मंदी को दिया बढ़ावा
अमेरिकी सरकार ने भी इस मंदी पर काबू पाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. सरकार ने इकनॉमी में पैसे भी नहीं सर्कुलेट किए. अमेरिका में चीजों के दाम आसमान पर थे, लेकिन सरकार ने उसे भी कम नहीं किया. वहीं जब लोगों ने दूसरे देशों से आ रहे सस्ते सामान खरीदना शुरू किया तो उस पर भी टैक्स लगाकर विदेशों के सामान को भी महंगा कर दिया, ताकि लोग अमेरिका का ही सामान खरीदें. नतीजा ये हुआ कि अमेरिका का आयात 7 अरब डॉलर से घटकर 2.5 अरब डॉलर तक आ गया. वहीं निर्यात भी बुरी तरह प्रभावित हुआ. और इसी के साथ अमेरिका की इकनॉमी रिसेशन से डिप्रेशन में चली गई.
हालात सुधरने शुरू हुए 1933 में
अमेरिका जब मंदी से जूझ रहा था, उसी दौरान 1933 में Franklin D. Roosevelt अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति बने. उन्होंने कई इनीशिएटिव लिए और इकनॉमी को पटरी पर लाने की कोशिश की. उन्होंने बैंकिंग सिस्टम को मजबूत करने के लिए भी एजेंसी बनाई, जो किसी बैंक के फेल होने पर भी उसके ग्राहकों को उनका पैसा चुकाती है. ऐसे में लोगों का भरोसा फिर से बैंकों पर बढ़ गया और लोग बैंकों में पैसे रखने लगे. वहीं स्टॉक एक्सचेंज को भी रेगुलेट करने के लिए एजेंसी बनाई गई. इसके बाद इकनॉमी में थोड़ा सुधार देखने को मिला. वहीं जब सितंबर 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, तब जाकर अमेरिका की स्थिति में सुधार आना शुरू हुआ. बता दें कि दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने मिलिट्री पर काफी पैसा खर्च किया था और उससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी काफी सुधरी थी.
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