अपने ब्रैंड के लिए इंफ्लुएंसर मार्केटिंग करा रहे हैं? ये पैरामीटर्स बताएंगे कितना सफल रहा कैंपेन
इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग ऐसी मार्केटिंग है जिसमें ब्रैंड अपने प्रोडक्ट और सर्विसेज को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्सस पर प्रमोट करने के लिए इंडिजुअल्स के साथ कोलैबोरेट करते हैं. इसका मकसद ब्रैंड के प्रति लोगों के बीच जागरूकता, एंगेजमेंट और अंत में सेल्स बढ़ाना है.
आजकल बड़े से बड़े ब्रैंड इंफ्लुएंसर मार्केटिंग को आजमाना चाह रहे हैं. जब एक इंफ्लुएंसर लाखों करोड़ों इंडिविजुअल्स के माइंडसेट को बदलने की ताकत रखता हो तो इसे आजमाना बनता भी तो है
इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग ऐसी मार्केटिंग है जिसमें ब्रैंड अपने प्रोडक्ट और सर्विसेज को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर प्रमोट करने के लिए इंडिजुअल्स के साथ कोलैबोरेट करते हैं. इसका मकसद ब्रैंड के प्रति लोगों के बीच जागरूकता, एंगेजमेंट और अंत में सेल्स बढ़ाना है.
हालांकि इंफ्लुएंसर मार्केटिंग टर्म जितना अहम बन गया है उतना ही जरूरी ये भी पता करना है कि इस कैंपेन का ब्रैंड अवेयरनेस और एंगेजमेंट को लेकर आखिर असर क्या पड़ा रहा है?
इंफ्लुएंसर, डिजिटल मार्केटिंग इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कैंपेन कितना सफल रहा इसका आंकलन मुख्यतः एंगेजमेंट, वेबसाइट ट्र्रैफिक, सेल्स, ब्रैंड मेंशन और रीच जैसी चीजों से किया जा सकता है.
लाइक, कमेंट और शेयर के नंबर भी बता सकते हैं कि इंफ्लुएंसर ने जो पोस्ट किया है उस पर फॉलोअर्स प्रतिक्रिया दे रहे हैं या नहीं. वेबसाइट ट्रैफिक ट्रैक करके कन्वर्जन और ROI दोनों को तुलना करके भी देख सकते हैं.
WhizCo की को-फाउंडर और CMO प्रेरणा गोयल ने कहा, 'ये भी समझना होगा कि इंफ्लुएंसर मार्केटिंग सिर्फ सेल्स या वेबसाइट ट्रैफिक तक ही सीमित नहीं है. बल्कि ऑडियंस के साथ विश्वास और क्रेडिबिलिटी का रिश्ता बनाना भी इसी के दायर में आता है.
चूंकि इंफ्लुएंसर ने पहले ही अपने ट्रस्ट और क्रेडिबिलिटी के आधार पर अपने फॉलोअर्स जुटाए हैं. इसलिए जब वो किसी ब्रैंड को प्रमोट करेंगे तो फॉलोअर ब्रैंड पर जरूर भरोसा करेंगे.'
अगर सोच समझकर इंफ्लुएंसर मार्केटिंग कैंपेन बनाया जाए तो यकीनन इससे ब्रैंड बिल्डिंग, कन्वर्जन और अंत में रेवेन्यू लाने में मदद मिलती है.
वहीं WhizCo की Co-founder और COO आस्था गोयल ने कहा, कैंपेन कितना सफल हुआ है ये जानने के लिए कस्टमर्स के बीच सर्वे भी करा सकते हैं. ग्राहकों से पूछ सकते हैं कि क्या वे कैंपेन के बारे में जानते थे और क्या इसने उनके खरीदने के फैसले पर किसी तरह का असर पड़ा था.
इससे आपको यह पता चलेगा कि अभियान आपके टारगेट दर्शकों के साथ कितनी अच्छी तरह मेल खा रहा है या इंफ्लुएंसर विशेष का आपके ब्रैंड का कितना अच्छा प्रचार कर रहा है.
कॉस्मोफीड के कोफाउंडर विवेक यादव कहते हैं कि कैंपेन के आखिर में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आपने कैंपेन के लिए जो केपीआई तय किया है वो अंत में आते आते बदल तो नहीं गया. शुरू में ही ढेर सारे KPI बनाने की गलती न करें. कैंपेन के आखिर में देखें कि खर्च के बदले आपको कितना मिला है.
अलग-अलग चैनलों पर अन्य मार्केटिंग कैंपेन से क्या नतीजे आएं हैं उसकी तुलना करें. इससे आपको अंदाजा हो जाएगा कि आपका कैंपेन सफल हुआ या नहीं.
आप अपने सोशल या वेबसाइट पर एक ऑर्गैनिक पोस्ट करके कंटेंट को दोबारा रिपरपज करके कैंपेन की सफलता का आंकलना जारी रख सकते हैं. इससे ऑर्गैनिक रेस्पॉन्स तो टेस्ट होता ही है साथ में पार्टनरशिप और ROI की भी तुलना होती है.
डिजिटल मार्केटिंग फर्म डिजिटल ROI के सीईओ और फाउंडर विकास मांगला के मुताबिक इन तरीकों से भी पता लगा सकते हैं कि इंफ्लुएंसर मार्केटिंग कितनी कारगर साबित हुई है.
1) इसका एक जरिया है यूनिक डिस्काउंट कोड्सः आप इंफ्लुएंसर्स के कैंपेन पर अलग डिस्काउंट कोड दे सकते हैं. किस कोड से कितने सेल हुए हैं ये पता करके आप जान सकते हैं कि कौन सा इंफ्लुएंसर कितना एंगेजमेंट और रेवेन्यू दे रहा है.
2) डेडिकेटेड लैंडिंग पेजः कई ब्रैंड्स ने इंफ्लुएंसर कैंपेन के प्रभाव को मापने के लिए अलग एक स्पेशल लैंडिंग पेज बना रखा है जिससे एंगेजमेंट कैलकुलेट करना आसान हो जाता है.