IIT के छात्रों ने नदियों की सफ़ाई के लिए खोज निकाली यह ख़ास और किफ़ायती तरक़ीब
आईआईटी मंडी के शोधार्थियों ने एक विशेष तरीक़ा खोज निकाला है, जिसके माध्यम से पानी से तेल को अलग कर सकता है। यह प्रयोग नदियों की सफ़ाई की दिशा में वरदान साबित हो सकता है।
भारत की दो सबसे प्रमुख नदियां, गंगा और यमुना की गिनती दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में होती है। ये दोनों नदियों जिन प्रदेशों से होकर गुज़रती हैं, वहां के उद्योगों और नालों से प्रदूषण फैलाने वाली सामग्रियां इनमें घुल जाती हैं। हर दिन टैनरियों से निकलने वाला 2,900 मिलियन लीटर गंदा पानी गंगा में मिलता है।
केंद्र सरकार ने इस स्थिति को सुधारने के लिए 'नमामि गंगे' नाम से एक मिशन की शुरुआत की। इस मिशन के तहत यमुना नदी की भी सफ़ाई होनी है। बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट्स के मुताबिक़, सड़क परिवजन, हाईवे, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा के कायाकल्प हेतु केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, "मार्च, 2019 के अंत तक, 70-80 प्रतिशत गंगा नदी की सफ़ाई हो जाएगी और मुझे पूरी उम्मीद है कि मार्च, 2020 तक गंगा नदी पूरी तरह से प्रदूषण रहित हो जाएगी।"
सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ, कुछ लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर भी नदियों की सफ़ाई की दिशा में प्रभावी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। आईआईटी मंडी में असोसिएट प्रफ़ेसर, डॉ. राहुल वैश ने एक ख़ास प्रक्रिया विकसित की है, जो नदियों के पानी से ऑर्गेनिक प्रदूषक तत्वों और तेल को अलग कर सकता है।
डॉ. वैश और उनकी टीम ने अपने प्रयोग की क्षमता के आकलन के लिए डीजल के जलने से निकलने वाली कालिख को पॉलिमर स्पंज (आमतौर पर तकिया में पाया जाता है) के साथ मिलाकर, पानी से तेल और अन्य ऑर्गेनिक पदार्थों को सोखने का परीक्षण किया।
योर स्टोरी से हुई बातचीत में डॉ. वैश ने विस्तार से बताया कि कॉर्बन युक्त पदार्थ जैसे कि कार्बन नैनोट्यूब्स, फ़िल्टर पेपर्स, मेश फ़िल्म्स और ग्रैफीन आदि की मदद से पानी से ऑर्गेनिक प्रदूषक तत्वों को अलग किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि डीजल से निकलने वाली कालिख (सूट) में 90 से 98 प्रतिशत कार्बन मौजूद होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आईआईटी, मंडी की टीम ने तय किया कि पानी में से तेल और अन्य ऑर्गेनिक प्रदूषकों को सोखने के लिए प्रदूषकों का ही इस्तेमाल करेंगे। इसके लिए, टीम ने एक हाइड्रोफोबिक स्पंज तैयार किया, जिसमें विभिन्न प्रकार के तेलों को सोखने की क्षमता थी और इसके लिए किसी भी तरह की जटिल प्री-ट्रीटमेंट प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं थी। शोध के दौरान उन्हें पता चला कि इंजन ऑयल के लिए 39 g/g की है। इतना ही नहीं, शोध के दौरान यह भी पता चला कि इन स्पंजों को भी रीसाइकल किया जा सकता था और यही नहीं, 10 सायकल्स पूरे के बाद भी ये 95 प्रतिशत तक प्रभावी बने रहते हैं।
इस प्रयोग के विषय में विस्तार से बताते हुए डॉ. वैश ने कहा, "एक स्पंज में सूट (डीज़ल से पैदा होने वाली कालिख) को इंटीग्रेट करने में सिर्फ़ दो मिनट का समय लगता है। हमारा उद्देश्य है कि नदियों और पानी के अन्य स्त्रोतों की सफ़ाई के लिए एक बेहद आसान और किफ़ायती प्रक्रिया इस्तेमाल में लाई जा सके। फ़िलहाल, हमें सिर्फ़ 50 प्रतिशत तक ही फ़िल्ट्रेशन मिल पा रहा है। हम एक वॉशिंग मशीन भी तैयार कर रहे हैं, जो हमारी रिसर्च को आगे बढ़ाने में मदद करेगी। यह डिस्चार्ज से पहले ही पानी में मिले प्रदूषकों को 70 प्रतिशत तक कम कर देगी।"
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