नया दौर: प्रेग्नेंट महिलाओं को हायर करने से गुरेज़ नहीं कर रहीं बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां
ऊबर इंडिया ने मैनेजमेंट में एक वरिष्ठ पद के लिए ऐसी महिला का चयन किया, जो कुछ ही समय में मां बनने वाली थीं। एक और ऐसी महिला हैं, जिन्होंने मां बनने के बाद दो सालों का आराम लिया और ख़ास प्रोग्राम के लिए काम पर वापस लौटीं। ऐसे ही कई और उदाहरण हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि भारत के कॉर्पोरेट सेक्टर में, मां बनने वालीं या बन चुकीं महिलाओं को ख़ास तवज्जो और सुविधाएं मुहैया कराने का प्रचलन आ चुका है।
2016 में ऊबर हैदराबाद टेक सेक्टर में मेघा येथडका को डायरेक्टर ऑफ़ प्रोग्राम मैनेजर पद के लिए चुना गया था और इस दौरान वह अपनी प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में थीं। वहीं, नई दिल्ली की 32 वर्षीय अरुणिमा सिन्हा दो साल के ब्रेक के बाद काम पर वापस लौटने से बेहद ख़ुश हैं। उनकी कंपनी ने उन्हें एक ख़ास रिटर्नशिप प्रोग्राम के चुना है। अरुणिमा के अंदर कंपनी द्वारा दी गई नई भूमिका भरपूर आत्मविश्वास भी है।
मैटरनिटी ऐक्ट में हाल ही में हुए संशोधनों के बाद इसकी अवधि को बढ़ाकर 6 महीनों तक कर दिया गया था। इस कदम के बाद ऐसा माना जाने लगा था कि इतने लंबे अंतर के बाद महिलाओं के लिए काम पर वापसी करना काफ़ी मुश्क़िल और चुनौतीपूर्ण हो गया है। लेकिन, ऊपर जिन दो उदाहरणों का ज़िक्र हुआ, उनसे साफ़ साबित होता है कि प्रेग्नेंसी महिलाओं के लिए व्यावसायिक (प्रोफ़ेशनल) स्तर पर किसी भी तरह की दिक्कत नहीं पेश कर रही है।
इन दो उदाहरणों के अलावा, एक ऐसा उदाहरण भी हैं, जहां एक महिलाओं को मैटरनिटी लीव पर जाने से ठीक पहले ही एक कंपनी ने हायर किया था। तो क्या इसका मतलब, भारतीय कॉर्पोरेट वर्कफ़ोर्स में महिलाओं और उनकी क्षमताओं के प्रति नज़रिए में बड़ा सकारात्मक बदलाव आया है?
मेघा कहती हैं, "नई नौकरी और भूमिका के लिए चुनाव, मेरे व्यक्तिगत जीवन पर किस तरह असर डालेगा, इस संबंध में मैं काफ़ी आशंकित थी। इस आशंका का मूल कारण यह था कि मुझे भी पूरी तरह से यह स्पष्ट नहीं था कि जीवन के इस अहम पड़ाव पर मुझे नई नौकरी की तरफ़ जाना चाहिए या नहीं।"
बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, "मैंने इस चुनौती का सामने करने का फ़ैसला लिया और ऊबर में साथियों का रवैया देखकर ख़ुश होने के साथ-साथ मैं काफ़ी अचंभित भी थी। हायरिंग की जटिल प्रक्रिया के बाद कंपनी को लगा कि मैं उस नौकरी के लिए पूरी तरह से उपयुक्त हूं और इसके अतिरिक्त उन्होंने किसी भी पहलू (विशेष रूप से मेरी प्रेग्नेंसी) को तवज्जो नहीं दिया। कंपनी के इस रवैये ने ही मेरी उलझन को सुलझाया और मैंने ऊबर के साथ जाने का फ़ैसला लिया। "
ऊबर-एपीएसी की प्रमुख और रीजनल एचआर डायरेक्टर, विशपला रेड्डी ने विस्तार से बात करते हुए कहा, "हम लोगों के कौशल, अनुभव और क्षमताओं का पूरा सम्मान करते हैं। एक और महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कंपनी जिसका चयन कर रही है, वह संगठन के लिए उपयुक्त है या नहीं। जो भी हमारे मानकों पर खरा उतरता है, हम उसका चयन करने में किसी अन्य व्यक्तिगत पहलू पर गौर नहीं करते।"
