मुंबई के इस एनजीओ ने 5000 से ज्यादा लड़कियों को बचाया मानव तस्करी के चंगुल से
त्रिवेणी आचार्य के नेतृत्व में 90 के शुरुआती दौर से काम कर रहे इस एनजीओ ने भारत के कई शहरों से 5000 से अधिक लड़कियों को यौन तस्करी के चंगुल से बचाया है।
भारतीय न्यायिक व्यवस्था द्वारा महिलाओं और बच्चों की तस्करी को अपराध माना गया है। हालांकि, ऐसे खतरों के खत्म होने का नाम नहीं है। ऐसे ही मुंबई में कई महिलाओं और लड़कियों को बचाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता त्रिवेणी आचार्य एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) रेस्क्यू फाउंडेशन की संस्थापक हैं।
रेस्क्यू फाउंडेशन 90 के दशक के शुरुआती दिनों से काम कर रहा है और मुंबई, पुणे, दिल्ली, आगरा, बिहार और राजस्थान सहित पूरे भारत में 5,000 से अधिक लड़कियों को यौन तस्करी के चंगुल से छुड़ा चुका है।
त्रिवेणी आचार्य कहती हैं,
“जब हमें कोई सूचना मिलती है, तो हम पहले उन्हें ट्रैक करने की कोशिश करते हैं उसके बाद पुलिस को सूचित करते हैं और फिर उन्हें छुड़ाते हैं। एक बार जब लड़कियां बड़ी हो जाती हैं, लगभग 25 साल की तब वे इससे बाहर चली जाती हैं। इसलिए हमेशा छोटी, कुंवारी लड़कियों की मांग रहती है। जब भी किसी नई लड़की को लाया जाता है तो हम उसके बारे में जानकारी जुटाना शुरू करते हैं। नई लड़की को नया माल (नया उत्पाद) कहा जाता है।”
त्रिवेणी के अनुसार, कोई भी यह पहचान सकता है कि लड़कियां नई हैं, क्योंकि वे भारी भरकम मेकअप के साथ तैयार होती हैं और डरी हुई लग रही होती हैं। एनजीओ के लिए काम करने वाले जासूस पहले इन युवा लड़कियों से बात करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि कानूनी तौर पर उनका बचाव करने से पहले उनकी सहमति लेना जरूरी है।
यदि वे इस बात से सहमत होती हैं कि उन्हें इस काम को करने के लिए मजबूर किया गया है, तो पुलिस के पास एक एफआईआर दर्ज करायी जाती है।
लड़ाई की शुरुआत
12 साल की सैन्य सेवा से 1993 में जब त्रिवेणी के पति बालकृष्ण आचार्य सेवानिवृत्त हुए तब त्रिवेणी उनके साथ मुंबई चली आईं। मुंबई में त्रिवेणी ने एक पत्रकार के रूप में नौकरी की, जहाँ उन्हें अपने किसी ज़रूरी काम से ग्रांट रोड क्षेत्र में फ़ॉकलैंड रोड का दौरा करना पड़ा, जो कि एशिया के सबसे बड़े रेड-लाइट इलाकों में से एक है।
एशियन एज से बात करते हुए त्रिवेणी कहती हैं,
"मैं वेश्यावृत्ति और मानव तस्करी के बारे में जानती तक नहीं थी। मैं सड़क पर कुछ लड़कियों को गहरे रंग की लिपस्टिक और उत्तेजक कपड़े पहने देखा जरुर करती थी, लेकिन मुझे लगता था कि वे इसे अपनी मर्जी से कर रही हैं। यह मेरे पति थे जिन्होंने मुझे इनके बारे में जागरूक किया।”
दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुनील दत्त को कवर करने के लिए त्रिवेणी एक असाइनमेंट पर थीं, जो रक्षाबंधन के मौके पर यौनकर्मियों से राखी बंधवा रहे थें, तभी त्रिवेणी एक 14 वर्षीय लड़की से रूबरू हुईं, जिसे उन्होंने गलतफहमीवश वहीं के किसी निवासी की बेटी समझा। हालाँकि वह बाद में एक यौनकर्मी निकली जिसे नौकरी का झांसा देकर नेपाल से मुंबई लाया गया था और बाद में किसी दलाल के हाथों बेच दिया गया।
त्रिवेणी कहती हैं,
"उस दिन हमें एहसास हुआ कि हमें उसी स्थिति में पड़ी अन्य लड़कियों की मदद करने के लिए कुछ करने की ज़रूरत है। इसलिए मेरे पति ने अपना व्यवसाय समेट लिया और अपना पूरा समय लड़कियों को बचाने में लगाने लगे और मैंने उन लड़कियों से संपर्क बनाए रखने और हमें आर्थिक रूप से सबल बनाए रखने के लिए काम करना जारी रखा।"
तब से, त्रिवेणी के नेतृत्व में एनजीओ, रेस्क्यू फाउंडेशन विपरीत परिस्थितियों से लड़ कर भी लड़कियों को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है।
बचाव के बाद
एक बार जब लड़कियों को वेश्यालय से छुड़ा लिया जाता है, फिर उन्हें एक आश्रय में ले जाया जाता है जहाँ एचआईवी और गर्भावस्था के परीक्षण सहित कई तरह की स्वास्थ्य जांचो से उनके स्वास्थ का परीक्षण किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि लड़कियां मानसिक रूप से इस आघात से बाहर आने में सक्षम हैं या नहीं, उन्हें परामर्श और उचित खान-पान भी दिया जाता है।
यदि बचाई गई लड़कियों में से कोई भी 16 वर्ष से कम उम्र की है, तो उन्हें बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाता है और उन्हें उनके परिवारों के साथ पुनः मिला दिया जाता है।
ये एनजीओ बचाई गई लड़कियों के बारे में सारी जानकारी अदालत में भी प्रस्तुत करता है, जो हर महीने होने वाली प्रगति की निगरानी करती है। यदि बच्चों की तस्करी के पीछे उनके खुद के परिवार वाले जिम्मेदार होते हैं, तब उन्हें आश्रय में रखा जाता है जब तक कि वह 18 वर्ष के ना हो जाएं, इसके बाद लगभग 6 महीने के बाद उन्हें वापस उनके अपने राज्यों में स्थित साझेदार एनजीओ से जुड़ने के लिए भेज दिया जाता है।