जयंती विशेष: 'वर दे वीणावादिनि वर दे' रचने वाले हिंदी के 'महाकवि' सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
हिंदी हृदय के क्षेत्र में पैदा हुए, हिंदी मातृभाषी, जो हिंदी साहित्य पढ़ते हुए बड़े हुए हैं, उनके जीवन में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का नाम महत्त्वपूर्ण और ऊंचा है. निराला एक प्रसिद्ध हिंदी कवि, लेखक और निबंधकार रहे जिन्होंने अपनी अंतहीन रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया.
पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में 21 फरवरी 1896 को जन्में निराला की मातृभाषा बांग्ला थी. 20 वर्ष की आयु में निराला ने हिन्दी सीखनी शुरू की, जिसके बाद उन्होंने हिंदी भाषा को अपने लेखन का माध्यम बनाया. सूर्यकांत तिरपाठी निराला ने न केवल हिंदी में महारत हासिल की, बल्कि हिंदी साहित्य के नव-रोमांटिक स्कूल के अग्रणी भी रहे.
तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो जाने का दुःख निराला ने अपने अबोध मन से ही अर्जित कर लिया था. बड़े होने पर अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा. नौकरी न होने की असुविधाओं और उस पक्ष से जुड़े मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ.
पहले युद्ध के बाद फ्लू की महामारी में उन्होंने अपनी पत्नी मनोहरा देवी सहित अपने परिवार के आधे लोगों को खो दिया. इस दुःख के बोध के साथ निराला आजीवन रहे. आर्थिक संघर्ष भी ऐसा रहा कि जीवन ऐसा न बीता की कल की चिंता न करनी पड़े. निराला प्रकृति और संस्कृति दोनों के अभिशापों को झेलते हुए बचे हुए जीवन को गंभीर साहित्यिक खोज के लिए समर्पित कर दिया. निराला ने ठीक ही कहा:
“दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूं आज जो नहीं कही”
यह सिर्फ उनकी कविता की पंक्तियां नहीं थी- निराला का यथार्थ था.
‘निराला’ का साहित्य
जयशंकर प्रसाद, महादेवी प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त के साथ छायावाद के चारों स्तंभों में निराला एक थे. निराला एक छायावादी कवि तो थे, लेकिन साथ ही रूसी रोमांटिक कवि अलेक्जेंडर पुष्किन की तरह एक क्रांतिकारी यथार्थवादी भी थे. गरीबी से निकला हुआ कवि यथार्थवादी होगा ही. उनकी कलम ने सामाजिक अन्याय और शोषण के खिलाफ प्रभावी ढंग से लिखा. उनकी कविता 'वह तोड़ती पत्थर' एक छोटी बच्ची, जिसे अपनी रोटी कमाने के लिए स्टोन क्रशर का काम करना पड़ता है, के जीवन का यथार्थ-चित्रण है.
वहीं, ‘जूही की कली’ और ‘बंधु’ जैसे गीत भी लिखे, जिसमें करुण और वीर रस की अधिकता है.
निराला की तीन रचनाएं ‘सरोज स्मृति,’ ‘राम की शक्ति पूजा’ और ‘सरस्वती वंदना’ उनकी विरासत को एक नई ऊंचाई देती है.
एक कवी की हैसियत से शायद निराला का सबसे बड़ा योगदान कविता को रिक्त छंदों में मुक्त करना था.
'निराला' का व्यक्तित्व
अपनी कविताओं में वेदना भरने के गुण के साथ निराला के पास अपना व्यक्तित्व भी था. वह अक्खड़ थे, स्वाभिमानी थे.
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ उनके वैचारिक मतभेद प्रसिद्ध है. वह नेहरू के पश्चिमी पालन-पोषण के बेहद आलोचक थे. निराला के लिए, जिनके लिए आम आदमी जीवन में हर चीज का निर्विवाद केंद्र बिंदु था, नेहरू एक बाहरी व्यक्ति थे.
निराला के अक्खड़पन का एक और किस्सा मशहूर है. हालांकि यह घटना निराला की हिंदी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और प्रेम को प्रदर्शित करती है. 1936 में एक साहित्य समारोह में, गांधी ने के पूछने पर कि "हिंदी के टैगोर कहां हैं?" निराला ने आगे बढ़कर गांधी से पूछा कि क्या उन्होंने पर्याप्त हिंदी साहित्य पढ़ा है या नहीं? उनके पूछने पर गांधी ने स्वीकार किया कि उन्होंने हिंदी साहित्य का अधिक अध्ययन नहीं किया है, जिसपर निराला ने कहा, "आपको मेरी मातृभाषा हिंदी के बारे में बात करने का अधिकार किसने दिया?" निराला ने आगे कहा, "मैं आपको अपनी और रवींद्रनाथ टैगोर की कुछ अनूदित रचनाएं भेजूंगा ताकि आपको हिंदी साहित्य के बारे में बेहतर जानकारी मिल सके".
15 अक्टूबर 1961 को, गंभीर आर्थिक तंगी में, निराला की मृत्यु हुई.
Edited by Prerna Bhardwaj