एक अनहोनी ने झकझोरा तो बना दिया WeStock, जो डेयरी बिजनेस में बढ़ा रहा किसानों की कमाई
गाय-भैंस के स्वास्थ्य की सही जानकारी ना होने की वजह से डेयरी बिजनेस को बहुत नुकसान होता है. अब वीस्टॉक की मदद से डेयरी बिजनेस का ये नुकसान कम हो सकता है.
आज के वक्त में दूध हर घर में इस्तेमाल होता है. ऐसे में डेयरी बिजनेस (Dairy Business) भी तेजी से बढ़ रहा है. हर गांव में दूध किसानों की कमाई का अहम जरिया बन गया है. हालांकि, इस बिजनेस में बहुत सारी चुनौतियां भी हैं. सबसे बड़ी दिक्कत आती है पशुओं की देखभाल में. भारत जैसे गांव में अच्छी तकनीक के अभाव में बहुत सारे पशुओं के स्वास्थ्य को सही से ट्रैक करने में दिक्कत होती है. कई बार ये पता ही नहीं चल पाता है कि उन्हें कोई बीमारी हो गई है और जानकारी के अभाव में सही समय पर इलाज नहीं मिल पाता. नतीजा ये होता है कि कई बार पशुओं की मौत तक हो जाती है. इसी दिक्कत को समझा है केरल के श्रीशंकर एस अय्यर और रोमियो पी जेरार्ड ने.
श्रीशंकर और रोमियो ने कोच्चि में
नाम का एक स्टार्टअप (Startup) शुरू किया है. इससे पशुओं से जुड़ी बहुत सारी दिक्कतों का समाधान किया जाता है. इस स्टार्टअप के शुरू होने के पीछे श्रीशंकर अय्यर के बचपन की एक कहानी है. उनके दादा-दादी गाय-भैंस पालते थे, जहां एक छोटा बछड़ा किसी बीमारी की वजह से मर गया. डॉक्टर ने बताया कि अगर समय रहते बीमारी का पता चल जाता तो उसकी जान बचाई जा सकती थी. उस दिन श्रीशंकर को लगा कि कुछ ऐसा करना है, जिससे उनके परिवार की तरह ही ऐसी चुनौतियां झेलने वालों की मदद हो सके.और ऐसे हुई ब्रेनवायर्ड की शुरुआत
जब श्रीशंकर कॉलेज में इंजीनियरिंग कर रहे थे, तो वहां उनकी मुलाकात हुई रोमियो से. एक दिन श्रीशंकर ने रोमियो को अपने आइडिया के बारे में बताया. दोनों ने इस आइडिया पर काम करना शुरू कर दिया. इस पर रिसर्च की तो पता चला कि यह समस्या सिर्फ एक-दो जगह की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है और वहां से शुरुआत हुई ब्रेनवायर्ड की. इस स्टार्टअप के जरिए वह डेयरी बिजनेस से जुड़े किसानों की मदद करते हैं. ब्रेनवायर्ड स्टार्टअप के तहत उन्होंने एक टैग वीस्टॉक (WeStock) बनाया है, जो गाय के कान पर लगाया जाता है. करीब दो साल की रिसर्च के बाद श्रीशंकर ने यह टैग बनाया. इस टैग के जरिए गाय से जुड़ी हर जानकारी किसान को उसके ऐप पर मिल जाती है.
कैसे काम करता है वीस्टॉक?
टैग के चलते आप गाय-भैंस के शरीर का तापमान, उसके खाने का पैटर्न, उसे हो रही बीमारियां, सभी पता चल जाती हैं. गाय कब खाती है, कितना खाती है ये तो पता चलता ही है, साथ ही उसके बर्ताव में अगर कोई बदलाव आता है तो वह भी पता चल जाता है. यह सब गाय के कान से मॉनिटर होता है. इस टैग की सबसे अच्छी बात ये है कि इससे किसान को गाय के हीटिंग साइकिल का पता चल जाता है. बता दें कि अगर गाय के हीटिंग साइकिल का पता सही समय पर ना चले तो गाय की प्रेग्नेंसी के लिए 1 महीने का इंतजार करना पड़ता है. यानी किसान को इस वजह से करीब 1 महीने के दूध का नुकसान होगा. इस तरह यह टैग किसानों का पैसा तो बचाता ही है, साथ ही डेयरी बिजनेस की प्रोडक्टिविटी को भी बढ़ाता है.
एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार बीमारियों को ट्रैक ना कर पाने की वजह से सरकार को हर साल करीब 18 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है. एक गाय की कीमत 50 हजार से एक लाख रुपये तक होती है, ऐसे में उसके मरने से भारी नुकसान होता है. एक तो दूध नहीं मिल पाने से नुकसान होता है, ऊपर से गाय पर खर्च किए पैसे भी बर्बाद हो जाते हैं. यानी यह टैग किसानों के लिए बड़े काम की चीज है.
क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?
ब्रेनवायर्ड ऐप के जरिए डेयरी बिजनेस करने वाले किसान डॉक्टरों से कंसल्टेशन भी ले सकते हैं. गाय-भैंस के कान पर लगाए जाने वाले वीस्टॉक टैग की कीमत 2000 रुपये+जीएसटी है. इसके अलावा किसानों को 100 रुपये प्रति गाय प्रति माह के हिसाब से सब्सक्रिप्शन भी लेना पड़ता है. यानी साल भर में 1200 रुपये सब्सक्रिप्शन का खर्च है. इतना होते ही ऐप की मदद से किसान अपनी गाय या भैंस के बारे में सब कुछ जान सकेगा. कंपनी के इस बिजनेस मॉडल में किसानों की तरफ से एक बार डिवाइस खरीद लिए जाने के बाद उसका लाइफटाइम मेंटेनेंस भी किया जाता है. बैटरी बदलने से लेकर गाय की वजह से डिवाइस के डैमेज होने तक का सारा खर्च कंपनी ही उठाती है.
