जान लीजिये क्या है 'प्राइड मंथ'? क्यों LGBTQ समुदाय को समर्पित है जून का महीना?
समलैंगिक समुदाय अभी भी समाज में अपनी स्वीकार्यता के लिए संघर्षरत है, हालांकि वैश्विक स्तर पर बात करें तो खास कर पश्चिमी देशों में यह मुहिम एक आंदोलन की शक्ल ले चुकी है, जबकि भारत में भी LGBTQ समुदाय को लेकर बीते कुछ सालों में कई ऐतिहासिक फैसले देखने को मिले हैं।
"समलैंगिक समुदाय अभी भी समाज में अपनी स्वीकार्यता के लिए संघर्षरत है, हालांकि वैश्विक स्तर पर बात करें तो खास कर पश्चिमी देशों में यह मुहिम एक आंदोलन की शक्ल ले चुकी है, जबकि भारत में भी LGBTQ समुदाय को लेकर बीते कुछ सालों में कई ऐतिहासिक फैसले देखने को मिले हैं।"
LGBTQ समुदाय बीते कई दशकों से अपने अधिकारों के लिए एक लड़ाई लड़ रहा है, हालांकि अभी भी इस लड़ाई का अंत कहीं नज़र नहीं आ रहा है। यहाँ शुरुआत में ही आपको बताते चलें कि जून महीने को ‘प्राइड मंथ’ के रूप में मनाया जाता है और यह LGBTQ समुदाय को समर्पित है।
गौरतलब है कि समलैंगिक समुदाय अभी भी समाज में अपनी स्वीकार्यता के लिए संघर्षरत है, हालांकि वैश्विक स्तर पर बात करें तो खास कर पश्चिमी देशों में यह मुहिम एक आंदोलन की शक्ल ले चुकी है, जबकि भारत में भी LGBTQ समुदाय को लेकर बीते कुछ सालों में कई ऐतिहासिक फैसले देखने को मिले हैं।
कहाँ से शुरु हुआ ‘प्राइड मंथ’?
इसकी शुरुआत करीब 60 साल पहले अमेरिका में हुई। गौरतलब है कि उस समय अमेरिका में LGBTQ समुदाय के लोगों ने सरकार के उन नियमों के प्रति अपना विरोध जाताना शुरू कर दिया था जो समलैंगिकता को एक अपराध मानते थे।
साल 1950 के करीब LGBTQ समुदाय ने समलैंगिकता को समाज द्वारा सामान्य दृष्टि से देखने की मांग शुरू हो कर दी थी और साल 1960 तक अमेरिका में सड़कों पर समलैंगिकता के समर्थन में प्रदर्शन भी नज़र आने शुरू हो गए थे। मालूम हो कि इस दौरान अपने समुदाय को सुरक्षा देने के उद्देश्य से गे बार जैसी जगहों का संचालन शुरू हो गया था जहां LGBTQ समुदाय के लोग बसेरा पा सकते थे।
साल 1969 में जून के महीने में ऐसी ही एक जगह पर पुलिस ने छापा मारा और बड़ी संख्या में LGBTQ समुदाय के लोगों कों गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इस घटना ने कुछ ही समय में एक आंदोलन को जन्म दे दिया और LGBTQ समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए, बस तब ही पहली बार ‘प्राइड परेड’ अस्तित्व में आई थी। अब हर साल उसी दिन की याद में 28 जून को ग्लोबल प्राइड डे का मनाया जाता है।
इसका उद्देश्य क्या है?
इतने सालों के बाद आज भी LGBTQ समुदाय के प्रति समाज में जागरूकता की भारी कमी देखने को मिलती है। लोगों द्वारा इस समुदाय को लेकर बनाई गई तमाम तरह भ्रांतियाँ अक्सर देखने-सुनने को मिल जाती हैं, इसी के साथ LGBTQ समुदाय के लोगों के लिए की गईं फूहड़ टिप्पणियाँ भी हमें अक्सर सुनाई दे जाती है।
प्राइड मंथ का असल उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है, जिससे लोग LGBTQ समुदाय के अधिकारों को समझ सकें। इससे समाज में LGBTQ समुदाय के प्रति तेजी से स्वीकार्यता बढ़ने में मदद मिलेगी।
इसका असर भी हुआ है और आज खसतौर पर शहरी क्षेत्रों में लोगों के भीतर LGBTQ समुदाय के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी है। गौरतलब है कि आज दुनिया भर के करीब 40 से अधिक देशों में ‘प्राइड परेड’ का आयोजन होता है।
भारत में इस समुदाय के लिए क्या हुआ?
LGBTQ समुदाय अभी भी समान लिंग में शादी करने, अपने परिवार को आगे बढ़ाने, अपने प्रति घृणा को खत्म करने और अन्य समाज के साथ सामान्य रूप से सहअस्तित्व में रहने के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
भारत की बात करें तो यहाँ समलैंगिकता को अपराध बताने वाले कानून को साल 2018 में भारत की सर्वोच्च अदालत ने निरस्त कर दिया था।
समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को अपराध करार देना असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को हर ओर सराहा गया था।
Edited by Ranjana Tripathi