कोई व्यक्ति वरीयता के आधार पर वरिष्ठ है तो उसका सम्मान होना चाहिए: अदालत
कोई भी व्यक्ति अपनी वरीयता के आधार पर वरिष्ठ है और अगर कनिष्ठों से अकादमिक योग्यता में कम भी हो तो भी उसका सम्मान किया जाना चाहिए। यह टिप्पणी दिल्ली उच्च न्यायालय ने की है।
उच्च न्यायालय ने अवहेलना को दुर्व्यवहार करार देते हुए विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट (एसईएम) और एक निचली अदालत के आदेशों में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। निचली अदालत ने एम्स के एक जूनियर डॉक्टर को दक्षिण दिल्ली इलाके में शांति बनाए रखने का निर्देश दिया था, जिनकी अपने वरीय चिकित्सक के साथ बहस हो गई थी।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने कहा,
‘‘कोई अपनी वरिष्ठता के कारण वरीय है, कनिष्ठों से उसकी अकादमिक योग्यता कम हो सकती है, फिर भी उसका सम्मान किया जाना चाहिए और अधीनस्थता को बनाए रखना चाहिए।’’
मामला मार्च 2017 में रूमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख और एक डॉक्टर के बीच हुई बहस से जुड़ा हुआ है जिसके बाद वरिष्ठ महिला चिकित्सक ने अपने अधीनस्थ के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी।
अदालत अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक चिकित्सक ने एसईएम के तीन अगस्त 2018 के फैसले को चुनौती दी थी। फैसले में कहा गया कि कनिष्ठ चिकित्सक विभाग प्रमुख से ऊंची आवाज में बात करते थे और दो अवसरों पर उनका व्यवहार कुटिल, अवांछनीय और अनुचित था।
आपको बता दें कि इससे पहले साल 2018 के दिसंबर माह में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि भारत में दस करोड़ से अधिक बुजुर्गो के अधिकारों का सम्मान करने के साथ ही इन्हें लागू किया जाना चाहिए। साथ ही न्यायालय ने केन्द्र को सभी राज्यों से प्रत्येक जिले में उपलब्ध वृद्धाश्रमों की संख्या के बारे में जानकारी प्राप्त करने का निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने बुजुर्गो के लिये पेंशन व्यवस्था पर नये सिरे से गौर करने और उसे अधिक वास्तविक बनाने का सुझाव दिया। न्यायालय ने सामाजिक न्याय के पहलू पर जोर देते हुये कहा कि बुजुर्गो सहित सभी नागरिकों के गरिमा के साथ जीने, रहने और स्वास्थ्य के अधिकार सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी ही नहीं हैं बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि इन अधिकारों की रक्षा हो और इन्हें लागू किया जाये।
पीठ ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि 1951 में देश में 1.98 करोड़ बुजुर्ग थे जिनकी संख्या 2001 में 7.6 करोड़ और 2011 में 10.38 करोड़ हो गयी थी। इस आधार पर अनुमान है कि 2026 तक इनकी संख्य 17.3 करोड़ तक पहुंच जायेगी
(Edited by रविकांत पारीक )