जलवायु संरक्षण सूची में भारत की रैकिंग सुधरी, 8वें नंबर पर बनाई जगह
जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI), 2023 में 63 देशों/ संघों की सूची में दो पायदान ऊपर चढ़कर आठवें स्थान पर आ गया है,इसके कम उत्सर्जन और नवीकरणीय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग के कारण. जर्मनवाच, न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाईमेट एक्शन नेटवर्क के द्वारा सोमवार को जारी की गई रिपोर्ट में भारत को यह स्थान दिया गया है. ये तीन गैर-सरकारी संगठन हैं जो यूरोपीय संघ और 59 देशों के जलवायु संबंधी कार्य प्रदर्शन पर नजर रखते हैं, जो दुनिया में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के 92 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं.
इस रिपोर्ट की रैंकिंग इस बात पर आधारित है कि देश 2030 तक अपने उत्सर्जन को आधा करने के लिए कितना अच्छा कर रहे हैं. पेरिस समझौते के तहत ये सभी देश तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने और इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. खतरनाक जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए एक आवश्यक पहलू पर काम करने से रैंकिंग तय की जाती है.
इस रिपोर्ट में पहले तीन स्थान खाली रखे गये हैं क्योंकि किसी भी देश ने सूचकांक की सभी श्रेणियों में इतना प्रदर्शन नहीं किया है कि उन्हें संपूर्ण अच्छी रेटिंग दी जाए. उसके बाद डेनमार्क को चौथे स्थान पर रखा गया है, फिर स्वीडन और उसके बाद चिली को स्थान दिया गया है.
भारत को ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन एवं ऊर्जा उपयोग श्रेणियों में अच्छी रेटिंग मिली है जबकि उसे जलवायु नीति तथा नवीकरणीय ऊर्जा खंडों में मध्यम रेटिंग मिली है.
दुनिया में सबसे बड़ा प्रदूषक देश चीन 13 पायदान नीचे गिरकर 51 वें नंबर पर आ गया है तथा उसे कोयला आधारित नये विद्युत संयंत्रों की योजना के चलते खराब रेटिंग मिली है. अमेरिका तीन पायदान चढ़कर 52 वें नंबर पर है. ईरान (63वां), सऊदी अरब (62वां) और कजाकिस्तान (61वां) का प्रदर्शन सबसे खराब रहा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने 2030 उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए "ट्रैक पर" है, जो 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे के परिदृश्य के अनुकूल है. "हालांकि, अक्षय ऊर्जा मार्ग 2030 लक्ष्य के लिए ट्रैक पर नहीं है," रिपोर्ट में यह भी कही गई है. भारत का लक्ष्य 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता हासिल करना है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन नौ देशों में शामिल है, जो वैश्विक कोयला उत्पादन के 90 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है और इसकी 2030 तक अपने तेल, गैस और तेल उत्पादन को पांच प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की भी योजना है. सीसीपीआई (CCPI) के विशेषज्ञों ने कहा, "यह 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के साथ असंगत है."
पिछले सीसीपीआई के बाद से, भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को अपडेट किया है और 2070 के लिए नेट-शून्य लक्ष्य की घोषणा की है. नेट शून्य का अर्थ है वातावरण में डाली गई ग्रीनहाउस गैसों और बाहर निकाली गई ग्रीनहाउस गैसों के बीच संतुलन हासिल करना. यह राष्ट्रीय योजना पेरिस समझौते के अनुसार वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की ओर उठा हुआ कदम है.