खसरे की चपेट में भारत, विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी, 4 करोड़ बच्चे हो सकते हैं प्रभावित
पिछले दो महीने में महाराष्ट्र में खसरे के 807 मामले आए, जिनमें से 18 लोगों की मौत. मरने वालों में दो वयस्क भी शामिल.
मेडिकल साइंस की इतनी प्रगति के बावजूद आज भी बीमारियां और वायरस मनुष्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा बने हुए हैं. भारत में ताजा संकट मंडरा रहा है मीजल्स यानि खसरे का. महाराष्ट्र में खसरे की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या 800 के पार हो चुकी हैं. अब तक खसरे से 18 लोगों की जान जा चुकी है, जिसमें दो वयस्क भी शामिल हैं. अकेले मुंबई में 10 लोगों की मृत्यु खसरे के कारण हो चुकी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी खसरे को लेकर चेतावनी जारी की है. WHO के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में पूरी दुनिया में 90 लाख लोग खसर का शिकार हुए, जिसमें से 1.28 लोगों की इस वायरस के कारण मृत्यु हो गई.
भारत की 20 फीसदी आबादी टीके से वंचित
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में फिर से खसरा फैलने की वजह बच्चों को समय पर वैक्सीन न लगना है. WHO का डेटा कहता है कि वर्ष 2021 में विश्व में तकरीबन 4 करोड़ बच्चे ऐसे थे, जिन्हें खसरे का टीका नहीं लगा था. इनमें से 2.5 करोड़ बच्चों को तो टीके की पहली डोज भी नहीं दी गई थी.
भारत में भी खसरे की टीके की दर बहुत संतोषजनक नहीं है. आज भी देश की 20 फीसदी आबादी इस टीके से वंचित है और उन्हीं लोगों के इस वायरस की चपेट में आने की संभावना सबसे ज्यादा है. भारत में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में वैक्सीनेशन की दर सबसे कम है.
खसरे के खिलाफ दो दशक लंबा कैंपेन
भारत समेत पूरी दुनिया में खसरा एक समय बहुत बड़ी महामारी थी. खसरे को सबसे ज्यादा संक्रमण फैलाने वाली बीमारी माना जाता था. किसी खतरा संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने का अर्थ था खुद भी उस बीमारी से ग्रसित हो जाना.
भारत सरकार की तरफ से तकरीबन दो दशक तक चलाए गए कैंपेन के बाद खसरा तकरीबन गायब हो गया था. इस कैंपेन के तहत भारत में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में पैदा होने वाले सभी बच्चों को खसरे की तीन डोज दी जाती थी. पहली डोज 9 से 12 महीने की उम्र में, दूसरी डोज 15 से 18 महीने के बीच और तीसरी व आखिरी डोज 4 से 6 साल की उम्र में दी जाती थी.
एंटी वैक्सीन कैंपेन के खतरनाक परिणाम
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि पिछले कुछ सालों में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक कारणों और एंटी वैक्सीन कैंपेन के चलते ऐसे बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, जिन्हें खसरे की वैक्सीन नहीं लगाई गई है. यही स्थिति टिटनेस और कुछ अन्य संक्रामक और जानलेवा बीमारियों की वैक्सीन के साथ भी हुआ है.
यही कारण है कि यह बीमारी एक बार फिर सिर उठा रही है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की एडवायजरी
भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने खसरे के बढ़ते मामलों को एक खतरनाक संकेत बताते हुए राज्यों को एडवाइजरी जारी की है. इसमें मीजल्स के हरेक केस की सर्तकता से जांच और सख्त निगरानी के निर्देश दिए गए हैं.
खसरे के वायरस का हमला सीधा फेफड़ों पर
मीजल्स एक ऐसी खतरनाक बीमारी है, जिसका वायरस सीधे शरीर के रेस्पेरेटरी सिस्टम पर हमला करता है. इसका वायरस नाक और मुंह के जरि फेफड़ों तक पहुंचता है. यह बच्चों, वयस्कों और बूढ़ों किसी को भी हो सकता है, लेकिन बच्चे इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता वयस्कों के मुकाबले कमजोर होती है.
मीजल्स के वायरस का असर दिमाग पर भी होता है. इस वायरस को मीजल्स इंसेफेलाइटिस कहा जाता है. यह जापानी इंसेफेलाइटिस की तरह होता है, जो मच्छरों के काटने से फैलता है. जिसे आम बोलचाल की भाषा में दिमागी बुखार भी कहते हैं.
घरेलू इलाज से नहीं ठीक होती ये बीमारी
यह ऐसी बीमारी नहीं है, जो घरेलू इलाज से ठीक हो जाए. खसरे से संक्रमित व्यक्ति को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना और डॉक्टरों की देखरेख में उसका इलाज करना जरूरी है. साथ ही इस बात की सावधानी रखना भी कि खसरे से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क से बचा जाए.
इस बीमारी से निपटने के दो ही तरीके हैं. एक तो वक्सीनेशन की दस सौ फीसदी हो. सभी बच्चों को तीन वर्ष की आयु तक खसरे की तीनों खुराकें समय पर दी जाएं और दूसरे बच्चों और वयस्कों सभी के बुनियादी स्वास्थ्य और इम्यूनिटी के प्रति समाज, सरकार और पूरी हेल्थ मशीनरी सजग हो. यदि सावधानी नहीं बरती गई तो खसरा आने वाले समय में देश और दुनिया के स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है.
Edited by Manisha Pandey