इन प्रवासी मजदूरों ने अपने खर्च पर गाँव में बनवा दिया इंग्लिश मीडियम स्कूल, गरीब बच्चों को मिल रही है मुफ्त शिक्षा
झारखंड के चतरा जिले के काडे काडे गाँव के रहने वाले कुछ प्रवासी मजदूर गाँव में स्थित एक इंग्लिश मीडियम स्कूल को फंड करते हैं, ताकि गाँव में रहने वाले जरूरतमन्द बच्चों को बिना किसी शुल्क में बेहतर शिक्षा के समान अवसर हासिल हो सकें।
बेहतर शिक्षा देश के हर नागरिक का मूल अधिकार है और शिक्षा के जरिये ही देश के भविष्य को उज्ज्वल बनाया जा सकता है। इस बीच झारखंड के एक छोटे से गाँव में रहने वाले कुछ प्रवासी मजदूरों ने बेहतर शिक्षा को लेकर अपने सराहनीय काम के जरिये पूरे देश को अपना फैन बना लिया है।
झारखंड के चतरा जिले के काडे काडे गाँव के रहने वाले कुछ प्रवासी मजदूर गाँव में स्थित एक इंग्लिश मीडियम स्कूल को फंड करते हैं, ताकि गाँव में रहने वाले जरूरतमन्द बच्चों को बिना किसी शुल्क में बेहतर शिक्षा के समान अवसर हासिल हो सकें।
बेहद खास है यह स्कूल
इस स्कूल में पढ़ने वाले गरीब और अनाथ बच्चों को मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है, इसी के साथ उन बच्चों के लिए किताबें और परिवहन सेवा भी बिना किसी शुल्क के उपलब्ध है। शिक्षकों के वेतन के साथ ही ये सभी खर्च उन प्रवासी मजदूरों द्वारा ही वहन किए जाते हैं।
साल 2017 में स्थापित हुए इस कुल में तब महज 24 छात्र थे, लेकिन अब स्कूल में छात्रों की कुल संख्या 217 हो चुकी है। इस स्कूल का निर्माण जिस जमीन पर कराया गया था उस जमीन को भी ग्रामीणों ने ही दान किया था। सीबीएसई से संबद्ध इस स्कूल का संचालन फिलहाल एक स्कूल प्रबंध समिति द्वारा किया जा रहा है।
पलायन रोकना है उद्देश्य
मीडिया से बात करते हुए स्कूल की स्थापना करने वाले प्रमुख व्यक्ति रहे सोहन साहू ने बताया है कि स्कूल बनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य यही था कि रोजगार के उद्देश्य से गाँव से बड़े शहरों की ओर हो रहे पलायन को रोका जा सके, इसी के साथ शिक्षा की कमी के चलते किसी मजदूर के बच्चे को उसके माता-पिता की तरह आजीविका के लिए मजदूरी पर निर्भर ना रहना पड़े, बल्कि बेहतर शिक्षा के साथ वे बेहतर प्रोफेशन का चुनाव करने में सक्षम हो सकें।
साहू खुद भी साल 1993 में मुंबई चले गए थे और वहाँ वे बतौर ऑटोरिक्शा चालक आजीविका कमाते थे। इस बीच उन्होंने गाँव में ही अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने का निश्चय किया और उनके इस विचार को अन्य प्रवासी मजदूरों का भी समर्थन मिला। साहू बतौर शिक्षक स्कूल में पढ़ाने के लिए साल 2015 में मुंबई से अपने गाँव वापस आ गए थे।
बेहतर शिक्षा और अन्य सुविधाएं
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता आज स्कूल द्वारा उपलब्ध कराई जा रही शिक्षा की गुणवत्ता से खुश हैं। स्कूल में उन बच्चों को किताबों के साथ ही बस की भी सुविधा उपलब्ध कराई जाती है, जो अन्य गांवों से आने वाले बच्चों के लिए भी काफी लाभप्रद है। मालूम हो कि शुरुआत में बच्चों के माता-पिता से मिलने वाला शिक्षण शुल्क मामूली था और इससे स्कूल का प्रबंध बामुश्किल ही हो पा रहा था।
इस स्कूल के संचालन के लिए प्रवासी मजदूरों और अन्य सम्पन्न लोगों द्वारा अब तक करीब 15 लाख से अधिक राशि दान की जा चुकी है, जबकि कुछ अन्य शिक्षित प्रवासी मजदूर अपने गाँव वापस आकर इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम भी कर रहे हैं।
Edited by Ranjana Tripathi