इन्फ़ोसिस लिमिटेड के एक्ज़िक्यूटिव वाइस प्रेज़िडेन्ट और ह्यूमन रिसोर्सेज़ के प्रमुख रिचर्ड लोबो कहते हैं, "हायरिंग से संबंधित निर्णयों में आवेदन देने वाले की योग्यता को सबसे ऊबर रखा जाता है और किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता। "
के रहेजा कॉर्पोरेशन की चीफ़ ह्यूमन रिसोर्स ऑफ़िसर, उर्वी आराध्या मानती हैं कि कोई भी योग्य महिला, जो आने वाले समय में मां बनने वाली हो, उसको जॉब के लिए रोकने का कोई भी वाज़िब कारण नहीं बनता। वह कहती हैं, "प्रेग्नेंसी का समय काफ़ी संवेदनशील होता है और इस समय महिला को अपने शरीर और दिमाग़ दोनों ही का ठीक ढंग से ख़्याल रखना पड़ता है और इस वजह से ही महिलाएं प्रेग्नेंसी के बाद ही नौकरी की तलाश शुरू करती हैं। "
पे पाल इंडिया की सीनियर एचआर डायरेक्टर, जयंती विद्यानाथन कहती हैं, "हम लोगों को उनका कौशन और अनुभव देखकर चुनते हैं। हम चाहते हैं कि हमारी कंपनी में इनोवेशन का कल्चर हो और इसलिए हमारे साथ काम करने वालों का क्रिएटिव होना बेहद ज़रूरी है। अगर कोई प्रेग्नेंट महिला हमारे मानकों के हिसाब से उपयुक्त हो तो निश्चित तौर पर उनका चुनाव किया जाएगा।"
2017 में जब मैटरनिटी से संबंधित क़ानून में संशोधन के बाद मैटरनिटी लीव के समय को 12 हफ़्तों से बढ़ाकर 26 हफ़्ते कर दिया गया था, उस समय से ही इस संशोधन का एक ही लक्ष्य था कि अधिक से अधिक महिलाओं को देश के वर्कफ़ोर्स की ओर आकर्षित किया जाए।
टीम लीज़ की एक स्टडी के मुताबिक़, इस संशोधन की वजह से कंपनियों पर पड़ने वाले वित्तीय भार की वजह से महिलाओं को कंपनियों का हिस्सा बनाने की दर पर काफ़ी प्रभाव पड़ा था। 2018 में सोशल मीडिया नेटवर्क लोकल सर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, स्टार्टअप्स के साथ-साथ छोटे और मध्यम स्तर के एंटरप्राइज़ेज, महिलाओं को टीम शामिल करने से कतराने लगे।
माइक्रोसॉफ़्ट इंडिया के ह्यूमन रिसोर्स हेड इरा गुप्ता का कहना है, "हमारी नीतियां न सिर्फ़ 26 हफ़्तों की मैटरनिटी लीव ऑफ़र करती हैं, बल्कि तीन महीनों की अतिरिक्त छुट्टी का भी विकल्प दिया जाता है। हमारे साथ काम करने वाली महिलाएं और भी कई सुविधाओं का लाभ उठा सकती हैं, जैसे कि काम के घंटों में कटौती या फिर घर से ही काम करने की छूट आदि। टीम्स, काइज़ाला और आफ़िस 365 जैसे टूल्स की मदद से महिलाएं अपने घरवालों के साथ होकर भी सहजता के साथ ऑफ़िस का काम भी कर सकती हैं। मैटरनिटी लीव पर जाने वाली महिलाओं को वापसी की सहूलियत देने के लिए माइक्रोसॉफ़्ट स्प्रिंगबोर्ड रिटर्नशिप प्रोग्राम भी तैयार किया गया है।"
कनाडा (50 हफ़्ते) और नॉर्वे (44 हफ़्ते) के बाद भारत पूरी दुनिया में मैटरनिटी लीव के मामले में तीसरे नंबर पर है। हाल ही में, महिलाओं के वर्कफ़ोर्स में आई कटौती को देखते हुए, सरकार ने फ़ैसला लिया कि मैटरनिटी लीव पर जाने वाली महिलाओं को 14 हफ़्तों के वेतन का 50 प्रतिशत तक देने का फ़ैसला लिया।
कई कॉर्पोरेट कंपनियों की इस पहल के बावजूद, लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं करियर के बीच में ही व्यक्तिगत कारणों की वजह से काम छोड़ देती हैं। रिपोर्ट्स का सुझाव है कि 2025 तक भारत की जीडीपी 16 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत तक पहुंच सकती है, अगर देश के वर्कफ़ोर्स में काम करने के लिए महिलाओं को अधिक से अधिक प्रोत्साहन मिले।
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