कुदरत की सबसे जीवंत इबारत पर हैवानियत के धब्बों से इंसानियत शर्मसार
कहा तो जा रहा है कि हैदराबाद में जो (एनकाउंटर) हुआ, ठीक नहीं लेकिन बेटियों के साथ जो हो रहा है, वह क्या है? कहने वालों के पास एक भी बेटी के साथ हैवानियत न होने की गारंटी नहीं! सभी राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा पत्रों में तो आधी आबादी की सुरक्षा का मुद्दा नदारद है लेकिन सियासी रोटियां सेंकने में कोई पीछे नहीं।
कुदरत की सबसे खूबसूरत और जीवंत इबारत, मातृशक्ति के आंचल पर हैवानियत के धब्बों ने पूरी इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। पूरी दुनिया में इस समय देश की थू-थू हो रही है। दिल्ली में सफदरजंग अस्पताल के बाहर उन्नाव रेप केस के खिलाफ प्रदर्शन कर रही एक महिला ने अपनी छह साल की बेटी पर पेट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश की।
कहा तो जा रहा है कि हैदराबाद में जो (एनकाउंटर) हुआ, ठीक नहीं लेकिन बेटियों के साथ जो हो रहा है, वह क्या है, उसका समाधान क्या है, कहने वालों के पास किसी एक भी बेटी के साथ हैवानियत न होने की गारंटी नहीं है! हां, भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के इस कथन से अवश्य सहमत हुआ जा सकता है कि कार्रवाई अगर बदले के इरादे से की जाए तो ऐसे में न्याय अपना चरित्र खो देता है।
देश में हाल की घटनाओं ने नए जोश के साथ पुरानी बहस छेड़ दी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपराधिक न्याय प्रणाली को अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिए और आपराधिक मामलों को निपटाने में ढिलाई के रवैये में बदलाव लाना होगा।
इस बीच केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि वह सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों से अपील करते हुए पत्र लिखने जा रहा हैं कि नाबालिगों से जुड़े रेप केस की जांच दो महीने के अंदर निपटाने की व्यवस्था की जाए। देशभर में 1023 नए फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का प्रस्ताव दिया गया है, जिनमें से 400 पर आम सहमति बन गई है और 160 से ज्यादा पहले ही शुरू हो चुके हैं। इसके अलावा 704 फास्ट ट्रैक कोर्ट पाइप लाइन में हैं।
सबसे गंभीर मसला ये है कि महिलाओं के प्रति पिछले डेढ़ दशक से इतने बर्बर हालात के बावजूद लगभग सभी राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा पत्रों से आधी आबादी की सुरक्षा का मुद्दा आज भी नदारद है लेकिन उन्नाव-हैदराबाद की घटनाओं पर प्रियंका गांधी हों या अखिलेश यादव, भाजपा हो या बसपा, जो कहा जा रहा है, संसद से सड़क तक सिर्फ अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए।
भाजपा प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील नलिन कोहली तो कहते हैं कि घोषणापत्र में रेप को मुद्दा बनाना अत्यधिक दुखद बात होगी। जहां तक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं और जन-प्रतिनिधियों की बात है, सांसद और जन प्रतिनिधि भी तो हमारे समाज का ही हिस्सा हैं।
कांग्रेस नेता सुष्मिता देव कहती हैं, पार्टियां घोषणापत्र में शामिल महिलाओं के मुद्दों का पर्याप्त प्रचार करें। बलात्कार, हत्या और यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों के अभियुक्तों को संसद से बाहर रखा जाना चाहिए। यह भी गौरतलब है कि भाजपा के घोषणापत्र में महिला सुरक्षा के ज़िक्र के बिना चार बिंदुओं में निबटा दिया गया है। कांग्रेस के घोषणापत्र में भी सिर्फ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के क़ानून की समीक्षा की बात कही गई है।