मकर संक्रान्ति विशेष: मकर संक्रान्ति से होती है शीत पर धूप की जीत, जानें राशिनुसार प्रभाव और उपाय
जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं 14 जनवरी 2020 की अर्द्धरात्रि 02:07 पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा जिससे देवताओं का दिन उत्तरायण प्रारम्भ होगा। मकर संक्रान्ति का विशेष पुण्यकाल 15 तारीख को सूर्यास्त तक रहेगा।
सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्ममुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारम्भ हो जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। महाभारत के पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही माघ शुक्ल अष्टमी के दिन स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। ग्रह नक्षत्रम् ज्योतिष शोध संस्थान, प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही देवताओं के दिन और पितरों की रात्रि का शुभारंभ हो जाएगा। इसके साथ सभी तरह के मांगलिक कार्य, यज्ञोपवीत, शादी-विवाह, गृहप्रवेश आदि आरंभ हो जाएंगे। सूर्य संस्कृति में मकर संक्रान्ति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना, उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है।
दान के साथ सूर्य पूजा के लिए विशेष
उल्लेखनीय है कि जहाँ मकर संक्रान्ति पूजा-पाठ, दान, व्रत आदि हेतु सर्वोत्तम पुण्यकाल है वहीं सूर्य नारायण की पूजा संक्रान्ति पर्व पर सूर्य संक्रमण काल में विशेष दानादि करना चाहिए। सूर्य नारायण की पूजा एवं व्रत, सब प्रकार के पापों का क्षय, सब प्रकार की आधियों, व्याधियों का निवारण और सब प्रकार की हीनता अथवा संकोच का निपात होता है तथा प्रत्येक प्रकार की सुख, सम्पत्ति, संतान और सहानुभूति की वृद्धि होती है। मकर संक्रान्ति के दान में काष्ठ और अग्नि के दान का विशेष महत्व है। ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार संक्रान्ति काल में जो भी वस्तु दान की जाती है या कृत्य-कृत्यादि जो भी दिया जाता है सूर्य नारायण उसे जन्म जन्मान्तर प्रदान करते रहते हैं। मकर संक्रांति पर तिल के दान का विशेष महत्व है। इस दिन तिल व कपड़े का दान फलदायी है। सुबह पवित्र नदियों व कुंड में स्नान के बाद तिल के दान से पितृ तृप्त होकर शुभ आशिष देंगे जिससे वर्ष भर यश बना रहेगा। इसके अलावा इस दिन गायों को घास डालना व सुहागिनों को शृंगार की 14 वस्तुएं दान करना भी फलदायी माना गया है।
मकर संक्रांति के दिन अगर व्यक्ति खिचड़ी, तिल आदि दान करने के साथ अपनी राशि के अनुसार वस्तुओं का दान करे तो उसे जीवन में विशेष शुभ प्रभाव प्राप्त होंगे।
मेष तथा वृश्चिक राशि:- मेष तथा वृश्चिक राशि वाले संक्रांति दान में लाल मसूर की दाल, गुण, लाल चन्दन, लाल फूल, सिन्दूर, तांबा, मूंगा, लाल वस्त्र आदि दान हेतु सम्मिलित करें तो उनको विशेष लाभ प्राप्त होगा।
वृष तथा तुला राशि:- वृष तथा तुला राशि वाले संक्रांति दान में सफेद वस्त्र, कपूर, खुशबूदार अगरबत्ती, धूप, इत्र आदि, दही, चावल, चीनी, दूध, चांदी, आदि दान हेतु सम्मिलित करें तो उनको विशेष लाभ प्राप्त होगा।
मिथुन तथा कन्या राशि:- मिथुन तथा कन्या राशि वाले संक्रांति दान में हरी सब्जी, हरा फल, हरा वस्त्र, काँसे का बर्तन, पन्ना या उसका उपरत्न ऑनेक्स, हरी दाल, आदि दान हेतु सम्मिलित करें तो विशेष शुभ फल प्राप्त होगा।