अब तक कंपनी करीब 600 डिवाइस बेच चुकी है और पिछले 3 महीनों में 10-15 हजार के ऑर्डर भी मिले हैं. ब्रेनवायर्ड को अभी तक जितने भी ऑर्डर मिले हैं, वह किसानों ने खुद फोन कर के दिए हैं. आप कंपनी के वेबसाइट से ऑर्डर कर सकते हैं या वेबसाइट पर दिए वाट्सऐप नंबर पर मैसेज कर सकते हैं. कंपनी के तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए भी आप अपना ऑर्डर दे सकते हैं.
कई राउंड की फंडिंग ले चुकी है कंपनी
ब्रेनवायर्ड ने कई राउंड की फंडिंग कर ली है. पहला राउंड उन्होंने 2.5 करोड़ रुपये की वैल्युएशन पर 2020 में किया था, जिसके तहत 27 लाख रुपये की फंडिंग मिली थी. दूसरी फंडिंग करीब 6 महीने पहले 50 लाख रुपये की मिली थी. वहीं तीसरे राउंड की फंडिंग करीब 2 महीने पहले शार्क टैंक से की है. उन्होंने 10 फीसदी इक्विटी बेचकर 60 लाख रुपये जुटाए हैं. ये पैसे लेंसकार्ट के को-फाउंडर पीयूष बंसल, भारत पे के को-फाउंडर अश्नीर ग्रोवर, बोट के फाउंडर अमन गुप्ता और फार्मा कंपनी एमक्योर की फाउंडर नमिता थापर ने ब्रेनवायर्ड में लगाए हैं. इतना ही नहीं, उनकी कंपनी को भारत सरकार की तरफ से 25 लाख रुपये का ग्रांट भी मिला हुआ है. इनके साथ महाराष्ट्र सरकार, टेक महिंद्रा और गोदरेज भी जुड़े हुए हैं.
क्या हैं भविष्य की योजनाएं?
ब्रेनवायर्ड की प्लानिंग सिर्फ एक टैग तक सीमित नहीं है. श्रीशंकर और रोमियो आने वाले दिनों में पहले तो इस टैग को दुनिया भर में फैलाना चाहते हैं. ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और मिडिल ईस्ट जैसे देशों से उन्हें ऑफर भी मिल रहे हैं. भविष्य में कंपनी डेयरी बिजनेस से आगे बढ़कर भेड़, बकरी, ऊंट, घोड़ा और घरों में पाले जाने वाले कुत्ते-बिल्लियों के लिए भी कोई सॉल्यूशन लाने की प्लानिंग कर रही है. यानी देखा जाए तो ब्रेनवायर्ड की प्लानिंग पेटकेयर इंडस्ट्री में एक धमाल करने की है. खेती के लिए तो बहुत सारे मार्केट प्लेट हैं, लेकिन ब्रेनवायर्ड डेयरी उद्योग से जुड़े किसानों के लिए एक पूरा मार्केट प्लेस बनाने की प्लानिंग कर रही है. ऑटोमेटिक फीड मॉनिटरिंग, ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन और ऑटोमेटिक वेट चेक करने की मशीनों पर भी कंपनी काम कर रही है.
बता दें कि अभी ब्रेनवायर्ड का ऐप हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, मलयाली और तमिल भाषा में है, जिसे बाकी भाषाओं में लॉन्च करने की तैयारी है. कंपनी ने पहला ऑर्डर महाराष्ट्र सरकार को डिलीवर किया है, जहां के डॉक्टरों की तरफ से कई तरह के सुझाव मिले हैं, जिन पर कंपनी काम कर रही है. भारत जैसे देश में अधिकतर छोटे किसान हैं, इसलिए टैग की कीमत 2000 रुपये उन्हें अधिक लगती है. ऐसे में इस कीमत को घटाने के तरीकों पर भी रिसर्च जारी है. आने वाले दिनों में कंपनी इस टैग को सब्सक्रिप्शन और बिना सब्सक्रिप्शन दोनों तरह से करने की प्लानिंग कर रही है. हालांकि, अभी टैग के साथ-साथ आपको सब्सक्रिप्शन लेना जरूरी होता है. लाइसेंस मिलते ही इस प्रोडक्ट के एक्सपोर्ट की भी पूरी तैयारी है.
क्या हैं चुनौतियां?
ब्रेनवायर्ड को शुरू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं, ऐसे में चुनौतियां सामने आना लाजमी है. सबसे बड़ी चुनौती तो ये है कि मौजूदा टैग को बहुत सारे किसान भारी बता रहे हैं. हालांकि, इससे निपटते हुए कंपनी ने हल्के और बेहतर टैग बनाने का काम शुरू भी कर दिया है. कुछ किसान इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि गाय के कान पर स्क्रैच लग जा रहा है, कंपनी उसे भी बारीकी से देख रही है. तकनीकी लेवल पर सबसे बड़ी चुनौती ऐप को लेकर है, जिसमें बड़े फॉन्ट की मांग काफी है.