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समझें, फिलहाल चीनी उत्पादों के बहिष्कार से नुकसान किसका है?

चीन से आयात किए गए उत्पादों के बहिष्कार से पहले देशी कंपनियों को विकल्पों पर भी विचार करना होगा, अन्यथा कोरोना वायरस महामारी के चलते बने हालातों के साथ ही इन कंपनियों के सामने एक नई मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

(सांकेतिक चित्र)

(सांकेतिक चित्र)



भारत और चीन के बीच बढ़े सीमा विवाद के बाद अब देश में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की चर्चा तेज हो गयी है, हालांकि सरकार शुरुआत से ही स्वदेशी उत्पादों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करती आई है, लेकिन चीनी कंपनियों द्वारा निर्मित उत्पाद आज देश भर में बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिसका भारत के बाज़ार और मांग में बड़ा प्रभाव है।


सीमा तनाव के बाद देश में व्यापारियों के संगठन कॉन्फेडेरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने चीनी उत्पादों के बायकॉट का आह्वान किया था साथ ही संगठन ने देश की जानी-मानी हस्तियों से भी यह गुजारिश की है कि वे चीनी उत्पादों का प्रचार प्रसार भी बंद कर दें।


चीनी उत्पादों की भारत के बाज़ार में कितनी पहुँच है, इसका अंदाजा आप आंकड़ों के साथ आसानी से लगा सकते हैं। भारत में चीन से 20 बिलियन डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, 10.5 बिलियन डॉलर मूल्य के न्यक्लियर रिएक्टर और मशीनरी, 6 बिलियन डॉलर मूल्य के केमिकल उत्पाद और 2.3 बिलियन डॉलर मूल्य के स्टील उत्पादों का आयात हो रहा है।


भारत में निर्मित होने वाले उत्पादों में भी इस्तेमाल होने वाले कलपुर्ज़े या कच्चे माल की बड़ी मात्रा का आयात चीन से किया जाता है। चीन में निर्मित उत्पाद या कच्चा माल सस्ता पड़ता है, वहीं दूसरी ओर चीनी उत्पाद निर्माण कंपनियाँ लगातार इनोवेशन को अपने सबसे बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं।


भारत के लिए फिलहाल चीनी उत्पादों का बड़े पैमाने पर बहिष्कार करना कतई आसान नहीं है, उसका सबसे बड़ा कारण यह भी हैं कि बहिष्कार करने के साथ ही देशी कंपनियों और ग्राहकों को उन उत्पादों के विकल्प को भी खोजना पड़ेगा अन्यथा वे कंपनियाँ इस कठिन समय में अपने सिर अत्यधिक जोखिम ले लेंगी।





वर्तमान में चल रही कोरोना महामारी के चलते एक ओर जहां भारत में उद्योग अपने टिके रहने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे में सस्ते कच्चे माल के प्रति अचानक से कटाव उन्हे अधिक प्रभावित कर सकता है।


इसी के साथ चीन के अलावा अन्य देशों की कंपनियाँ जो भारत में अपने उत्पाद बेंचती हैं, वे भी अपने उत्पादों में चीन के उपकरणों या चीन से आयात किए गए कच्चे माल का इस्तेमाल करती हैं। इन कंपनियों में अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई कंपनियों जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं।

नुकसान किसका है?

ब्लूमबर्ग क्विंट के अनुसार साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार भारत के कुल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी महज 5 प्रतिशत की है, जबकि चीन भारत के कुल आयात में 14 प्रतिशत का हिस्सेदार है। इस तरह से चीन के साथ व्यापार करते हुए भारत को बड़े व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है।


गौरतलब है कि साल 2000 की तुलना में भारत में चीन से निर्यात 45 गुना बढ़ा है, जो 2018-19 में 70 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है, जबकि साल 2019 में भारत द्वारा चीन को 4.4 बिलियन डॉलर का निर्यात किया गया है।

चीनी कंपनियों का प्रभाव

चीन की बड़ी कंपनियों ने बीते कुछ सालों में भारत के कई स्टार्टअप में बड़ा निवेश किया है। उदाहरण के तौर पर अलीबाबा ग्रुप ने पेटीएम में बड़ा निवेश किया है, जबकि एडटेक स्टार्टअप बायजूस में टेंसेंट होल्डिंग्स का बड़ा निवेश है, इसी तरह ड्रीम 11, फ्लिपकार्ट, हाइक और अन्य बड़े भारतीय स्टार्टअप में चीनी कंपनियों ने बड़ा निवेश कर रखा है।


चीनी कंपनियों ने सबसे अधिक दबदबा भारत के फोन बाज़ार में बनाया है। आज चीनी कंपनियाँ देश के 72 प्रतिशत फोन बाज़ार पर कब्जा करके बैठी हुई हैं, इनमें शाओमी, वीवो और ओप्पो प्रमुख हैं, वहीं बाज़ार में हिस्सेदारी के मामले में अमेरिकी दिग्गज स्मार्टफोन कंपनी एप्पल और दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग पिछड़ती जा रही हैं।


देश के फार्मास्यूटिकल क्षेत्र की भी चीन पर निर्भरता अधिक है। इस सेक्टर से जुड़े ड्रग्स के कुल आयात का 68 प्रतिशत हिस्सा चीन से आता है। भारत और चीन के बीच टूरिज़्म के आंकड़ों में भी बड़ी खाई है। भारत से चीन भ्रमण पर जाने वाले टूरिस्ट की संख्या चीन से भारत आने वाले टूरिस्ट की संख्या से कहीं अधिक है।