चींटी चींटी बैंग बैंग: सिर्फ साइज़ में हैं छोटी, पृथ्वी पर कुल संख्या जानकर होगी हैरानी
हम जब अनगिनत शब्द सुनते हैं तो हमारे ख्याल में क्या आता है? तारे? हमारे गैलेक्सी में लगभग 100 बिलियन तारे हैं. ये तो हुई हमारे ऊपर दिखने वाले तारों की बात. ज़मीन पर चल रही चींटियों के बारे में कभी आपने सोचा है- इनकी संख्या कितनी होगी? सूक्ष्म, बारीक,अपने में मग्न चीटियों की पृथ्वी पर संख्या पहली नज़र में हमें तारों की ही तरह असंख्य लग सकती है.
लेकिन हाल में हुए एक रीसर्च ने पृथ्वी पर चींटियों (ants) की जन्संख्या का पता लगाया है. रीसर्च से यह पता चला है कि पृथ्वी पर लगभग 20 हज़ार मिलियन मिलियंस चींटियां हैं. न्यूमेरिकल में चींटियों की संख्या 20,000,000,000,000,000 है… 20 पर 15 ज़ीरो लगाने पर जो संख्या आएगी- 2 हज़ार लाख करोड़ (20 हज़ार ख़रब चींटियां) पृथ्वी पर निवास करती हैं. हर एक जिंदा इंसान पर 25 लाख चींटियां हैं.
यह रीसर्च चींटियों पर पूरी दुनिया में किये गए 489 अध्ययनों पर आधारित है. 7 भाषाओं, कई जंगल, रेगिस्तान, शहरों, ग्रासलैंड में कंडक्ट किये गए इस अध्ययन से दुनिया में चींटियों की संख्या का पता लगाया गया है जो 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नैचुरल एकेडमी ऑफ साइंस' (Proceedings of the Natural Academy of Science) में सोमवार को प्रकाशित हुई है.
प्रसिद्ध बायोलोजिस्ट एडवर्ड ओ. विल्सन (Edward O. Wilson) ने कहा है कि छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े हमारी दुनिया चलाते हैं. इस रीसर्च में की गई खोजों से उनकी बात सत्य होती नज़र आती है. क्योंकि इनकी जनसंख्या का अनुमान लगाने से यह भी पता चला है कि ख़राब होते पर्यावरण की दशा में चींटियां कार्बन के लिहाज़ हमारे पर्यावरण के लिए कितनी ज़रूरी हैं. रीसर्च में पता चला है कि इस जनसंख्या के साथ इतनी चीटियां लगभग 1.2 करोड़ टन ड्राई कार्बन (dry carbon) बनाती हैं.
किसी और्गैनिज्म का मास (mass) उनके कार्बन मेक-अप (carbon make up) से पता लगाया जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि चींटियों का कुल मास पृथ्वी पर मानव के कुल मास के वन-फिफ्थ के बराबर है, माने कुल मानव बायोमास के 20 फीसदी के बराबर.
चींटियों की मिलियन मिलियंस की संख्या में विज्ञान अभी तक सिर्फ 15,700 चींटियों की प्रजातियों का पता लगा सका है. हमें यह भी पता है कि ट्रोपिकल लैंड में चींटियाँ ज्यादा पाई जाती हैं. कुछ और्गैनिज्म्स के साथ चींटियों का इनट्रैकशन ऐसा होता है कि वे प्रजातियाँ चींटियों के बिना सर्वाइव नहीं कर पातीं.
चींटियों की अपनी सामाजिक संरचना के बारे में हमने बहुत कुछ सुना है. अपनी इस संरचना के ज़रिये चींटियाँ हर इकोसिस्टम, चाहे शहर हो, जंगल हो, रेगिस्तान हो, अपनी जगह बना ही लेती हैं. इस संचरण को बनाये रखने के अपने नियम होते हैं. वे बड़ी कॉलोनियों या झुण्ड में रहती हैं. कभी अकेले नहीं होतीं. एक कॉलोनी में 3 प्रकार की चीटियां होती है, सबका श्रम विभाजित होता है. झुण्ड में रहने की वजह से वे ऐसे काम कर ले जाती हैं जो शायद इतने सूक्ष्म प्राणी द्वारा किये जाने की हमें उम्मीद न हो. वे घर बनाती हैं, भोजन इकट्ठा करती हैं, खेती करती हैं, एसिड पालती हैं इत्यादि, ज़ाहिर है यह सारे काम बिना योजना के करना संभव नहीं है.
यह बात नई नहीं है कि पर्यावरण में कई क़िस्म के कीड़े-मकोड़े विलुप्त होते जा रहे हैं. 2019 में हुए एक अध्ययन से यह बात सामने आई कि कीड़े-मकोड़ों की कुल प्रजातियों में से 40 फीसदी प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं. वहीं एक और अध्ययन ने इस बात की तरफ हमारा ध्यान खींचा कि साल 2004 के बाद यूनाइटेड किंगडम में उड़ने वाले कीड़े-मकोड़ों की संख्या 60 प्रतिशत तक घट चुकी है. वजहें वहीं हैं- केमिकल पेस्टीसाइड का यूज, उनके प्राकृतिक घर जंगलों का ख़त्म किया जाना, पर्यावरण में बदलाव जो उनके लिए हानिकारक साबित हुए और क्लाइमेट चेंज.