कर्क राशि:- कर्क राशि वाले संक्रांति दान में दूध, दही, चावल, सफेद वस्त्र, चीनी, चांदी, मोती, शंख, कपूर, बड़ा बताशा आदि का दान अवश्य करें।
सिंह राशि:- सिंह राशि वाले मकर संक्रांति के दिन गेंहू, गुड़, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चन्दन, माणिक्य, शहद, केसर, सोना, ताँबा, शुद्ध घी, कुमकुम आदि दक्षिणा सहित दान करें।
धनु तथा मीन राशि:- धनु तथा मीन राशि वाले संक्रांति के दान में पीला वस्त्र, हल्दी, पीला अनाज, केला, चने की दाल, पुखराज या उसका उपरत्न सुनहला अथवा पीला हकीक, देशी घी, सोना, केसर, धार्मिक पुस्तक, पीला फूल, शहद आदि दान हेतु सम्मिलित अवश्य करें।
मकर तथा कुम्भ राशि:- मकर तथा कुम्भ राशि वाले संक्रांति के दान में काले तिल, काला वस्त्र, लोहा, काली उड़द दाल, काले फूल, सुरमा (काजल), चमड़े की चप्पल, कोयला, काला मिर्च, नीलम अथवा उसका उपरत्न जमुनिया, काले चने, काली सरसों, तेल आदि दान करें।
मकर संक्रान्ति पर विशेष उपाय
वे लोग जो राजभय से पीड़ित हों, या राजकृपा के इच्छुक हों, या राजपद में तरक्की या उन्नति के अभिलाषी हों वे "घृणि सूर्यायः नमः" मंत्र की दस मालाएँ फेरकर सूर्य पूजा करें उसके पश्चात् किस चर्म रोग पीड़ित या कुष्ठ पीड़ित मनुष्य को, पशुओं को दान और भोजनादि दें, फिर नीम के वृक्ष को जल से सींच कर उसके पत्ते लेकर सदा अपने पास रखें, नीम पर धूप-दीप करना न भूलें, करिश्मा देखें।
प्रयाग का संगम है अक्षय क्षेत्र
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश पृथ्वी वासियों के लिए वरदान की तरह है। कहा जाता है कि सभी देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, नाग, किन्नर आदि इस अवधि के मध्य तीर्थराज प्रयाग में एकत्रित होकर संगम तट पर स्नान करते हैं। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि,
माघ मकर रबिगत जब होई। तीरथपति आवहिं सब कोई।।
देव दनुज किन्नर नर श्रेंणी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेंणी।।
अर्थात- मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर सभी तीर्थों के राजा प्रयाग के पावन संगमतट पर महीने भर वास करते हुए स्नान ध्यान दान पुण्य करते हैं। वैसे तो प्राणी इस माह में किसी भी तीर्थ, नदी और समुद्र में स्नान कर दान-पुण्य करके त्रिबिध तापों से मुक्ति पा सकता है, लेकिन प्रयाग संगम का फल मोक्ष देने में सक्षम है।
पूर्व जन्म के पापों से मिलती है मुक्ति
जो मनुष्य प्रातःकाल स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देता है उसे किसी भी प्रकार का ग्रहदोष नहीं लगता। क्योंकि इनकी सहस्रों किरणों में से प्रमुख सातों किरणें सुषुम्णा, हरिकेश, विश्वकर्मा, सूर्य, रश्मि, विष्णु और सर्वबंधु, (जिनका रंग बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल है) हमारे शरीर को नई उर्जा और आत्मबल प्रदान करते हुए हमारे पापों का शमन कर देती हैं। प्रातःकालीन लाल सूर्य का दर्शन करते हुए सूर्य नमस्कार करने से जीव को पूर्वजन्म में किए हुए पापों से मुक्ति मिलती है।
(Edited by ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय)