मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद बने आईएएस, अब किताब में लिखी अपनी कहानी
पने चाहे जितने बड़े हों, मंजिल चाहे जितनी दूर हो, राहें भले आसान न हों, योजनाबद्ध तरीके से किया गया कोई भी काम सफलता का सबब बनता है। आइएएस बनने की ऐसी कठिन राह आसान करती है डॉ के. विजय कार्तिकेयन की किताब ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’, जो स्वयं नौकरशाह हैं।
देश की सबसे प्रतिष्ठित और सबसे कठिन सिविल सेवा परीक्षाएं आयोजित कराता है संघ लोक सेवा आयोग। आईएएस अफसर बनने का सपना देखते हुए लगभग बारहो महीने देश के लाखों छात्र ये परीक्षा पास करने की तैयारी में जुटे रहते हैं। सटीक रणनीति, धैर्य और मेहनत के अभाव में उनमें से गिने-चुने ही अपने सपनों की हकीकत में बदल पाते हैं। ऐसे ही युवाओं को राह दिखा रही हैं आइएएस डॉ. के विजयकार्तिकेयन की किताब- ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’।
एक नौकरशाह के रूप में वह सबसे कम उम्र के अधिकारी डॉ कार्तिकेयन वर्तमान में कोयम्बटूर नगर निगम के कमिश्नर हैं। एक आईएएस अधिकारी के रूप में अपने काम-काज से उनको बेहद लोकप्रियता मिली है। वह अपने बेहतर दायित्व निभाने के लिए कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं।
डॉ कार्तिकेयन के पिता भी भारतीय वन सेवा विभाग में रहे हैं। उनसे ही प्रेरित होकर उन्होंने छात्र जीवन के बाद सिविल सेवा में जाने का मन बनाया। वह बताते हैं - 'मैंने हमेशा पापा को आदिवासियों के विकास और इको-टूरिज्म के क्षेत्र में काम करते हुए देखा तो लगा कि प्रशासनिक सेवाओं के माध्यम से आम लोगों के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। मुझे मालूम था कि सिविल सेवा की परीक्षा बहुत कठिन होती है। इसलिए मुझे प्लान-बी की जरूरत थी। मेडिकल की पढ़ाई ने भी मुझे लोगों से मिलने और किसी तरह उनकी मदद करने के अवसर दिए। पांच साल की मेडिकल की पढ़ाई के अनुभव ने मेरी काफ़ी मदद की। इससे मुझे सिस्टेमेटिक तौर पर पढ़ने में मदद मिली। जो चैप्टर जितने पृष्ठों का रहता था, मैंने उसके पूरे सिलेबस को अलग-अलग प्वॉइंटर्स में लिखकर पढ़ा। उनका सपना आईएएस अफ़सर बनने का था।'
डॉ कार्तिकेयन कहते हैं कि 'लोगों से कैसे बातचीत की जाती है, यह जानना-समझना काम का होता है। इसके लिए क्विज़, भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताओं के साथ ही लेखन में निपुण हो जाना चाहिए। एक प्रशासनिक अधिकारी अपने काम के दौरान विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलता है। हमारे अंदर उन लोगों से घुलने-मिलने की योग्यता जरूरी है। अपने पहले ही प्रयास में मैं सफल नहीं हुआ। वही असफलता मेरे लिए प्रेरणा बनी। उस वक्त लगा कि मुझे स्वयं को और भी ठीक करने की जरूरत है। वह मेरी पहली असफलता थी।'
डॉ कार्तिकेयन ने अपने अतीत के हर तरह के अहसास, एक्सपीरियंस को यह सोचते हुए अपनी पुस्तक ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’ में साझा किया है कि उससे आईएएस होने का सपने देने वाले युवाओं को अपेक्षित मदद मिले और वे आसानी से अपनी मंजिल पर पहुंच सकें। उन्होंने युवा प्रतियोगियों को सहज तरीके से अपनी बातें समझाने के लिए ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’ में एक 'विशी' नाम से पात्र गढ़ा और उसके माध्यम से प्रतियोगी परीक्षाओं की एक एक जटिलता पर पार पाने के रास्ते सुझाते जाते हैं।
मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद वह सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करने लगे। फर्स्ट अटेम्प्ट में विफल होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार तैयारी में जुटे रहे। रोजाना आठ-दस घंटे पढ़ाई में जुटे रहे और आखिरकार आईएएस बन ही गए। डॉ. कार्तिकेयन ने ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’ में अपनी कोचिंग के अनुभवों, कोचिंग सेंटरों के तौर तरीकों को भी साझा किया है।
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