नेचर और कल्चर से प्रेरणा लेकर शुरू किया हैंडबैग ब्रैंड, 25 हज़ार रुपए से करोड़ों तक पहुंचा टर्नओवर
हम आपको हैंडबैग के एक ऐसे ब्रैंड के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके प्रोडक्ट्स का डिज़ाइन अलग-अलग देशों की संस्कृति और वहां की ऐतिहासिक विरासतों से प्रेरित है।
हम आपको हैंडबैग के एक ऐसे ब्रैंड के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके प्रोडक्ट्स का डिज़ाइन अलग-अलग देशों की संस्कृति और वहां की ऐतिहासिक विरासतों से प्रेरित है। दिलीप कहते हैं, "एक महिला के लिए उसके हैंडबैग की ख़ास क़ीमत होती है। महिलाओं के लिए हैंडबैग्स फ़ैशन स्टेटमेंट का काम करते हैं।" हाइडसाइन नाम से मार्केट में मौजूद इस ब्रैंड के फ़ाउंडर दिलीप कपूर कहते हैं कि उनकी प्रोडक्ट रेंड अफ़्रीका के मासाई वॉरियर्स से लेकर पैरिस के कल्चर से प्रेरित कैप्सूल कलेक्शन तक कई नायाब और अलहदा डिज़ाइन्स मौजूद हैं और पूरी तरह से यूनीक यह प्रोडक्ट रेंज ही हाइडसाइन को ख़ास बनाती है। दिलीप प्रकृति और संस्कृति से मिलने वाली प्रेरणा को अपने प्रोडक्ट्स में संजोते हैं।
दिल्ली में पैदा हुए दिलीप 6 साल की उम्र में ही पुडुचेरी चले गए। इसके बाद वह पढ़ाई के लिए प्रिंसटन (यूएस) चले गए और उन्होंने डेनवर यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय मामलों में पीएचडी डिग्री ली। 1977 में वह, ऑरोविल में रहने के लिए भारत लौटे। इस दौरान ही उन्होंने हाइडसाइन की शुरुआत की और तब से आज तक वह ब्रैंड की कमान संभाले हुए हैं। अपने अलहदा क़िस्म के प्रोडक्ट्स और दूरगामी सोच की बदौलत उन्होंने 25 हज़ार रुपए के निवेश के साथ शुरू हुई कंपनी को करोड़ों रुपए के टर्नओवर तक पहुंचाया। हाइडसाइन लगातार इनोवेशन के माध्यम से अपने प्रोडक्ट्स को बेहतर बनाता रहा है।
ख़ाली वक़्त में दिलीप को ऑरोविल के जंगलों में अपने कुत्ते के साथ घूमने का बहुत शौक़ है। वह अक्सर ऑरोविल में अपनी रॉयल एनफ़ील्ड बुलेट पर घूमते हैं, रेड वाइन का आनंद लेते हैं और प्रकृति से संवाद स्थापित करने की हर संभव कोशिश करते हैं। दिलीप से मुलाक़ात के बाद, योर स्टोरी वीकेंडर को उनके बारे में कई और दिलचस्प बातें जानने को मिलीं।
दुनिया घूमने का है शौक़, पर यूं ही नहीं!
दिलीप को ऐसे देशों की यात्रा में दिलचस्पी रहती है, जो सांस्कृतिक रूप से बेहत संपन्न हों। साल का बड़ा हिस्सा वह विदेश में ही बिताते हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ़ देश के बाहर जाने का शौक़ नहीं है और न ही विदेश यात्राओं की तरफ़ उनका कोई आकर्षण है। दिलीप बताते हैं कि उन्हें देश के बाहर जाकर विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानना पसंद है और इसलिए ही वह उन देशों की यात्रा करना पसंद करते हैं, जिनके पास ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संपदा हो। उन्हें अफ़्रीका, सुडान, सहारा, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार और बोर्नियो की यात्रा करना पसंद है।
‘किताबें पढ़ता हूं पर नाम याद नहीं रहते’
ऑरोविल में बिताए हुए अपने समय का ज़िक्र करते हुए हास्यास्पद अंदाज़ में दिलीप कहते हैं, "जब आप जंगल में रहते हैं, तो आपका रुझान पढ़ाई की तरफ़ कुछ ज़्यादा ही हो जाता है। मैं न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉल स्ट्रीट जर्नल और कुछ भारतीय अख़बार भी पढ़ता हूं। मुझे फ़िक्शन पढ़ना काफ़ी पसंद है, लेकिन मुझे अधिकतर किताबों के नाम याद नहीं रह पाते। मेरे बेटा न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए लिखता है और इसलिए वह हमेशा ही मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित करता रहता है। मेरा बेटा मेरे जन्मदिन और क्रिसमस पर हर साल मुझे 8 किताबें गिफ़्ट में देता है। "
पुडुचेरी से ख़ास लगाव
दिलीप को पुडुचेरी से ख़ास लगाव है। पुडुचेरी की ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण के प्रति भी दिलीप हमेशा सक्रिय रहते हैं। उन्होंने जानकारी दी कि साल में दो बार एक ख़ास फ़ेस्टिवल का आयोजन किया जाता है, जहां पर लोगों को आमंत्रित कर, उनके साथ ऐतिहासिक इमारतों और संस्कृति के संरक्षण से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जाती है। दिलीप कहते हैं, "मैं सालों तक ऑरोविल के जंगल में रहा हूं। ईकोलॉजी हमारे जीवन का ही हिस्सा है। दिन-रात हमने ऑरोविल के संरक्षण के लिए प्रयास किए हैं।"
दिलीप ऑरोविल में विद्यार्थियों को इंटरनैशनल अफ़ेयर्स विषय पढ़ाते हैं। इतना ही नहीं, दिलीप डिज़ाइनिंग स्कूलों के विद्यार्थियों के साथ भी लगातार काम करते रहते हैं। दिलीप बताते हैं, "बच्चों को मैं हमेशा बताता रहता हूं कि यह बेहत ज़रूरी है कि आप ग़लती करें। मैं उनसे कहता हूं कि कड़ी मेहनत करना ज़रूरी है, लेकिन इनोवेशन के माध्यम से ही आगे बढ़ा जा सकता है।"वह बताते हैं कि ईकोलॉजी, नए प्रयोग की तलाश और स्थिरता ही मेरे ब्रैंड और मेरे व्यक्तिगत जीवन के आधार हैं।
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