मिलिए ई-कचरे से सुंदर मूर्तियां बनाने वाले मुंबई के आर्टिस्ट हरिबाबू नातेसन से
क्या आप जानते हैं कि भारत सालाना कितना ई-कचरा (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) पैदा करता है? एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में देश में लगभग दो मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न होता है, और इसमें 82 प्रतिशत कचरा निजी डिवाइसेस का होता है। जहरीले रसायनों और धातुओं से युक्त, इस ई-कचरे का अधिकांश भाग खुले क्षेत्रों में डाला जाता है, जिससे खतरनाक पदार्थ धरती में रिसने लगते हैं। जहां एक तरफ नीति निर्माता, सरकारी व निजी एजेंसियां हमारे जमीन को साफ करने की कोशिश कर रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ मुंबई स्थित हरिबाबू नातेसन अपने छोटे से तरीके से इसमें बड़ा योगदान दे रहे हैं। आर्टिस्ट हरिबाबू नातेसन को बेकार पड़े इलेक्ट्रॉनिक कचरे से आर्ट बनाने के लिए जाना जाता है।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक 2009 में एनीमेशन में अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, हरिबाबू कुछ युनिक आर्ट बनाना चाहते थे। हरिबाबू अभी ई-कचरा जैसे- मदरबोर्ड, फ्लॉपी डिस्क, सीडी ड्राइवर, सेल फोन और सीडी का उपयोग मूर्तियों को बनाने के लिए करते हैं। खराब पड़े ई-कचरे को लेकर एनडीटीवी से बात करते हुए हरिबाबू कहते हैं, "कभी सोचा है कि खराब मीडिया प्लेयर या आउट-ऑफ-डेट वीडियोटेप्स क्या होता है? ब्लेड और डेड सेल फोन देखे हैं? फ्लॉपी डिस्क और फ्यूज्ड लाइट बल्ब का क्या होता? हम इनको स्क्रैप यार्ड के एक कोने में जमा करते हैं, जलाते हैं और इस प्रक्रिया में हानिकारक विकिरण का उत्सर्जन होता है जो खतरनाक है।" हरिबाबू ने अपनी आर्ट को "ग्रीन डिजाइन वर्क्स" नाम दिया है। वे पहले अपशिष्ट पदार्थों को इकट्ठा करते हैं और फिर उसे अपने स्टूडियो के स्क्रैप रूम में जमा करते हैं। बाद में, वह साइज, शेप, कलर और टाइप के आधार पर सभी पार्ट्स को कैटिगराइज करते हैं।
उनकी ऑफिशियल वेबसाइट Fossilss के अनुसार, हरिबाबू ने चेन्नई के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स से फाइन आर्ट्स में स्नातक किया है। अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआईडी) से अपनी पोस्ट-ग्रेजुएशन के दौरान, उन्हें अपनी 'ई-कचरे' से तैयार आर्ट को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच मिला था, जिसने उन्हें बहुत प्रशंसा और वाहवाही मिली। पिछले साल, गणेश चतुर्थी पर, नातेसन ने 800 किलो फिटकरी की एक गणेश जी की मूर्ति बनाई थी, जिसे अक्सर नाई की दुकान में स्क्रबर के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। फिटकरी का उपयोग करने के पीछे की अवधारणा इसमें मौजूद शुद्ध गुण थे। जैसे- इससे वो पानी प्रदूषित नहीं होगा जिसमें मूर्ति को विसर्जित किया जाएगा, बल्कि ये उस पानी को शुद्ध करेगी। मूर्ति बनाने की पूरी प्रक्रिया को Fossilss के फेसबुक पेज पर साझा किया गया था।
हरिबाबू अपनी कला का उपयोग प्रैक्टिस करने और पर्यावरण जागरूकता सिखाने के लिए करते हैं। अपने फिलोस्फी के बारे में, हरिबाबू ने NDTV से कहा, “मेरी कला का दर्शन ई-कचरे के पुन: उपयोग में लाने के बारे में जागरूकता पैदा करना है। यह केवल कला नहीं है। मैं अपने स्टूडियो में कक्षाएं लेता हूं और युवा कलाकारों के लिए नियमित कार्यशालाओं का आयोजन करता हूं ताकि वे उन चीजों का उपयोग करके पर्यावरण के अनुकूल कला तैयार करने में मदद कर सकें जो कि फेंक दी गई हैं। हमारा आइडिया हमारे ग्रह को प्रदूषित करने वाले औद्योगिक कचरे को रीसायकल करने का है।”
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