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चंपारण के गार्डियन: पुराने पेड़ों को बचाने की एक अनोखी पहल

बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में 100 से 400 साल पुराने पेड़ों को बचाने का अनोखा अभियान शुरू हुआ है. इसके तहत लोग पुराने पेड़ों को गोद ले रहे हैं. अभियान में जनसहभागिता और तकनीक का पूरा इस्तेमाल किया जा रहा है. अब तक करीब 13 हजार पेड़ों की जियोटैगिंग की जा चुकी है.

चंपारण के गार्डियन: पुराने पेड़ों को बचाने की एक अनोखी पहल

Friday September 30, 2022 , 8 min Read

दुनियाभर में पेड़ों को बचाने के लिए कई अभियान चल रहे हैं. लेकिन बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में पुराने दरख्तों को सहेजने का एक अनोखा अभियान चल रहा है. पिछले एक साल से चल रहे इस अभियान के तहत सैकड़ों साल पुराने पेड़ों की देख-रेख का जिम्मा आम लोगों को दिया जा रहा है. एक तरह से कहें तो कुछ लोग मिलकर एक पेड़ को गोद लेते हैं और फिर उसकी देखभाल करते हैं. अभियान को नाम दिया गया है गार्डियन ट्री ऑफ़ चंपारण.

इस अभियान के तहत पिछले एक साल में 12,300 पेड़ों को लोगों के छोटे-छोटे समूहों ने गोद लिया है. मिसाल के तौर पर जिले के हरसिद्धि प्रखंड के सोनवरसा गांव में 400 साल पुराने बरगद के पेड़ की पहचान की गई और स्थानीय लोगों के सहयोग से इसे संरक्षित किया गया है. इसी तरह, मेंहसी ब्लॉक में भी बरगद का एक पेड़ सौ साल से अधिक पुराना माना जाता है. जिला कलेक्ट्रेट परिसर में भी 80 साल के पीपल के पेड़ों की पहचान की गई है. इन पेड़ों को बचाए रखने के लिए पंचायत प्रतिनिधि और ग्रामीणों से मिलकर बने “संरक्षक-मंडल” द्वारा शपथ भी ली जाती है. पेड़ की मोटाई, छाल और आम जनता की राय के आधार पर पेड़ को पुराना माना जाता है.

अभियान को लेकर लोगों में जागरूकता भी बढ़ती जा रही है. मसलन, इस साल अप्रैल में पेड़ों को गोद लेने वाले लोगों की संख्या 6,479 थी जो मई में लगभग ढाई गुनी होकर 16,531 पर पहुंच गई. जून में वृद्धि की दर और बढ़ी और ये आंकड़ा 58,372 पर आ गया. अगस्त तक पेड़ों को गोद लेने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 82,655 पर पहुंच गई.

बिहार विकास मिशन के जिला कार्यक्रम प्रबंधक रणजीत कुमार ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “हमने आधिकारिक रूप से इस साल अप्रैल से आंकड़े जुटाना शुरू किया. उससे पहले के आंकड़े को भी हमने मैनुअली संभाला लेकिन बेहतर ढंग से डेटा मैनेजमेंट का काम थोड़ा लेट शुरू हुआ.” कुमार ने बताया कि एक लाख का आंकड़ा जल्द ही प्राप्त कर लेंगे.

400 साल पुराने बरगद के साथ चंपारण के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक. तस्वीर पूर्वी चंपारण जिला प्रशासन के सौजन्य से.

400 साल पुराने बरगद के साथ चंपारण के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक. तस्वीर पूर्वी चंपारण जिला प्रशासन के सौजन्य से.

जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक अभियान का नाम गार्डियन ऑफ ट्री चंपारण रखने की रोचक वजह बताते हैं. उनके मुताबिक, ”इन पेड़ों ने चंपारण के हर सुख-दुःख में साथ निभाया है और इसीलिए अभियान का ये नाम रखा गया है. इस अभियान के लिए प्रेरणा कहां से मिली, इस पर जिलाधिकारी ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “मैंने पूर्वी चंपारण में बाढ़ के समय देखा कि किस तरह एक पेड़ इंसान और जानवरों के लिए जीवन रक्षक बन जाता है. जब सैकड़ों सालों से इन पेड़ों ने चंपारण की रक्षा की है, तो पुराने हो चुके इन पेड़ों को बचाना भी हमारी जिम्मेदारी है.”

पेड़ों की जियोटैगिंग

पूर्वी चंपारण में मनरेगा के जिला कार्यक्रम अधिकारी अमित उपाध्याय ने मोंगाबे-हिंदी को बताया, “पिछले एक साल में गार्डियन ऑफ़ ट्री, चंपारण अभियान के तहत करीब 85 हजार लोगों ने 12300 पेड़ों को गोद लिया है. करीब 13 हजार पेड़ों की जरिए जियोटैगिंग की जा चुकी है.” इस अभियान के लिए इसी नाम से एक ऐप भी बनाया गया है. ऐप में सभी जियो टैग पेड़ों की सूची है. यह सूची प्रखंड और पंचायत के हिसाब से बनी हुई है. इसमें पेड़ों की उम्र, वैज्ञानिक और स्थानीय नाम के साथ रही सामाजिक और ऐतिहासिक जानकारियां भी दर्ज हैं. ऐप को आम लोग देख सकते हैं और अपनी सुविधा के हिसाब से किसी पेड़ को गोद ले सकते है. ऐप में नाम-पता दर्ज करने पर ऑटो जेनरेटेड सर्टिफिकेट आ जाता है.

अमित उपाध्याय कहते हैं, “हमने लोगों को अपने जन्मदिन, सालगिरह या ऐसे ही विशेष मौकों पर ऐप के जरिये पेड़ गोद लेने के लिए प्रेरित किया है.” ऐप में दर्ज और इससे प्राप्त सूचनाओं के आधार पर संबंधित पेड़ की सुरक्षा हेतु जिला प्रशासन की तरफ से जरूरी प्रयास किए जाते हैं. जैसे, इन पुराने पेड़ों को कब मिट्टीकरण, खाद, पानी या ट्रीटमेंट की जरूरत है. इसकी जानकारी मिलते ही आवश्यक कार्रवाई की जाती है. मनरेगा योजना से भी इन पुराने दरख्तों को बचाने में मदद मिली है. जिला प्रशासन ने मिट्टी डलवा कर इन वृक्षों की जड़ें मजबूत करने का काम किया है. पेस्ट कंट्रोल के साथ ही चूना पुताई का काम भी किया जाता है. वहीं गोद लेने वाले लोगों को भी देखभाल, मिट्टी भराई, कीटनाशक छिड़काव जैसे काम करने होते हैं.

जनसहभागिता पर जोर

इस अभियान का मुख्य पहलू जनसहभागिता भी है. पूर्वी चंपारण के उप विकास आयुक्त कमलेश कुमार सिंह ने बताया, “हमने इस अभियान में जीविका दीदियों, पंचायत प्रतिनिधियों, सेवानिवृत्त सैनिकों और आम लोगों को जोड़ा है. स्थानीय स्तर पर ही लोग पेड़ गोद ले लेते है और उसकी रक्षा के लिए मंडली बना लेते है. प्रशासन बस आवश्यक तकनीकी सहयोग करता है और लोगों को जागरूक करने का काम करता है.”

मसलन, सुगौली प्रखंड के बथहां पंचायत के रहने वाले पूर्व मुखिया चुनचुन सिंह ने अपने घर के सामने वाले विशाल पीपल के पेड़ को गोद लिया है. सिंह ने अपने खर्च से इस पेड़ की जड़ में मिट्टी भराई और पेस्ट कंट्रोल कराया. इस पेड़ को गोद लेने के बारे में चुनचुन सिंह मोंगाबे-हिन्दी को बताते है, “इसे हम बचपन से देखते आ रहे है. जब हमारे जिले में यह अभियान चला तो मैंने भी इस पेड़ को गोद लेने के बारे में सोचा.”

आमतौर पर लोग विशाल दरख्तों के इर्द-गिर्द पक्का चबूतरा बना देते है. लेकिन गार्डियन ऑफ ट्री के तहत ऐसा नहीं किया जा रहा है. सुगौली प्रखंड के मनरेगा पीओ सतीश कुमार कहते हैं, “कंक्रीट के चबूतरे से पेड़ों में ऑक्सीजेनेशन की समस्या आती है, इसलिए हमने सिर्फ मिट्टी भराई करने का ही फैसला लिया.”

अभियान के तहत जीविका दीदियों द्वारा पेड़ों को राखी बांधी जाती है। 2021 के रक्षाबंधन कार्यक्रम में जीविका दीदियों के विभिन्न समूहों की 50,000 दीदियों ने वृक्षाबंधन कार्यक्रम में भाग लिया था। तस्वीर पूर्वी चंपारण जिला प्रशासन के सौजन्य से।

अभियान के तहत जीविका दीदियों द्वारा पेड़ों को राखी बांधी जाती है. 2021 के रक्षाबंधन कार्यक्रम में जीविका दीदियों के विभिन्न समूहों की 50,000 दीदियों ने वृक्षाबंधन कार्यक्रम में भाग लिया था. तस्वीर - पूर्वी चंपारण जिला प्रशासन के सौजन्य से

इसी तरह मोतिहारी प्रखंड के अमर छतौनी के देवेन्द्र पटेल की माता की भी कहानी है, जिन्होंने करीब 70 साल पहले ससुराल आने के पहले दिन अपनी सास के कहने पर एक पेड़ लगाया था. वह पेड़ आज भी जीवित है. इसी इलाके के पंचायत रोजगार सेवक वाहिद मंजर बताते है कि जब पूर्वी चंपारण में यह अभियान शुरू हुआ तो देवेन्द्र पटेल की माता ने उनसे अनुरोध किया कि इस पुराने पेड़ को भी बचाने का प्रयास किया जाए.

इस अभियान के तहत जीविका दीदियों द्वारा पेड़ों को राखी बांधी जाती है. 2021 के रक्षाबंधन कार्यक्रम में जीविका दीदियों के विभिन्न समूहों की 50,000 दीदियों ने वृक्षाबंधन कार्यक्रम में भाग लिया था. इस अभियान को जारी रखने के लिए जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने कुछ चुनिन्दा गार्डियन ट्री को पेंशन देने की योजना भी बनाई है. इसके पीछे विचार है कि इस पैसे से पेड़ के आसपास लगातार कुछ गतिविधियां होती रहेंगी, जिससे लोगों के बीच पेड़ और पर्यावरण को ले कर जागरूकता बढ़ेगी.

पर्यावरण को लेकर बढ़ी जागरूकता

अभियान को शुरू हुए एक साल हो चुके हैं लेकिन इसके नतीजे सामने आने में अभी समय लगेगा. हालांकि बिहार के मुख्य सचिव ने हाल ही में बिहार के सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिख कर 50 साल से ऊपर के वृक्षों को बचाने के लिए कहा है. बिहार सरकार ने इसके लिए एक ऐप भी बनाया है. इसका नाम है बिहार हेरिटेज ट्री. हालांकि लोगों का कहना है कि अभियान के चलते पर्यावरण को लेकर लोग सजग हुए हैं.

सुगौली प्रखंड के भटहा पंचायत के कौशल किशोर सिंह से मोंगाबे-हिंदी को बताया, “आज के गार्डियन ट्री 20-25 साल बाद नहीं रहेंगे. इसलिए आज हम अपने गांव में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा रहे हैं, ताकि वे कल के गार्डियन ट्री बन सके.” सुगौली के ही मनरेगा प्रोग्राम ऑफिसर सतीश कुमार ने बताया कि इस बार सुगौली प्रखंड में हमने रिकार्ड संख्या में पेड़ लगाए है, करीब 94 यूनिट. एक यूनिट में 200 पेड़ होते है, जिसमें से 40 यूनिट पेड़ निजी जमीन पर लगाए गए हैं. भारतीय वन रिपोर्ट की के मुताबिक पूर्वी चंपारण में 1.94% पेड़ बढ़े है. पिछले दो साल मे जिला प्रशासन ने 15 लाख पौधे लगाए हैं, जिसमें से 80% जीवित हैं.

इसी प्रखंड के शंभुनाथ गुप्ता ने बताया कि अभियान शुरू होने के बाद से हमें यह अहसास हुआ कि अगर हम ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करें इसके कई लाभ हैं. गुप्ता कहते हैं, “एक तो हमें आने वाले समय में कीमती इमारती लकड़ी मिल जाएगी और दूसरा यह कि अधिक पेड़ होंगे तो प्रदूषण कम होगा.” पूर्वी चंपारण के मनरेगा कार्यक्रम अधिकारी अमित उपाध्याय के मुताबिक़, ”यह अभियान पूरी तरह से जनसहभागिता से चल रहा है. इसके लिए कोई सरकारी बजट अलग से आवंटित नहीं हुआ है. थोड़ा बहुत मनरेगा के तहत लोगों को प्रेरित कर के पेड़ लगवाए जाते हैं, पेड़ों के आसपास मिट्टी भरवाई जाती है.”

(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)

बैनर तस्वीर: हरसिद्धि प्रखंड के सोनवरसा गांव में 400 साल पुराने बरगद के पेड़ की पहचान की गई और स्थानीय लोगों के सहयोग से इसे संरक्षित किया गया है. तस्वीर पूर्वी चंपारण जिला प्रशासन के सौजन्य से.