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मुद्रास्फीति का प्रबंधन सिर्फ रिजर्व बैंक पर नहीं छोड़ा जा सकता: केंद्रीय वित्त मंत्री

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक शोध संस्थान इंडिया काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकनॉमिक रिलेशंस (इक्रियर) की तरफ से आयोजित सम्मेलन में कहा कि महंगाई बढ़ने के ज्यादातर कारण मौद्रिक नीति के दायरे से बाहर हैं.

मुद्रास्फीति का प्रबंधन सिर्फ रिजर्व बैंक पर नहीं छोड़ा जा सकता: केंद्रीय वित्त मंत्री

Friday September 09, 2022 , 3 min Read

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने बृहस्पतिवार को कहा कि मुद्रास्फीति (inflation) का प्रबंधन केवल भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) की मौद्रिक नीति (monetary policy) पर नहीं छोड़ा जा सकता.

सीतारमण ने आर्थिक शोध संस्थान इंडिया काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकनॉमिक रिलेशंस (इक्रियर) की तरफ से आयोजित सम्मेलन में कहा कि महंगाई बढ़ने के ज्यादातर कारण मौद्रिक नीति के दायरे से बाहर हैं.

उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को नियंत्रण में करने के लिए राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति दोनों को मिलकर काम करना होगा.

वित्त मंत्री के अनुसार, मुद्रास्फीति प्रबंधन को केवल मौद्रिक नीति पर नहीं छोड़ा जा सकता है. यह कई देशों में प्रभावी साबित नहीं हुआ है.

सीतारमण ने कहा, "रिजर्व बैंक को थोड़ा साथ चलना होगा. शायद उतना नहीं जितना पश्चिमी देशों में केंद्रीय बैंकों को चलना होता है."

उन्होंने कहा, "मैं रिजर्व बैंक को कोई आगे की दिशा नहीं दे रही हूं लेकिन यह सच है कि भारत की अर्थव्यवस्था को संभालने का समाधान, एक ऐसा अभ्यास है जहां मौद्रिक नीति के साथ-साथ राजकोषीय नीति को भी काम करना होता है. इसके एक हिस्सा मुद्रास्फीति को भी संभाल रहा है."

उन्होंने कहा, "मुद्रास्फीति को नियंत्रण में करने के उपाय के तहत देश ने पिछले कुछ महीनों में रूस से कच्चे तेल के आयात को बढ़ाकर 12 से 13 प्रतिशत कर दिया है, जो पहले लगभग दो प्रतिशत था."

उल्लेखनीय है कि यूक्रेन के साथ युद्ध के चलते पश्चिमी देशों ने रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. ऐसे में भारत समेत कई देशों ने रियायती कीमतों पर कच्चा तेल और गैस खरीदने के लिए रूस के साथ द्विपक्षीय समझौता किया है.

सीतारमण ने कहा, "रूस से कच्चे तेल का आयात सुनिश्चित करने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति को श्रेय देती हूं. हमने सभी देशों के साथ अपने संबंध बनाए रखे और प्रतिबंधों के बीच रूस से कच्चे तेल प्राप्त करने का प्रबंधन किया. यह भी मुद्रास्फीति को नियंत्रण में करने के उपायों का हिस्सा है."

उन्होंने कहा, "अब भी कई देश (जापान और इटली सहित) रूस से कच्चा तेल और गैस प्राप्त करने के लिए अपना रास्ता खोज रहे हैं."

गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गयी हैं जिससे वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ी है. इससे कच्चे तेल के आयात पर निर्भर देश सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.

भारत भी अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तेल उत्पादक देशों पर अधिक निर्भर है. देश कुल ऊर्जा जरूरतों का 80 से 85 प्रतिशत विदेशों से आयात करता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और कच्चे तेल आयातक है.


Edited by रविकांत पारीक